बतंगड़ बेतुक : मस्त नाच में लोकतांत्रिकता

Last Updated 02 Dec 2018 07:22:20 AM IST

लोकतांत्रिकता नाच रही है। नाच रही है, और जाग रही है। जाग रही है, और नाच रही है। लोकतांत्रिकता का ऐसा व्यापक जागरण और ऐसा महानाच पहले कभी किसी ने नहीं देखा।


बतंगड़ बेतुक : मस्त नाच में लोकतांत्रिकता

भरोसा न हो तो इतिहास से पूछ लीजिए, इतिहास गिड़गिड़ा कर बोलेगा-न, कभी नहीं। लोकतांत्रिकता का ऐसा भव्य, लंपट नाच उसने कभी नहीं देखा, इतनी जीवंत जागरूक लोकतांत्रिकता उसके सामने कभी नहीं आई। नगलों से नगरों तक और नगरों से महानगरों तक लोकतांत्रिकता का ऐसा आलोड़न कभी नहीं उठा, ऐसा उद्वेलन कभी नहीं जन्मा। पैर कहां उछल रहे हैं, नहीं पता, कमर कहां लचक रही है, नहीं पता, हाथ कहां घूम रहे हैं, नहीं पता। बस, नाच चल रहा है, महानाच। न सुर की चिंता, न लय की, न ताल की, न चाल की, न बोल की न कुबोल की। जब महानाच चल रहा हो तो किसको किसकी सुध। बस नाच की रौ नहीं टूटनी चाहिए। किसी का कुछ भी टूटे-फूटे मगर महानाच की झंप-झांप नहीं टूटनी चाहिए।
लोकतंत्र हांफ रहा है, कांप रहा है, हैरानी से ताक रहा है। उसने कब सोचा था कि देश यकायक इतने विकराल तरीके से इतना लोकतांत्रिक हो जाएगा। इतना जुझारू हो जाएगा और उसकी रक्षा के लिए इतना उतारू हो जाएगा। लोगों की लोकतांत्रिकता इतनी उन्नत, उत्कृष्ट और उच्चस्थ हो जाएगी कि वे चोरी करेंगे तो लोकतंत्र की रक्षा के लिए करेंगे और डकैती डालेंगे तो अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए डालेंगे। जो बैंक का पैसा ले भागा वह भी लोकतंत्र को मजबूत करने में जुटा है, और जिसने जनता की जेब काटकर अपनी तिजोरी भर ली वह भी लोकतंत्र की रक्षा में जुटा है। यह उसे गाली दे रहा है, तो यह अपनी महान लोकतांत्रिकता के चलते अपनी गाली दे रहा है, और अगर वह इसकी गाली के बदले गाली दे रहा है, तो वह भी अपने महान लोकतंत्र को बचाने के लिए गाली दे रहा है। लोकतंत्र खतरे में है, और सब लोकतंत्र को बचाने पर आमादा हैं।

