मीडिया : छोटे भाई, बड़े भाई
लगता है कि अब इस देश को नसीरुद्दीन शाह जैसे लोगों की जरूरत नहीं। आखिर, उन्होंने क्यों कहा कि इस देश में रहने से डर लगता है।
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अरे भाई इतना ही डर है तो पाकिस्तान चले जाओ न! कराची की टिकट हम देते हैं। लेकिन आप फिर भी यहीं जमे हैं। और आए दिन औल-पोल बकते रहते हैं। गद्दारी करते रहते हैं। जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते रहते हैं। ऐसों को ठीक तो करना ही होगा।
खबर चैनलों में आती बहसों में कुछ इसी तरह की बातें सुनाई पड़ीं। कई बार तो कुछ एंकर ही नसीर पर पिले नजर आए। बताइए, ऐसे आदमी को कोई अजमेर के लिटफेस्ट में कैसे जाने देता? आप कहते हैं कि आजादी नहीं है। हम कहते हैं कि जितनी सुंदर आजादी यहां है, उतनी तो कहीं नहीं है।
अब देखिए न। अपने यहां तो लोग हनुमान जी तक को नहीं बख्शते। आजकल हर नेता यह बताता फिरता है कि हनुमान जी किस जाति के थे। क्या हमने इनमें से किसी को हनुमान की जाति बताने से रोका? अपने निराले जनतंत्र की छटा तो देखो कि टीवी चैनलों में आकर नाना विद्वान रोज विनम्रतापूर्वक शास्त्रार्थ करते हैं, और आपको हर रोज हनुमान जी की नई जाति का पता चलता है।
कोई मुग्ध होकर कहता है कि वे वनवासी, वंचित और दलित थे तो कोई मुसलमान बताता है क्योंकि उनके नाम की तुक पर ही सलमान, रहमान, अरमान आदि मुस्लिम नाम पड़ते हैं। मतलब कि हनुमान में आने वाला ‘मान’ और सलमान में आने वाला ‘मान’ एक ही है। एक ने कहा कि वे जनेऊधारी थे, इसलिए ब्राह्मण थे। एक ने कहा कि हनुमान जी की आदतें जाटों से मिलती-जुलती हैं। उन्होंने जो किया एक जाट की तरह ही किया। एक ने हनुमान को चीनी तक बता दिया।
क्या किसी ने आपत्ति की? किसी ने कहा कि किसी की भावनाओं को चोट पहुंची है? नहीं न! धन्य है अपना मीडिया जो हनुमान जी की जाति के सवाल को राष्ट्रीय महत्त्व का मानकर दो-दो दिन लाइव शास्त्रार्थ कराता है। धन्य हैं हमारे वे ज्ञानीजन जो हनुमान की जाति को लेकर गंभीर चरचाएं करते कराते हैं, और हमारा ज्ञानवर्धन करते रहते हैं। कितने युगों बाद यह पुण्य समय लौटा है, जब तपस्वीजन हनुमान जी की अपने-अपने तरीके से स्तुति करते हैं। सच कहा है: जाकी रही भावना जैसी।
यह है अपना जनतंत्र। ऐसी भक्ति-चरचा के ऐन बीच में विघ्न डालने वाले तुम कौन होते हो नसीरुद्दीन शाह कि कहो कि डर लगता है। हमें तो डर नहीं लगता है।
लगता है कि इन दिनों ‘डरने’ का फैशन चल रहा है। यह बीमारी बुद्धिजीवियों में ज्यादा है। हर कोई कहता है कि ‘डर लग रहा है’, ‘डर लग रहा है’, और इस तरह डर-डर के हमको भी डराता रहता है।
इसी देश ने आपको हीरो बनाया। आपको सेलीब्रिटी बनाया और आप ही कह रहे हैं कि डर लग रहा है कि अपने बच्चों के लिए डर रहा हूं कि जिन्न बोतल से बाहर निकल आया है कि एक इंस्पेक्टर की जान से कीमती है गाय की जान..
कौन-सा जिन्न है? मुंबई में मजे में रहते हो, हीरो कहलाते हो और हमें ही डराते हो? बुलंदशहर में एक इंस्पेक्टर क्या मारा गया, गोमाता को काटा गया। एक देशभक्त युवक ने उसका कंकाल पकड़ा, लेकिन उसी पर केस कर दिया। जरा देखिए तो गोमाता के देश में गोरक्षक ही सुरक्षित नहीं।
और जिंदगी भर कांग्रेसी राज की मलाई खाने वाले अस्सी से अधिक रिटार्यड खुर्राट नौकरशाह भी इसी तरह की बातें बनाने लगे हैं।
इधर, एक बड़ा काम हो रहा है। हनुमान जी की जाति पर नोबेल लेवल रिसर्च हो रही है। और, उधर कुछ ‘अली’ वाले अपने ‘बजरंग बली’ से हमारा घ्यान हटाने पर तुले हैं। ले लो अपने अली हमारे तो भले बजरंग बली! बजरंग बली! तोड़ दुश्मन की नली!
मीडिया आजाद है। सबको ‘निजता’ की आजादी है, लेकिन देश को खतरा है। कोई भी ‘डर-डर’ कह कर डराने लगता है। देश डरने लगता है। क्या बात करनी है, क्या नहीं करनी है, लोगों को इसकी तमीज ही नहीं। इसीलिए सरकार ने ‘डाटा इंटरसेप्शन’ (संदेशों में हस्तक्षेप) वाले पुराने कानून पर अमल करने का ऐलान किया है। अब सरकार आपके फायदे के लिए आपके मोबाइल से लेकर कंप्यूटर तक के संदेशों के लेन देन की जासूसी कर सकेगी ताकि आपसे आपकी रक्षा कर सके और आपके देश की रक्षा कर सके।
इस पर भी कुछ नादान लोग उपन्यासकार जार्ज आरवेल के उपन्यास ‘1984’ के ‘बिग ब्रदर’ का नाम लेकर डराते हैं, अगर बड़ा भाई, छोटे भाई की ‘निगरानी’ करता है, तो क्या गलत करता है?
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