हिन्दू वोट बैंक : संतुष्ट करने की चुनौती

Last Updated 29 Nov 2018 03:00:24 AM IST

दो हजार चौदह के चुनावों को लेकर भाजपा में भ्रम बना हुआ है कि वह विकास के एजेंडे की जीत थी, या हिंदुत्व के उभार की। समाज के एक वर्ग का कहना है कि गुजरात के विकास मॉडल के कारण देश ने मोदी को विकास पुरुष के रूप में देखा।


हिन्दू वोट बैंक : संतुष्ट करने की चुनौती

‘सब का साथ, सब का विकास’ और ‘अच्छे दिनों के नारे’ ने कमाल किया, जिसमें वोटरों को दिवा स्वप्न दिखाई देने लगा था। जबकि भाजपा समर्थक बुद्धिजीवियों का मानना है कि कांग्रेस की बढ़ती मुस्लिमपरस्ती के कारण हिंदुओं को मोदी के रूप में एक फरिश्ता दिखाई दिया, जिससे हिंदू एकजुट हुआ।

भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता जीत के कारणों को लेकर दो भागों में बंटे हैं। कुछ का कहना है कि कांग्रेस के दस साल के भ्रष्टाचारपूर्ण कुशासन के कारण जनता का कांग्रेस से मोहभंग हो गया था। उसे विकल्प की तलाश थी, जो मोदी के रूप में सामने आया। गुजरात की कुछ घटनाओं ने मोदी की छवि प्रखर हिंदूवादी की बना दी थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले भाजपा कार्यकर्ताओं और समर्थकों का तर्क है कि पहली बार हिंदू समाज जातियों से निकल कर एकजुट हुआ। इसलिए वे इसे हिंदुत्व की जीत मानते हैं। दलित, यादव ही नहीं, आदिवासी, ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया सब ने मिल कर भाजपा को वोट दिया। इस कारण आजादी के बाद पहली बार कोई एक गैर-कांग्रेसी दल अपने बूते पर लोक सभा में बहुमत पा सका। लोक सभा चुनाव नतीजों के बाद नरेन्द्र मोदी को पृथ्वीराज चौहान की संज्ञा दिया जाना इस बात का सबूत था कि संघ के कार्यकर्ताओं ने मोदी में हिंदू हृदय सम्राट की छवि देखी थी। यह हिंदुत्व का दबाव ही था कि भाजपा आलाकमान को योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। तथ्य है कि आज हिंदू मोदी से खुश नहीं हैं। हां, इतना संतोष जरूर है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से देश में मुस्लिमपरस्ती के वातावरण पर अंकुश लगा है। मोदी प्रधानमंत्री न होते तो तीन तलाक के खिलाफ इतना कड़ा कानून नहीं बन सकता था। हज पर मिलने वाली सब्सिडी भी बंद नहीं होती। गुजरात में मोदी का यह भ्रम टूटा है कि उन्हें विकास के नाम पर जनादेश मिला है। इसलिए भाजपा अपने मूल वोट बैंक और संघ के दबाव में हिंदुत्व की तरफ लौट रही है।
कांग्रेस 2019 में हिंदुत्ववादी शक्तियों में फूट डालने के लिए सांप्रदायिक और जातीय राजनीति को उभारने में जुट गई है। मुस्लिम हमेशा कांग्रस के साथ रहे हैं, 1992 में बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद मुस्लिम कांग्रेस से टूट कर तीसरे मोर्चे के गठन का कारण बने थे। नतीजतन, 1996 में तीसरे मोर्चे की सरकार बनी। मुस्लिम तीसरे मोर्चे के साथ बने रहे थे, इसलिए कांग्रेस 2004 और 2009 में तीसरे मोर्चे की मदद से ही सरकार बना सकी थी। अब राहुल जहां खुद को हिंदू साबित कर रहे हैं, वहीं बंद कमरों में मुसलमानों के साथ बातचीत की जा रही है। राहुल ने जुलाई में मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ बंद कमरे में बातचीत के दौरान मुसलमानों को मंदिर मंदिर घूमने पर सफाई देते हुए कहा कि कांग्रेस मुसलमानों की पार्टी है। 
