सरोकार : जल साथी : साकार करेगा गांधी का सपना
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जा रही है। दो अक्टूबर, 2018 से अक्टूबर, 2019 तक। आजादी के बाद गांधी का सपना था कि ग्राम स्वराज लाएंगे।
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गांव-गांव में वे अंतिम व्यक्ति को आजादी का भान कराना चाहते थे। उन्होंने ग्राम स्वराज लाने के लिए ग्राम सफाई, स्वच्छता और समानता का काम करने का आह्वान किया था। इसका अनुकरण करके हम अपनी नदियों और जल स्त्रोतों को गंदगी और कूड़े-कचरे से बचा सकते हैं क्योंकि बीमारी का ज्यादा कारण प्रदूषित जल है। गांधी जी कहते हैं कि हमारे मन स्वच्छ और निरोगी हुए तो हम सभी प्रकार की हिंसा का त्याग कर सकते हैं। हर पंचवर्षीय योजना में कोई न कोई कार्यक्रम अवश्य दिखाई देता है जिसमें गांधी को याद किया जाता है। स्वच्छता कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रधानमंत्री से लेकर पंचायत के प्रधान तक झाडू उठाकर सफाई का काम करते नजर आए हैं, लेकिन इसकी सफलता तभी है जब प्रत्येक नागरिक इसमें जुड़े।
हिमालय के गोमुख से गंगा लगभग 2500 किमी. चलकर गंगा सागर में मिलती है। सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर सामने आ रहा है कि हरिद्वार से गंगा सागर के बीच अधिकतर स्थानों पर गंगा जल की गुणवत्ता स्नान करने योग्य भी नहीं बची है। कहा जाता है कि गंगा का 51 फीसद हिस्सा प्रदूषित है। गंगा के किनारे 1109 प्रदूषणकारी उद्योग हैं, और 97 शहरों से 2953 एमएलडी सीवेज सीधा गंगा में जाता है। लगभग 5000 गांव हैं, जहां से आ रहे गाद-गदेरों और गंदे नालों से सीधे गंगा में 6 अरब लीटर गंदगी पहुंच रही है। काविलेगौर है कि गैर- सरकारी संस्था एक्शन एड ने गंगा की निर्मलता के लिए राज-समाज के बीच मजबूत सामंजस्य स्थापित करने के लिए जल साथी तैयार करने का बीड़ा उठाया है। इसके माध्यम से गांव की जल एवं स्वच्छता समितियों के साथ मिलकर पहले स्वयं से जल को स्वच्छ और निर्मल रखने के लिए तन-मन से तैयार होना है। जल साथी पंचायतों के माध्यम से संबंधित विभाग से स्वच्छता के नाम पर मिलने वाली सहायता की तरफ समाज का ध्यान दिलाएगा।
जल साथी को एक सशक्त माध्यम बनाया जा रहा है, जो जल और स्वच्छता के हर पहलू को समझे, उसका अध्ययन करे और उपलब्ध जल संसाधनों की जानकारी भी रखे। नदी पर्यावरण का अहम हिस्सा है, जिसमें कई सामाजिक, धार्मिक और पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं। इसमें सर्वधर्म समभाव है, जिसमें मनुष्य या अन्य प्राणी, पेड़-पौधे जो भी हो, जो सबकी जीवन रेखा है। मनुष्य अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते हैं। लेकिन यह भी सोचना चाहिए कि नदियों की जैसी जीवन रेखाओं के अधिकार भी हमें नहीं भूलने चाहिए। उन्हें स्वच्छ रहने और अविरल बहने का कुदरती अधिकार है। प्राणियों को भी इसका स्वच्छ जल प्राप्त करने का अधिकार है। जल साथी के माध्यम से हम गांधी के उस सपने को साकार कर सकते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रकृति में सभी की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता है परंतु उसमें एक व्यक्ति की भी लोभ पिपासा पूर्ण करने की क्षमता नहीं है। इस विचार को आगे ले जाकर नदी अधिकार और पर्यावरण न्याय की पैरवी में जल साथी की निश्चित ही अहम भूमिका हो सकती है। यह कार्य 2 अक्टूबर, 2018 को महात्मा गांधी की जयंती पर वाराणसी से प्रारंभ किया गया है।
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