तू हमें भ्रष्ट कहकर लोकतंत्र को बचाएगा तो हम तुझे महाभ्रष्ट बताकर लोकतंत्र को बचाएंगे। तू एक झूठ बोलकर लोकतंत्र की रक्षा करेगा तो हम दस झूठ बोलकर लोकतंत्र की रक्षा करेंगे। तू अपनी लोकतांत्रिकता की खातिर सच को झूठ बनाकर पेश करेगा तो हम अपनी लोकतांत्रिकता की खातिर झूठ को सच बनाकर पेश करेंगे। तू खुद को ईमानदार कहेगा तो हम तुझे बेईमान कहेंगे। तू हमारे काम पर उंगली उठाएगा तो हम तेरे नाम पर उंगली उठाएंगे। तू हमें निकम्मा-नाकारा, असफल और अयोग्य ठहराएगा तो हम तुझे निकम्मे बाप-दादों की निकम्मी औलाद ठहराएंगे। चुनावी मंच से तू हमें हटाने की मांग करेगा तो हम अपने चुनावी मंच से तुझे मिटाने की बात करेंगे। हम जो कहेंगे उसे तू नहीं सुनेगा और जो तू कहेगा उसे हम नहीं सुनेंगे। अगर तू अपनी जाति के सहारे अपनी बात आगे बढ़ाएगा तो हम अपने धर्म के सहारे अपनी बात परवान चढ़ाएंगे।
अगर तू नौकरशाही को अपना गुलाम बनाएगा तो हम नौकरशाही को अपनी रखैल बनाएंगे। तू जिसे लोकतांत्रिक बताएगा हम उसे अलोकतांत्रिक बताएंगे। तू हमारी जीत पर स्यापा काटेगा तो हम तेरी हार पर स्यापा काटेंगे। तू जिसे सिद्धांत बताएगा हम उसे भ्रांत बताएंगे। तू जिसे नीति बनाएगा हम उसे अनीति बताएंगे। तू जिसे देश हित में ठहराएगा उसी में हम देश का अहित खोज लाएंगे। तू हमसे हमारी लोकतांत्रिकता छीनने की कोशिश करेगा तो हम तेरी कोशिशों में से तेरी लोकतांत्रिकता छीनने की कोशिश करेंगे। तू जनता के आगे लुभावने वादों का पांसा फेंकेगा तो हम तेरे वादों को झांसा बनाएंगे। न तू रुकेगा, न हम रुकेंगे। न तू झुकेगा, न हम झुकेंगे। तू लोकतंत्र की रक्षा का दावा करेगा तो हम तुझे लोकतंत्र का खतरा बनाकर पेश करेंगे। लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व तेरा है, तो ये तेरा वहम है, और दायित्व हमारा है, तो यह हमारा विश्वास है।
हमने अपनी अद्भुत लोकतांत्रिक संस्कृति विकसित की है। तू खुद को चौकीदार बताएगा तो हम तुझको चोर बताएंगे। तू कहेगा न नाचूंगा, न नाचने दूंगा, हम कहेंगे नाचूंगा भी और नाच के दिखाऊंगा भी। तू जिसकी तारीफ करेगा हम उसकी बदनामी करेंगे, तू जिसकी बदनामी करेगा हम उसकी तारीफ करेंगे। तू जिसे मुद्दा बनाएगा हम उसे मुर्दा बताएंगे, तू जिसे मुर्दा बताएगा हम उसे मुद्दा बनाएंगे। तेरी गंभीर से गंभीर बात को हम मजाक में उड़ा देंगे और तेरे छोटे से छोटे मजाक पर हाय-तौबा मचा देंगे। तू कहेगा जनता तेरे पक्ष में आएगी, हम कहेंगे जनता तुझे सबक सिखाएगी। तू कहेगा तू अंधेरे में सूरज उगाएगा, हम कहेंगे हम सूरज को अंधेरे में ले आएंगे। तू कहेगा सुनो, समझो और मानो और हम कहेंगे न सुनेंगे, न समझेंगे, न मानेंगे। तू कहेगा हम लोकतंत्र को कफन ओढ़ाएंगे, हम कहेंगे हम लोकतंत्र को जिंदा दफनाएंगे। यही हमारा लोकतांत्रिक संकल्प है, यही हमारी लोकतांत्रिकता है।
हमने अपने विराट-विशाल, मोटे-थुलथुले लोकतंत्र की गोद में बैठकर अपनी यह गेंडे की खाल वाली लोकतांत्रिकता विकसित की है। इसके मोटे कवच को न कोई समावेशी विचारधारा भेद सकती है, और न कोई सद्भावी समझदारी। इसके सर्वग्रासी महानाच को न सड़क रोक सकती है, न संसद। अगर आपको यह नाच खटकता है, तो खटकता रहे। आप आशंकित होते हैं, तो होते रहें, भविष्य को लेकर आपको डर लगता है, तो लगता रहे। आपकी नियति सिर्फ मूकदर्शक की है, बस देखते रहिए, बिसूरते रहिए और सहते रहिए।

विभांशु दिव्याल


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