मीडिया : अभी तो और खिलेगा

Last Updated 27 Jan 2019 06:19:29 AM IST

मीडिया के विज्ञापन मासूम नहीं होते। वे भी अपनी तरह की राजनीति किया करते हैं। वे अपने ब्रांडों के ‘व्यंजनार्थों’ के साथ मिक्स करके अक्सर अपना मार्केट बनाया करते हैं, और इस तरह जनता के मूड को एक खास दिशा में धकेला करते हैं।


मीडिया : अभी तो और खिलेगा

याद करें। कुछ बरस पहले अन्ना हारे का आंदोलन चल रहा था। उन्हीं दिनों खबर चैनलों में एक बड़े कॉरपारेट की चाय के नये ब्रांड का विज्ञापन आता था जिसकी कैच लाइनें बड़ी मानीखेज थीं, जो कहती थीं कि पानी को ‘अभी और उबलने दो’..‘अभी और खौलने’ दो तभी तो ‘रंग आएगा’!
तब ‘उबलने’ और ‘खौलने’ का एक मतलब अगर पानी से था दूसरा व्यंजनार्थ ‘जनता’ भी हो जाती थी। अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में जनता ‘उबलती’ दिखती थी। पानी का उबलना जनता के उबाल के साथ ‘मिल जाता’ था। इसे मीडिया की भाषा में ‘सिंक करना’ कहा जाता है। यों प्रकटत: तो वह एक विज्ञापन मात्रा था लेकिन उसके व्यंजनार्थ सिर्फ  ‘पानी  से चाय तक’ सीमित नहीं थे! वे उससे आगे पढ़े जा सकते थे। वे उस वक्त के मूड के ‘कंपलीट सिंक’ में लगते थे। लगभग उसी तरह का एक विज्ञापन इन दिनों खबर चैनलों में नजर आता है। तब चाय के पानी को उबलने के लिए कहा जाता था अब ‘प्लास्टिक पेंट’ लगाने के लिए कहा जा रहा है। नये विज्ञापन के आधार गीत की ये तीन लाइनें बड़ी मानीखेज हैं कि :
‘अभी तो और चढ़ेगा
अभी तो और बढ़ेगा
अभी तो और खिलेगा’
यह विज्ञापन एक पेंट के नये ब्रांड का है, जो मकान पर धूल, दाग-धब्बे नहीं ठहरने देता।

जिस विज्ञापन की बात हम कर रहे हैं वह अपनी प्रच्छन्न राजनीतिक ‘व्यंजना’ को दूर तक प्रकट करके चलता है। विज्ञापन के आखिरी सीनों में एक अखबार नेता बने रनबीर कपूर का पूरा चित्र छापकर बड़ी लाइन लगाता है : इस नेता पर बीस हजार करोड़ के भ्रष्टाचार का आरोप है। ‘अभी तो और बढ़ेगा..’ गाना चलता रहता है। इस बीच, इस ‘नेता’ पर लोग कीचड़ उछालते हैं, लेकिन नेता एक खंभे के पीछे छिपा रहता है। फिर अखबार खबर देता है कि आरोपित नेता ‘मंत्र’ बन चुका है लेकिन गाना जारी रहता है :
‘अभी तो और चढ़ेगा
अभी तो और बढ़ेगा
अभी तो और खिलेगा!’
नेता बने रनबीर कपूर पहले कुछ सीनों में जनता की शंका का निवारण करते हुए समझाते हैं कि उसके मकान पर धूल-धक्कड़, दाग-धब्बे नहीं ठहर सकते क्योंकि वह एक खास पेंट की वजह से चारों ओर से ‘सुरक्षित’ है। जनता को समझाने के लिए ये नेता जी मकान के चारों तरफ पहले एक बड़ी स्लास्टिक शीट चढ़ाते हैं। फिर उस पर चाय का गिलास लुढ़का देते हैं। चाय ऊपर से बहकर निकल जाती है, लेकिन मकान को दाग नहीं लगा पाती। गाना जारी रहता है :
‘अभी तो और चढ़ेगा
अभी तो और बढ़ेगा
अभी तो और खिलेगा!’
यानी नेता जी का मकान एकदम बेदाग रहेगा।
आखिरी सीन में नेता के मकान की जगह स्वयं नेता जी ले लेते हैं। जब वे मंत्र बन जाते हैं तो सबसे पहले अपनी चारों तरफ एक प्लास्टिक शीट लपेट लेते हैं, और गाना गारंटी करता रहता है :
‘अभी तो और चढ़ेगा
अभी तो और बढ़ेगा
अभी तो और खिलेगा!’
विज्ञापन के गीत में ‘चढ़ेगा’, ‘बढ़ेगा’ और ‘खिलेगा’ क्रियाओं का दुहराव बड़ा मानीखेज है। ‘बढ़ेगा’ माने दाग-धब्बे बढेंगे। ‘चढ़ेगा’ यानी  पेंट  चढ़ेगा तो नेता ‘खिलेगा’ यानी  जिसे दाग लग सकता था वह इस रंग को चढ़ाले तो और खिलेगा।
दाग-धब्बों का एक मानी तो वही है जो ‘पेंट’ कहता है। दूसरा मानी वो है जिसे यह ‘पेंट’ छिपाता है। यह भ्रष्टाचार’ के ‘दाग-धब्बे’ हैं। यानी कि दाग-धब्बे तो लगने हैं। भ्रष्टाचार तो होना है लेकिन अगर आपको बचना है तो खास प्लास्टिक पेंट लगा लें। दाग-धब्बे आप से दूर रहेंगे। यहां तक कि ‘चाय’ भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
दाग-धब्बे अब कोई ‘नैतिक’ मानी नहीं रखते। सिर्फ साधन ही मानी रखते हैं। ‘प्लास्टिक पेंट’ ही मानी रखते हैं। अगर आप पर दाग-धब्बे लगें तो भी विज्ञापन के नेता की तरह कहीं छिप जाइए और अंत में ‘मंत्र’ बन जाइए। दाग-धब्बे के आरोप तरक्की भी दे सकते हैं बशत्रे आप एक खास ‘पेंट’ का लेपन करे। कितना सुंदर है विज्ञापन का यह संदेश!

सुधीश पचौरी


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