वैश्विकी : शिखर पर छाया भारत
जी-20 शिखर सम्मेलन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पांच साल के कार्यकाल की सबसे महत्त्वपूर्ण और व्यापक अर्थ देने वाली कूटनीतिक बैठक है।
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इस बैठक में मोदी को विश्व के सबसे बड़े और परस्पर विरोधी रुख रखने वाले नेताओं के साथ वातचीत का मौका मिला है। इस आधार पर प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति का मूल्यांकन भी किया जाएगा कि वह कहां सफल रहे हैं, और कहां असफल। इस शिखर सम्मेलन में दो त्रिपक्षीय बैठकें हुई। पहली बैठक अमेरिका, जापान और भारत के बीच; और दूसरी त्रिपक्षीय बैठक रूस, चीन और भारत के बीच हुई। भारत दोनों बैठकों में शामिल हुआ। यह वैश्विक राजनीति में भारत के महत्त्व को दर्शाता है। प्रधानमंत्री मोदी परस्पर विरोधी विचार रखने वाले और एक दूसरे से झगड़ने वाले शीर्ष नेताओं के बीच संतुलन बनाकर भारत के महत्त्व को कायम रखते हैं, यह बात इस बैठक से प्रमाणित होती है।
अज्रेटीना में तेरहवें जी-20 शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच हुई त्रिपक्षीय बातचीत का प्रमुख एजेंडा भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन के कूटनीतिक वर्चस्व पर रोक लगाने के उपायों पर केंद्रित था। सुरक्षा की दृष्टि से यह क्षेत्र विशेष महत्त्व रखता है, लेकिन चीन राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण इस क्षेत्र में अपने प्रभुत्व का विस्तार करना चाहता है। अमेरिका चाहता है कि चीन को रोकने के लिए भारत खुलकर भागीदार बने। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने इस बैठक में भारत-प्रशांत क्षेत्र को साझा वृद्धि वाला क्षेत्र बनाने की अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया। उन्होंने इस त्रिपक्षीय बैठक में जापान, अमेरिका और भारत के नाम के पहले अक्षर को जोड़कर ‘जय’ नाम दिया। लेकिन भारत चीन के साथ त्रिपक्षीय संबंधों को सामान्य और बेहतर बनाना चाहता है।
रूस और उक्रेन के बीच चारी तनाव के कारण रूसी राष्ट्रपति पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बीच बातचीत नहीं हो सकी। इस शिखर सम्मेलन में रूस, चीन और भारत के बीच त्रिपक्षीय बातचीत हुई, जिसका भारत की विदेश नीति के लिए खास महत्त्व है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ रूसी राष्ट्रपति पुतिन का पुराना रिश्ता है। पिछले दिनों पुतिन भारत की यात्रा पर आए भी थे। अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत ने रूस के साथ सुरक्षा संबंधों को नया आयाम दिया था। यह सुरक्षा संबंध भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का पुख्ता प्रमाण हैं। रूस, भारत और चीन के बीच हुई त्रिपक्षीय वार्ता में वैश्विक शांति और पारस्परिक सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया गया। इन तीनों देशों के बीच करीब बारह साल बाद त्रिपक्षीय वार्ता हुई है। इस त्रिपक्षीय वार्ता से इतर भी प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति के बीच मुलाकात हुई। दोनों के बीच यह चौथी मुलाकात है। जब डोकलाम के कारण चीन के साथ संघर्ष की स्थिति बन गई थी। तब चीनी शहर वुहान में दोनों नेताओं के बीच अनौपचारिक बैठक हुई थी, और मोदी ने इस खतरे को टाल दिया था। दोनों नेताओं के बीच संघर्ष को युद्ध में नहीं बदलने की सहमति बनी थी। अभी कुछ दिन पहले भारत और चीन के अधिकारियों के स्तर पर सीमा विवाद को सुलझाने के मसले पर बातचीत हुई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ मुलाकात के बाद कहा कि द्विपक्षीय संबंधों की दृष्टि से 2018 बहुत अच्छा रहा और अगला साल इसमें भी बेहतर होगा। उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अगले साल यानी 2019 में अनौपचारिक वार्ता के लिए भारत आने के लिए आमंत्रित भी किया। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित करने के पीछे भी एक राजनीतिक संदेश छिपा है। भारत के लिए अगला साल चुनावी वर्ष है। दूसरा आशय यह हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी का विदेशी मोच्रे की तरह आत्मविश्वास घरेलू राजनीति में भी दिखाई दिया। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों के बीच उन्होंने जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए पांच दिनों का समय निकाला। इन राज्यों के चुनावों को लोक सभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। अगर इन तीनों में से किसी भी राज्य में भाजपा हारती है, तो विपक्ष भाजपा की उल्टी गिनती की शुरुआत कहकर प्रचार करना शुरू करेगा। इन बातों को नजरअंदाज करके जी-20 के शिखर सम्मेलन में जाना बताता है कि प्रधानमंत्री मोदी आगामी आम चुनाव जीतने को लेकर आत्मविश्वास से पूरी तरह लबरेज हैं।
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