सुनामी : ज्यादा सचेत होना होगा
इंडोनेशिया, जावा और सुमात्रा द्वीप में इस शनिवार को आए सुनामी ने कई चिंताओं को जन्म दिया है। यह पहली बार है कि सुनामी आने से पहले भूकंप यानी की कंपन या किसी तरह की असामान्य सामुद्रिक हलचल महसूस नहीं हुई।
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इससे पहले इंडोनेशिया के ही सुलावेसा द्वीप में सुनामी और भूकंप का जलजला उठा था, जिसमें 2500 लोग काल के गाल में समा गए। वैसे समय रहते इस खतरे का पता चल जाने से ज्यादातर लोगों को वहां से सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया गया था। इस साल इंडोनेशिया में दो बार सुनामी का कहर बरपा है।
सितम्बर महीने में आए सुनामी की तुलना में इस बार का प्रकोप वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और मौसम विभाग के अधिकारियों के लिए अबूझ पहेली बना हुआ है। चिंता की बात इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि शनिवार रात को भूकंप का कोई चिह्न नहीं था और न ही किसी तरह की कोई बड़ी हलचल हुई। यहां तक कि न तो हैदराबाद स्थित इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओसेन इनफाम्रेशन सर्विस जो इंडियन सुनामी अर्ली वार्निग सिस्टम चलाती है और न ही इंडोनेशिया में उपलब्ध अलर्ट सिस्टम को किसी तरह की अनहोनी का आभास हुआ। न तो पानी पर तैरने वाला चिह्न, ज्वार प्रमापी प्रेक्षण या भूकंप संवेदक से किसी तरह की चेतावनी मिली। अचानक ही समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें उठने लगीं। सुनामी की असल वजह का पता करने में मुश्किल यही है, क्योंकि भूकंप नहीं आया।
वैज्ञानिकों और मौसम वैज्ञानिकों के लिए सबसे ज्यादा परेशानी का सबब इसलिए है क्योंकि समुद्र किनारे कीचड़ धंसने (मड स्लाइड) की वजह से सुनामी का पता लगाने की कोई तकनीक फिलहाल उपलब्ध नहीं है। वैसे भी छोटे स्तर पर होने वाले सुनामी का न तो पता लगाया जा सकता है और न उसे नियंतित्रत किया जा सकता है। हालांकि पहाड़ों में कीचड़ धसकने में इस्तेमाल होने वाले सेंसर तो मौजूद हैं मगर समुद्र के भीतर इस तरह की किसी भी गतिविधियों का पता लगाने के उपकरण या तकनीक ईजाद नहीं किए जा सके हैं। विशेषज्ञ अभी ये पता लगा रहे हैं आखिर सुनामी आने का असल वजह क्या थी? लेकिन शुरु आती अनुमानों में कहा जा रहा है कि क्रेकाटोआ ज्वालामुखी के फटने के बाद सोंडा खाड़ी में पानी के भीतर हुए भूस्खलन की वजह से सुनामी आई।
इंडोनेशिया में दुनिया में सबसे अधिक भूकंप और सुनामी आते हैं क्योंकि दुनिया में सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी इसी क्षेत्र में पड़ते हैं। इसी कारण इस देश को भौगोलिक स्थिति के आधार पर ‘रिंग ऑफ फायर’ भी कहा जाता है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि सुनामी तट से टकराने से पहले भूकंप से आने वाले रैलों-तरंगों को महसूस कर सकते हैं। कई शोधकर्ता जानवरों की सुनामी और अन्य प्राकृतिक आपदा को पहले से भांपने की क्षमता का अध्ययन कर रहे हैं। ताकि जानवरों की असाधारण क्षमता का फायदा उठाकर प्राकृतिक आपदा का पूर्वानुमान लगाया जा सके। क्योंकि सभी भूकंप सुनामी उत्पन्न नहीं करते हैं, इसलिए भूकंप की घटना पर आधारित चेतावनी सुनामी के संदर्भ में सही नहीं हो सकती है। एक रिपोर्ट के अनुसार सन 1948 से की गई हर चार सुनामी भविष्यवाणियों में से तीन और भविष्यवाणियां गलत साबित हुई। गलत चेतावनी का मतलब है अधिक कीमत चुकाना क्योंकि इससे संसाधनों और समय का अपव्यय होता है।
सुनामी संबंधित कोई भी सूचना उस क्षेत्र में रहने और प्रभावित होने वाले लोगों तक पहुंचानी चाहिए। आदर्श रूप में इस तरह की सूचना उन्हीं लोगों तक पहुंचनी चाहिए जो जानते हैं कि आने वाले खतरे से कैसे बचा जा सके? तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को इस संबंध में पता रहे कि उन्हें सुनामी संबंधी सूचना कहां मिल सकती है? और सूचना मिल जाने के बाद क्या करना चाहिए? यदि लोग यह नहीं जानते हैं कि सुनामी क्या कर सकती है और वे आने वाले खतरे से कैसे बच सकते हैं तो केवल सूचनाओं को प्राप्त करने से उनकी कोई विशेष मदद नहीं हो पाएगी। तो इस आपदा से बचने के लिए कुछ एहतियात बरतने से ही तबाही से बचा जा सकता है।
सबसे पहले तो उन देशों में जहां इस तरह की आपदा की बारंबारता ज्यादा रहती है, वहां चेतावनी को किसी भी हालत में नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। यानी कि लोगों में सतर्कता का पुट चरम पर रहना अति आवश्यक है। खासकर विकासशील देशों में चेतावनियों के प्रति लापरवाह रुख अपनाते देखा जाता है। दूसर ये कि मीडिया को ज्यादा जिम्मेदारी के साथ आगे आना होगा। मसलन; संस्थानों द्वारा जारी किसी भी तरह की चेतावनी को ज्यादा-से-ज्यादा बार प्रसारित करना होगा। वह भी पूरी जिम्मेदारीपूर्वक और सजगता के साथ। क्योंकि सुनामी के बारे में पूर्वानुमान लगाना अभी तक त्रुटिपूर्ण विज्ञान रहा है।
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