वैश्विकी: अपनी कमला, अपनी तुलसी
दुनियाभर में फैले तीन करोड़ दस लाख प्रवासी भारतीयों और भारतवंशियों का राजनीतिक प्रभाव और साख विश्व के विभिन्न देशों में किस प्रकार बढ़ रहा है, इसका आभास इस बात से हो सकता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी के लिए कमला हैरिस और पहली हिंदूु सांसद तुलसी गबार्ड दावेदारी पेश कर रही हैं।
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कमला कैलिफोर्निया से डेमोक्रेटिक पार्टी की सीनेटर हैं, वहीं तुलसी हवाई द्वीप से निचले सदन के लिए चुनी गई हैं। दोनों डेमोक्रेटिक पार्टी की हैं, और इन्हें अपनी पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के लिए दूसरे नेताओं के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी। पूर्व उपराष्ट्रपति जो बाइडन और पिछली बार की उम्मीदवारी के लिए मुहिम चलाने वाले बर्नी सेंडर्स इस पार्टी के मुख्य उम्मीदवार हैं।
कमला और तुलसी, दोनों वामपंथी रुझान की नेता मानी जाती हैं। आव्रजन, श्रमिक अधिकार, स्वास्थ्य सुविधा और युद्ध विरोधी नीतियां दोनों में समान हैं। कमला ने तो अपने चुनाव अभियान की शुरुआत ही इस नारे से की है कि ‘कमला हैरिस फॉर द पीपुल’। अमेरिकी मतदाताओं से उनका कहना है कि आपका भविष्य आम आदमी पर निर्भर है। कमला अमेरिकी सीनेट के लिए निर्वाचित होने वाली भारतीय मूल की पहली महिला हैं। उनकी मां तमिलनाडु से हैं, और पिता जमैका से। कमला के मिश्रित मूल के कारण उन्हें लेडी बराक ओबामा बताया जाता है। जिस तरह बराक ओबामा के चुनाव के समय उनकी रेस को लेकर सवाल खड़ा किया गया था, ठीक उसी तर्ज पर कमला के बारे में सवाल किए जा रहे हैं। लेकिन महिला होने के नाते कमला को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। उनके लिए राहत यह है कि पार्टी का एक बड़ा वर्ग इनके समर्थन में है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध एक गंभीर प्रत्याशी के रूप में देखा जा रहा है।
सैंतीस वर्षीय तुलसी अपनी हिंदू पहचान के बावजूद ईसाई बहुलता वाले अमेरिका में नेतृत्व के लिए आशावान हैं। तुलसी पूर्व सैनिक अधिकारी रही हैं और इराक समेत पश्चिमी एशिया के देशों में युद्ध के मोर्चों पर तैनात रही हैं। युद्ध की त्रासदी का प्रत्यक्ष अनुभव करने वाली तुलसी का पूरा अभियान युद्ध और आक्रामक विदेश नीति के विरोध पर केंद्रित है। वह इस क्षेत्र में शांति स्थापित करने के प्रयासों के तहत सीरिया के शासक बशर अल-असद से भी मिली थीं। इसे लेकर अमेरिकी मीडिया और राजनीतिक हलकों में उनकी तीखी आलोचना की गई थी। उन्होंने अपनी पिछली भारत यात्रा के दौरान मोदी को भगवद्वगीता की एक प्रति भेंट की थी। इस प्रति को तुलसी युद्ध मोच्रे पर हमेशा साथ रखती थीं। मोदी के विरोधी अमेरिकी मीडियाकर्मी और राजनीतिक नेता तुलसी पर आरोप लगा रहे हैं कि वह एक कट्टरपंथी हिंदू राष्ट्रवादी नेता का समर्थन करती हैं। यह सवाल लोगों को विस्मित करता है कि अमेरिका सहित अन्य देशों का समाज दूसरे देशों के प्रवासियों की तुलना में भारतीय मूल के लोगों की ज्यादा सहजता के साथ अपने में समाहित क्यों कर लेता है? इसका बहुत सीधा और सरल जवाब यह हो सकता है कि भारतीयों का लोकतंत्र का लंबा अनुभव है और यही कारण है कि पहले से ही इनके रक्त में लोकतंत्र रचा-बसा है। दूसरी बात यह है कि भारतवंशियों ने शिक्षा के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। यही कारण है कि दुनिया में तीन देशों में तो भारतवंशी ही सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर आसीन हैं। मॉरीशस में भारतीय मूल के प्रविंद जगन्नाथ प्रधानमंत्री हैं, तो आयरलैंड में वादकर और पुर्तगाल में अंटोनिया कोस्टा सत्ता के शीर्ष पदों पर हैं। बात अमेरिका की हो या अन्य देशों की, भारतवंशी जहां भी हैं, उन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था को आत्मसात किया है।
अमेरिका में भारतीयों की संख्या केवल एक फीसद है, जो राष्ट्रपति चुनाव का नतीजा किसी तरह तय नहीं कर सकती। कमला हैरिस या तुलसी को यदि गैर-श्वेत जातीय और भाषायी अल्पसंख्यकों का समर्थन हासिल हो जाए तो भी उनके लिए जीत हासिल करना बहुत दुष्कर है। लेकिन भारतवंशियों के लिए यही संतोष का विषय है कि पिछले कुछ वर्षो में ही भारतीयों ने राजनीति समेत समाज के विभिन्न क्षेत्रों में असर कायम किया है। राजनीति में उनकी रुचि और दखल भारतीय संस्कृति के अहिंसा, शांति, बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय और वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्शों से ओत-प्रोत है। इन्हीं से वह अमेरिकी समाज पर सकारात्मक छाप और प्रभाव छोड़ना चाहती हैं।
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