महिला विरोधी बयान : सड़ांध मारती सोच
एक टीवी कार्यक्रम के दौरान महिलाओं पर गई आपत्तिजनक एवं बेहूदा टिप्पणियों का खमियाजा क्रिकेटर हार्दिक पांडय़ा और केएल राहुल को भुगतना पड़ा है।
महिला विरोधी बयान : सड़ांध मारती सोच |
बीसीसीआई से संबंधित प्रशासकों की एक समिति (सीओए) ने इन दोनों खिलाड़ियों के प्रति कड़ा रुख अख्तियार कर, जांच लंबित होने तक इन्हें निलंबित करने का फैसला सुनाया है। अब ये दोनों खिलाड़ी आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के खिलाफ वनडे सीरीज नहीं खेल पाएंगे। इन दोनों को औपचारिक जांच शुरू होने से पहले नये सिरे से कारण बताओ नोटिस जारी किया जाएगा। हालांकि जांच बीसीसीआई की अंतरिम समिति करेगी या तदर्थ लोकपाल, इसका फैसला अभी नहीं किया गया है। बहरहाल जांच एक औपचारिकता भर है, अपना दामन बचाने के लिए। क्योंकि पूरा मामला लाखों लोगों ने अपने-अपने घरों के अंदर टीवी पर देखा और सुना है।
इसमें क्या गलत है और क्या सही? यह भी सब को मालूम है। लिहाजा इन दोनों खिलाड़ियों को बिना देरी किए बीसीसीआई ऐसी सजा दे, जिससे आइंदा कोई भी खिलाड़ी, खेल का मैदान हो या फिर मैदान से इतर अपनी मर्यादा न तोड़े। सार्वजनिक तौर पर महिलाओं की इज्जत करना सीखे। महिलाओं का अपमान नहीं, उन्हें इज्जत बख्शे। गौरतलब है कि दोनों क्रिकेटरों की टीवी कार्यक्रम ‘कॉफी विद करण’ में की गई आपत्तिजनक एवं अभद्र टिप्पिणयों की वजह से बवाल मच गया था। पांडय़ा ने कार्यक्रम के दौरान कई महिलाओं के साथ संबंध होने का दावा किया और यह भी बताया कि वह इस मामले में अपने परिजनों के साथ भी खुलकर बात करता है।
जाहिर है कि क्रिकेटर हो या फिर कोई फिल्म स्टार जिन्हें देश के लाखों नौजवान और बच्चे अपना आइकॉन मानते हों, उनके द्वारा सार्वजनिक तौर पर महिलाओं के बारे में इस तरह की आपत्तिजनक और अश्लील टिप्पणियों की जितनी निंदा की जाए, वह कम है। कार्यक्रम में वे महिलाओं के साथ अपने संबंधों को बढ़ा-चढ़ाकर बयान कर रहे थे। उन्हें यह भी ख्याल नहीं था कि उनकी इन बातों का नौजवानों और बच्चों पर किस तरह का असर पड़ेगा? महिलाओं पर जिस तरह की उन्होंने टिप्पणियां की, उन टिप्पणियों से खिलाड़ियों की महिला विरोधी मानसिकता साफ नजर आ रही थी।
ऐसा लग रहा था कि उनकी नजर में महिलाएं सिर्फ उपभोग की एक वस्तु हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। उनकी मर्यादा और गरिमा की उन्हें कोई चिंता नहीं। महिलाओं के बारे में इस घटिया सोच को क्या कहेंगे? वे खिलाड़ी जो राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय टीम की नुमाइंदगी करते हैं, यदि उनकी ही महिलाओं के बारे में यह सोच है, तो दीगर लोग क्या सोचते होंगे? इस पूरे प्रकरण के बाद, हालांकि क्रिकेटर हार्दिक पांडय़ा सार्वजनिक तौर पर दो बार अपनी टिप्पणियों के लिए खेद व्यक्त कर चुके हैं। पहले अपने ट्विटर पेज पर और फिर इसके बाद बीसीसीआई के कारण बताओ नोटिस के जवाब में भी उन्होंने माफी मांगी है।
लेकिन माफी मांग लेने भर से उनका अपराध कम नहीं हो जाएगा। बिल्कुल भी नहीं होगा।
घर-परिवार हो या फिर सार्वजनिक स्थल महिलाओं को सम्मान देना, हर एक की एक आदत होनी चाहिए। ये सारी बातें तो आपके लालन-पालन और संस्कार से जुड़ी हुई हैं। आखिर मां-बाप के पालन-पोषण में कहां कमी रह गई, इसकी भी पड़ताल होनी चाहिए। वे अपने बच्चों को लैंगिक संवेदनीलता, लैंगिक समानता का पाठ सिखाएं और उन्हें बताएं कि लड़कियां, लड़कों से किसी भी स्तर पर कमतर नहीं। लिहाजा उनके साथ हर जगह इज्जत के साथ पे आएं। उनका मान-सम्मान करें। इसके बाद स्कूल-कॉलेज और कार्यस्थलों की बारी आती है, जहां पुरुषों को यह सिखलाया जाए, कि वे महिलाओं के साथ कैसा बर्ताव करें?
यदि वे उनके साथ कहीं गलत व्यवहार करेंगे, तो उन्हें इसकी कड़ी सजा भुगतना पड़ेगी।
महिलाओं के प्रति होने वाले ज्यादातर अपराधों के पीछे, कहीं-न-कहीं पुरुषों की महिला विरोधी मानसिकता जिम्मेदार होती है, जिसमें पुरुष महिला को अपने से कमतर और उसे एक उपभोग की वस्तु भर समझता है। इसी मानसिकता के चलते वह उसे पाने और हासिल करने के लिए किसी भी स्तर पर उतर आता है। महिलाओं के साथ शारीरिक एवं मानसिक छेड़छाड़ से लेकर उनका शोषण, उत्पीड़न और बलात्कार इसी रोगी मानसिकता की देन है। जाहिर है कि महिलाओं के बारे में जब तक पुरुषों की यह घृणित सोच नहीं बदलेगी, तब तक समाज में महिलाओं के प्रति अपराध में कोई कमी नहीं आएगी।
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