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार माने जा रहे कमल नाथ ने मुसलमानों के साथ गोपनीय मीटिंग की जिसमें उन्होंने भाजपा से मुकाबले के लिए मुसलमानों से 90 प्रतिशत वोटों की गारंटी मांगी। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं के एकजुट होने पर 25 हिंदू विधायक जीतने के कारण अलग-थलग पड़ी कांग्रेस ने पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस का गठबंधन करवाया है, जिसे मिलजुल कर सरकार बनाने से रोकने के लिए राज्यपाल को आनन फानन में विधानसभा भंग करनी पड़ी। कांग्रेस की कोशिश है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव के बाद पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की साझा सरकार बने और उत्तर प्रदेश में दलित-यादव का सपा-बसपा गठबंधन बने। कांग्रेस सारे देश में जातीय और सांप्रदायिक गठबंधन के लिए खुद का राजनीतिक नुकसान भुगतने को भी तैयार है।
नवम्बर-दिसम्बर, 2018 में पांच विधानसभाओं के चुनाव विकास और हिंदुत्व के मिले जुले एजेंडे पर लड़े जा रहे हैं। संकेत साफ हैं कि 2019 का लोक सभा चुनाव विकास पुरु ष मोदी की तथाकथित लहर पर नहीं बल्कि उग्र हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ा जाएगा। इसकी तैयारी गोरखपीठ के प्रमुख एवं हिंदू युवा वाहिनी के संस्थापक योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन करने के साथ ही कर ली गई थी। उन्हें गोरखपुर लोक सभा सीट हारने के बावजूद इसीलिए मुख्यमंत्री बनाए रखना पड़ा क्योंकि लोक सभा चुनाव से पहले भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे पर कमजोर नहीं पड़ना चाहती। योगी हिंदुओं में मोदी के विकल्प के रूप में उभरने शुरू भी हो चुके हैं। गुजरात, कर्नाटक और बाद में उत्तर भारत के तीन राज्यों के साथ ही मिजोरम और दक्षिण भारत के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में योगी की जनसभाएं करवाई गई। योगी ने मंदिर निर्माण के लिए तीखे तेवर दिखाने भी शुरू कर दिए हैं। उनके तेवर 1992 के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से भी ज्यादा तीखे हैं, जिससे हिंदुओं में उनके प्रति विश्वास जागृत हो रहा है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 के अपने फैसले में माना है कि जहां बाबरी ढांचा विद्यमान था, उसके नीचे एक विशाल मंदिर के अवशेष मिले हैं, इसके बावजूद हाईकोर्ट ने मुसलमानों को संतुष्ट करने के लिए उन्हें 2.77 एकड़ जमीन का एक तिहाई हिस्सा दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट आठ साल से सुनवाई टाले हुए है, मोदी सरकार जल्द सुनवाई का इंतजाम नहीं कर पाई। अब साधू-संत, विश्व हिंदू परिषद, शिव सेना और संघ ने सरकार पर दबाव बनाया है कि वह या तो अध्यादेश ला कर संसद से कानून बनवाए या 10 दिसम्बर से शुरू होने वाले संसद सत्र में सीधा विधेयक पेश करे।
लेकिन मोदी सरकार के सामने समस्या है कि अदालत में विचाराधीन विवादास्पद भूमि को किस कानून के तहत हिंदू समुदाय को दे सकती है। संसद को भी क्या अधिकार है कि विवादास्पद जमीन पर एकपक्षीय निर्णय ले। भाजपा पर दबाव बनाने के लिए 24 नवम्बर को अयोध्या में हुआ शिवसेना और 25 नवम्बर को विश्व हिंदू परिषद का जमावड़ा भाजपा के लिए हिंदुत्व के एजेंडे पर लौटने की चेतावनी भी है। इस मौके पर संघ के सर संघचालक मोहन भागवत का आना और सरकार से दो टूक मंदिर बनाने का रास्ता साफ करने को कहना मोदी के लिए चेतावनी है। उन्होंने कोई बड़ा कदम उठाना पड़ेगा अन्यथा 2019 में मोदी की जगह योगी को प्रधानमंत्री बनाने की मांग उठ सकती है।

अजय सेतिया


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment