वैश्विकी : ठोस पड़ती नींव
भारत और चीन ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को ठोस बुनियाद प्रदान करने के लिए अब सांस्कृतिक संबंधों और दोनों देशों के जनता के बीच संपर्क और समझदारी बढ़ाने के लिए प्रयास करने का फैसला किया है।
![]() वैश्विकी : ठोस पड़ती नींव |
प्राचीन काल में धर्मगुरुओं और विद्वानों ने भौगोलिक बाधा को पार करते हुए सांस्कृतिक आदान-प्रदान की आधारशिला तैयार की थी, लेकिन कालांतर में इसे जारी नहीं रखा जा सका। विदेशी आक्रमण और उपनिवेशवाद के कारण दोनों देशों को पराधीनता के लंबे कालखंड से गुजरना पड़ा जिसके कारण भी इन पड़ोसी देशों के बीच लंबी दूरी कायम हुई। भारत और चीन, दोनों के आजाद होने के बाद उपनिवेशवाद के कारण उपजे सीमा विवाद ने भी आपसी संपर्क में अड़चनें पैदा कीं। लेकिन तेजी से बदल रही विश्व व्यवस्था के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बुहान शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और जनता से जनता के बीच संपर्क बढ़ाने पर जोर दिया था, जिसे अमल में लाने के लिए दोनों देश जुट गए हैं।
द्विपक्षीय संबंधों के तीन आधार होते हैं। पहला, जी टूजी (गवमेर्ंट टू गवम्रेट) यानी दो सरकारों के बीच दूसरा बीटूबी (बिजनेस टू बिजनेस) यानी व्यापारियों और उद्यमियों के बीच और तीसरा, पीटूपी (पीपुल्स टू पीपुल्स) यानी दो देशों की जनता के बीच संपर्क बढ़ाना। भारत और चीन की सरकारों के बीच अनेक अवसरों पर द्विपक्षीय संबंधों को लेकर चर्चाएं होती रहती हैं। इसी तरह व्यापारियों और उद्यमियों के बीच भी विभिन्न मुद्दों पर आपसी बातचीत होती रहती हैं, और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार सालाना 28.63 फीसद की दर से बढ़ रहा है, और पिछले साल यह 84.44 अरब डॉलर के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गया। लेकिन भारत-चीन के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और दोनों देशों के नागरिकों के बीच आपसी संबंध बढ़ाने की दिशा में कोई गंभीर पहल नहीं हुई थी। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और भारत आए चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने दोनों देशों की जनता के संपर्क विस्तार पर व्यापक विचार-विमर्श किया तथा इसको अमल में लाने के लिए एक रोडमैप भी तैयार किया। यह बैठक इस मायने में अनोखी थी कि यह केवल दो मुद्दों, सांस्कृतिक संबंध और जनता में संपर्क बढ़ाने पर केंद्रित थी।
भारत-चीन संबंधों के इतिहास में सांस्कृतिक आदान-प्रदान और जनता के बीच सरोकार बढ़ाने के लिए दोनों देशों के बीच 10 आधारों पर सहमति हुई। सांस्कृतिक आदान-प्रदान, प्राचीन विरासत के संरक्षण, युवा आदान-प्रदान, शैक्षिक सहयोग, संग्रहालय प्रबंधन, पर्यटन, नगरों के बीच सहयोग, पारंपरिक औषधि, सिनेमा और योग के क्षेत्र सहयोग बढ़ाने का निश्चय किया गया। दोनों विदेश मंत्रियों ने राजधानी में आयोजित भारत-चीन उच्चस्तरीय मीडिया फोरम का उद्घाटन किया। मीडिया फोरम के विभिन्न सत्रों में दोनों देशों के मुख्यधारा के मीडिया का एक दूसरे की खबरों को ज्यादा से ज्यादा स्थान देने पर जोर दिया गया। इसमें दो राय नहीं कि सांस्कृतिक संबंधों के विस्तार में मीडिया की निर्णायक भूमिका है। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए पड़ोसी देशों की खबरों को ज्यादा महत्त्व और स्थान देने पर भी विचार किया गया। यह तथ्य है कि भाषाई कारणों से भारतीय मीडिया का पश्चिमी देशों के साथ ज्यादा जुड़ाव है। यही वजह है कि अमेरिका, इंग्लैंड आदि देशों की तुलना में चीन, जापान, श्रीलंका, नेपाल आदि एशियाई देशों की खबरें कम छपती हैं। अगर पड़ोसी देशों की सूचनाओं का विस्तार होगा तो जाहिर है कि एशिया में एशिया की बातें सुनीं और समझी जाएंगी जिनसे द्विपक्षीय संबंधों की ठोस नींव तैयार होगी। हालांकि इस दिशा में भी बहुत कुछ करना बाकी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति को अगले वर्ष अनौपचारिक शिखर वार्ता में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है। यह आमंतण्रइस अर्थ में महत्त्वपूर्ण है कि अगले वर्ष भारत में लोक सभा चुनाव होने हैं। नई सरकार किसकी होगी, इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषकों में अलग-अलग राय हैं, लेकिन मोदी को भरोसा है कि सत्ता की बागडोर उन्हीं के हाथ में रहेगी। यदि ऐसा होता है तो प्रधानमंत्री मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में एशिया की शताब्दी के सपने को साकार करने में सफल होंगे। यदि सत्ता में उनकी वापसी नहीं भी होती है, तो द्विपक्षीय संबंधों की जो दिशा उन्होंने तय की है, नई सरकार उसकी अवहेलना नहीं कर सकेगी।
| Tweet![]() |