अंतरिक्ष : भारत की बढ़ती धमक

Last Updated 04 Dec 2018 06:20:01 AM IST

इसरो ने एक बार फिर अंतरिक्ष में इतिहास रचते हुए भारत सहित 9 देशों के 31 उपग्रहों को पोलर सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) सी-43 के जरिए लॉन्च कर दिया।


अंतरिक्ष : भारत की बढ़ती धमक

इस प्रक्षेपण की खास बात है कि इसरो ने दो साल में चौथी बार 30 से ज्यादा सैटेलाइट लॉन्च किए। जनवरी, 2017 में 104 उपग्रह लॉन्च कर रिकॉर्ड बनाया था। ग्लोबल सैटेलाइट मार्केट 200 अरब डॉलर से ज्यादा की है। इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है जबकि भारत की हिस्सेदारी साल दर साल बढ़ रही है।सैटेलाइट ट्रांसपोंडर को लीज पर देने, भारतीय और विदेशी क्लाइंटस को रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट की सेवाएं देने से इसरो का राजस्व लगातार बढ़ रहा है।
पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) की यह 45वीं उड़ान और इस साल में छठी उड़ान थी। इसमें भारत के सबसे ताकतवर इमेजिंग सैटेलाइट हाइसइस के अलावा अमेरिका (23 उपग्रह) और ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, कोलंबिया, फिनलैंड, मलयेशिया, नीदरलैंड और स्पेन (प्रत्येक का एक उपग्रह) के उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। इसरो के अनुसार इन उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए उसकी वाणिज्यिक इकाई (एंट्रिक्स कारपोरेशन लिमि.) के साथ करार किया गया है। कुछ साल पहले एक समय ऐसा भी था जब अमेरिका ने भारत के उपग्रहों को लांच करने से मना कर दिया था। आज स्थिति यह है कि अमेरिका सहित तमाम देश खुद भारत से अपने उपग्रहों को प्रक्षेपित करवा रहे हैं। कम लागत और बेहतरीन टेक्नोलॉजी की वजह से आज दुनिया के कई देश इसरों के साथ व्यावसायिक समझौता करना चाहते हैं। हालांकि इस क्षेत्र में चीन, रूस, जापान आदि देश प्रतिस्पर्धा में हैं, लेकिन यह बाजार इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि यह मांग उनके सहारे पूरी नहीं की जा सकती। ऐसे में व्यावसायिक तौर पर यहां भारत के लिए बहुत संभावनाएं हैं।

हालिया प्रक्षेपित हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग उपग्रह (हाइसइस) को 44.4 मीटर लंबे और 230 टन वजनी पीएसएलवी सी-43  से रॉकेट से छोड़ा गया है। पृथ्वी की निगरानी के लिए इसरो ने हाइसइस को विशेष रूप से तैयार किया है। हाइसइस पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड का भी अध्ययन करेगा। साथ ही, सतह का भी अध्ययन करेगा। एक विशेष चिप की मदद से तैयार किया गया ऑप्टिकल इमेजिंग डिटेक्टर ऐरे रणनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। हाइसइस की मदद से पृथ्वी धरती के चप्पे-चप्पे पर नजर रखना आसान हो जाएगा। अब धरती से 630 किमी. दूर अंतरिक्ष से पृथ्वी पर मौजूद वस्तुओं के 55 विभिन्न रंगों की पहचान आसानी से की जा सकेगी। इस उपग्रह का उद्देश्य पृथ्वी की सतह के साथ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पैक्ट्रम में इंफ्रारेड और शॉर्ट वेव इंफ्रारेड फील्ड का अध्ययन करना है। हाइपर स्पेक्ट्रल इमेजिंग या हाइस्पेक्स इमेजिंग की एक खूबी यह भी है कि यह डिजिटल इमेजिंग और स्पेक्ट्रोस्कोपी की शक्ति को जोड़ती है। हाइस्पेक्स इमेजिंग अंतरिक्ष से एक दृश्य के हर पिक्सल के स्पेक्ट्रम को पढ़ने के अलावा पृथ्वी पर वस्तुओं, सामग्री या प्रक्रियाओं की अलग पहचान भी करती है। इससे पर्यावरण सर्वेक्षण, फसलों के लिए उपयोगी जमीन का आकलन, तेल और खनिज पदाथरे की खानों की खोज आसान होगी।
असल में इतने सारे उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में छोड़ना आसान काम नहीं है। इन्हें कुछ वैसे ही अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाता है जैसे स्कूल बस बच्चों को क्रम से अलग-अलग ठिकानों पर छोड़ती जाती है। बेहद तेज गति से चलने वाले अंतरिक्ष रॉकेट के साथ एक-एक सैटेलाइट के प्रक्षेपण का तालमेल बिठाने के लिए बेहद काबिल तकनीशियनों और इंजीनियरों की जरूरत पड़ती है। अंतरिक्ष प्रक्षेपण के बेहद फायदेमंद बिजनेस में इसरो को नया खिलाड़ी माना जाता है। इस कीर्तिमान के साथ सस्ती और भरोसेमंद लॉन्चिंग में इसरो की ब्रांड वेल्यू में इजाफा होगा।
कम लागत और लगातार सफल लांचिंग की वजह से दुनिया का हमारी स्पेस टेक्नॉलाजी पर भरोसा बढ़ा है, तभी अमेरिका सहित कई विकसित देश अपने सैटेलाइट की लॉन्चिंग भारत से करा रहे हैं।
अरबों डॉलर की मार्केट होने की वजह से भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। समय आ गया है जब इसरो व्यावसायिक सफलता के साथ-साथ अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तरह अंतरिक्ष अन्वेषण पर भी ज्यादा ध्यान दे। इसके लिए उसे दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी। सरकार को इसरो का सालाना बजट भी बढ़ाना पड़ेगा जो फिलहाल नासा के मुकाबले काफी कम है।

शशांक द्विवेदी


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