बतंगड़ बेतुक : बचने से नहीं बच सकेगा देश

Last Updated 27 Jan 2019 05:59:34 AM IST

अब देश बचकर रहेगा। अब किसकी हिम्मत जो देश को बचने से बचा सके। एक महा जनसमूह मंच के सम्मुख मैदान में पसरा हुआ था-देश बचाने को उत्सुक, तत्पर और सन्नद्ध। एक महान नेतासमूह मंच के ऊपर था-देश बचाने को कटिबद्ध, संकल्पित और गठबंधित।


बतंगड़ बेतुक : बचने से नहीं बच सकेगा देश

कश्मीर से कन्याकुमारी तक और गुजरात से बंगाल तक, जिसके भी मन में देश हिलोर ले रहा था, जिसके भी मन में देश के प्रति आतुरता थी, देश बचाने की चिंता थी वह देश बचाओ के महायज्ञ में अपनी आहुति देने दौड़ पड़ा था। जो कभी अपनी जाति से बाहर नहीं सोच पाया, वह भी दौड़ा और जो कभी अपने जिले से बाहर नहीं देख पाया, वह भी दौड़ा। जो मंत्री-मुख्यमंत्री भूतपूर्व हो गए थे वे भी अभूतपूर्व उत्साह से पहुंचे और जो अभी तक अभूतपूर्व थे वे भूतपूर्व न हो पाएं, इस उछाह से पहुंचे।
सबने एक-दूसरे के लिए पुराने गिले-शिकवे मिटा दिए और सबने सबके कर्म-धत्कर्म भुला दिए। पहले कौन कहां किसके पीछे पड़ा था, किसने किसके लिए किन सद्वचनों का प्रयोग किया था, किसने किसको कितना कष्ट पहुंचाया था, किसने किसे लंगड़ी मारकर अपना पैर आगे बढ़ाया था और किसने किसे उखाड़कर अपना अखाड़ा जमाया था, ये सब दरकिनार कर दिए  गए। रंगभेद, जातिभेद, धर्मभेद, क्षेत्रभेद और कुरुक्षेत्रभेद सब परे सरका दिए गए। देश खतरे में है और देश को बचाना है, यह सर्वसम्मत निष्कर्ष सब पहले ही अलग-अलग अपने घर से निकाल कर लाए थे, इसलिए किसी को कोई परेशानी नहीं हुई, सब तुरंत हिल-मिल गए और एक-दूसरे के गले लग गए।

मंच पर माइक एक हाथ से दूसरे हाथ जाता रहा और महान जननायकों के महान उद्घोषों को महान जनता तक पहुंचाता रहा। असहमति रखने वालों को झाडू मार-मारकर अपनी पार्टी से बाहर खदेड़ने वाले और भर-भर मुंह एक लय-ताल में सबको गरियाने वाले आपाद विनम्र, सरापा लोकतांत्रिक एक हिटलरी नेता ने चीख-चीखकर चेतावनी दी, देश में हिटलर आ रहा है, हिटलर फिर सत्ता हथियाने जा रहा है, उसे हराना है, हटाना है और देश बचाना है। फिर तो जो आया उद्घोष करता रहा-हराना है, हटाना है, बचाना है; हराना है, हटाना है, बचाना है। उद्घोष पूरे देश में गुंजायमान हो गया।
लेकिन महान जनता के बीच के कुछ महान मूखरे को देखिए। पहले तो उन्होंने हिटलर को भारी बहुमत से चुनाव जिताकर सत्ता सौंपने की मूर्खता की थी और अब देश बचाओ गठजोड़ के देश बचाओ अभियान पर सवाल उठा रहे थे। उनने पूछा-‘बताइए, जो दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक हिटलर ने बर्बाद कर दिए हैं उनके भले के लिए आप अलग से क्या करेंगे? किसानों को कर्ज के कुचक्र से निकालने के लिए जो अब तक हुआ है उससे हटकर और क्या करेंगे?’ उत्तर मिला-‘करेंगे, करेंगे, जरूर करेंगे मगर पहले देश बचाना है।’ सवाल हुआ- ‘बेरोजगारी कैसे दूर करेंगे, पढ़े-लिखे और अनपढ़ नौजवानों को रोजगार कैसे और कहां से मुहैया कराएंगे? विमुद्रीकरण और जीएसटी ने, बकौल आपके, उद्योग-धंधे तबाह कर दिए हैं, करोड़ों बारोजगार लोग बेरोजगार कर दिए हैं। आप इस नुकसान की भरपाई कैसे करेंगे?’ घोषणा हुई-‘करेंगे, करेंगे, जरूर करेंगे पर पहले देश बचा लें तब करेंगे।’ सवाल हुआ-‘आप हर सीट पर डीबीजी का एक ही देश बचाऊ मजबूत उम्मीदवार खड़ा करेंगे। अपने इस उम्मीदवार की मजबूती कैसे तय करेंगे?’ जवाब मिला-‘सीधी बात है जो सबको पटकनी देकर सबका उम्मीदवार बन जाएगा वही मजबूत उम्मीदवार कहलाएगा, वही देश बचाएगा।’
सवाल हुआ-‘अच्छा ये बताइए, ईवीएम के पीछे क्यों पड़े हैं?’ उत्तर आया-‘देश बचाने में ईवीएम सबसे बड़ी बाधा है। जब देखो तब हिटलर के साथ खड़ा हो जाता है। 2014 में ईवीएम ने हमारा साथ दिया होता तो आज देश बचाने की नौबत ही नहीं आती।’ प्रतिप्रश्न हुआ-‘मगर चुनाव से पहले 2014 में आपकी सरकार थी, आपने चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था, ईवीएम बनवाने-लगवाने का ठेका आपने दिया था, फिर ईवीएम हिटलर के साथ कैसे हो गया?’ जवाब मिला-‘हो गया ना, ईवीएम ने गद्दारी की थी। इसीलिए हम ईवीएम पर भरोसा नहीं करते।’ सवाल हुआ-‘मगर बहुत से चुनाव आपने जीते हैं, हाल ही में तीन राज्यों में आप जीते हैं?’ उत्तर आया-‘हां, वह तो हम जनता के बल पर जीते हैं, ईवीएम के बल पर नहीं। ईवीएम पर हमें कतई भरोसा नहीं है। जनता के बल पर जीते हमारे कुछ योद्धा चुनाव आयोग में ईवीएम की शिकायत करने जा रहे हैं। अगर ईवीएम ने देश बचाने का मौका हमसे फिर छीन लिया तो देश नहीं बच सकेगा।’
‘मगर ये बताइए, आपके डीबीजी का नेता कौन होगा?’ ‘डीबीजी?’ ‘जी, आपका देश बचाऊ गठजोड़।’ वे बोले-‘ओह! देखिए, उधर छप्पन इंच का एक सीना है, इधर हमारे पास छप्पन-छप्पन इंच के छप्पन सीने हैं। कोई भी नेता बन लेगा, जो थोड़ा ज्यादा उचक लेगा वही कमान संभाल लेगा। लेकिन ये बाद की बात है। जब देश बच जाएगा तो नेता भी बन जाएगा।’
और तय हो गया, देश बचकर रहेगा। अब बचने से नहीं बच सकेगा देश।

विभांशु दिव्याल


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