साइबर अपराध : मुश्किल है पार पाना

Last Updated 07 Jan 2019 03:42:49 AM IST

डिजिटल क्रांति पर सरकार भले ही खुद की तारीफों के पुल बांधे लेकिन मौजूदा दौर में पकड़ में आ रहे साइबर फर्जीवाड़ों को देखकर यही लगता है कि इस क्रांति की बदौलत हासिल हुई सारी महारत अब देश-दुनिया के लोगों को ठगने में इस्तेमाल हो रही है।


साइबर अपराध : मुश्किल है पार पाना

यही नहीं, अगर इन साइबर फर्जीवाड़ों पर कोई असरदार रोक जल्द न लगी, तो भारत साइबर धोखाधड़ी करने वाले मुल्कों की पांत में शामिल हो जाएगा। ऐसा हुआ, तो सबसे ज्यादा तकलीफ उन आईटी-साइबर पेशेवरों को होगी, जिन्होंने एक दौर में अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर देश को आईटी का सिरमौर मुल्क साबित किया था।
साइबर क्राइम की हालिया घटनाओं पर नजर डालें तो एक नहीं ऐसे दर्जनों किस्से हैं, जब भारत समेत दुनिया भर में अनिगनत लोगों को घर बैठे चूना लग गया। कहीं लोगों के खातों से अचानक रकम गायब हो गई तो कहीं उनके कंप्यूटरों में वायरस डालकर कहा गया तो इससे निजात चाहते हैं तो रकम ट्रांसफर करें। ताजा घटना मुंबई के एक व्यापारी से मोबाइल सिम की स्वैपिंग के जरिये हुई करीब 2 करोड़ रु पयों की ठगी की है। फोन पर आए मिस्ड कॉल पर जब उन्होंने वापस कॉल की, तो उनके खाते से 14 अलग-अलग खातों में यह रकम चंद लम्हों में ट्रांसफर हो गई। बीते 2-3 महीनों में ही गुड़गांव-नोएडा से दर्जनों फर्जी कॉल सेंटर पकड़े गए हैं। खास यह है कि इनकी शिकायत आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के आग्रह पर अमेरिका की फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (एफबीआई), इंटरपोल और कनाडा की रॉयल कनैडियन माउंटेड पुलिस ने गुड़गांव और नोएडा पुलिस से की। अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड समेत 15 देशों के करीब 50 हजार लोगों के कंप्यूटरों में माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के नाम से भेजे गए पॉप-अप के जरिए वायरस भेजकर, फर्जी सोशल सिक्योरिटी अधिकारी बनकर और दूसरे कई चोर रास्तों से साइबर ठगी को अंजाम दिया गया है। इसके अतिरिक्त एटीएम फ्रॉड, बीपीओ के जरिये देश-विदेश में ठगी, क्लोनिंग के जरिये क्रेडिट कार्ड से बिना जानकारी धन-निकासी और बड़ी कंपनियों के अकाउंट व वेबसाइट की हैकिंग और फिरौती वसूली की घटनाएं तो बड़े पैमाने पर हो रही हैं। बैंकिंग के साइबर इंतजाम भी इनके आगे इतने खोखले साबित हो रहे हैं कि एटीएम क्लोनिंग आदि की शिकायतें प्राय: हर रोज ही पुलिस की साइबर सेलों को मिल रही हैं।

जिस आईटी में कोई काम करने के लिए एक खास किस्म की ट्रेनिंग और कौशल की जरूरत होती है, वहां इतने बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े होने से यह सवाल पैदा होता है कि साइबर ठगी इतनी आसान कैसे हो गई है? असल में, आज की तारीख में पढ़ाई से लेकर बैंकिंग और खरीदारी तक के ज्यादातर काम इंटरनेट और मोबाइल से संचालित होने लगे हैं। कंप्यूटर चलाने में फिर भी एक खास कौशल की जरूरत होती है लेकिन मोबाइल इंटरनेट से वास्ता पड़ने पर थोड़ा-बहुत पढ़ा-लिखा नौजवान भी जल्द ही उसके गुर सीख जाता है। ठगी के जितने मामले पकड़े गए हैं, उनमें फोन पर लोगों को झांसा देकर फंसाया जाता है और इसमें किसी आईटी ज्ञान की बजाय अंग्रेजी के थोड़े से ज्ञान की ही जरूरत होती है। इसके अलावा बैंकिंग और खरीदारी के प्राय: हर प्रबंध में लेनदेन के जिन उपायों की जरूरत पड़ती है, उन्होंने अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और भारत समेत पूरी दुनिया को एक धरातल पर ला खड़ा किया है। इस पर हमारे देश में साइबर कानूनों में मौजूद झोल और पुलिस की साइबर सेलों के सतही ज्ञान ने कई मुश्किलें और खड़ी की हैं, जो आम पुलिसिया शैली में काम करती है और दो-चार घटनाओं में धरपकड़ का दिखावटी काम संपन्न कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। लेकिन इन सबसे ऊपर है देश के आईटी नौजवानों की बेरोजगारी का किस्सा, जो इधर अमेरिका, ब्रिटेन आदि मुल्कों के सख्त वीजा कानूनों के कारण कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है।
देश में इन नये आईटी पेशेवरों के लिए कोई सीधा काम नहीं है और इनके बाहर जाने के रास्ते तंग होते चले गए हैं, लिहाजा पेट पालने की मजबूरी इन्हें आईटी की बदनाम गलियों में ले आई है। इन घटनाओं से बेशक यह सवाल भी उठता है कि हमारी आईटी इंडस्ट्री र्सटििफकेशन का ऐसा कोई जरिया क्यों नहीं बनाती है, जिसमें यदि कोई शख्स अपने आईटी ज्ञान का गलत इस्तेमाल करते पकड़ा जाता है, तो डिग्री-सर्टिफिकेट से वंचित करते हुए उसके कामकाज पर रोक लगा दी जाए। पर ये उपाय करने से पहले आईटी के जानकारों और साइबर कामकाज के बारे में पढ़-लिखकर ट्रेंड होकर संस्थानों से बाहर आ रही फौज को काम दिलाने के उपायों पर ज्यादा संजीदगी से सोचना होगा, अन्यथा देश में बह रही डिजिटल क्रांति की बयार कब जहरीली हवा में बदल जाएगी- कहा नहीं जा सकता।

अभिषेक कुमार


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