राजनीति : केसरिया की बढ़ती दिक्कतें

Last Updated 23 Nov 2018 07:31:17 AM IST

विधानसभाई चुनावों के मौजूदा चक्र में भाजपा और मोदी सरकार के साढ़े चार साल के प्रदर्शन के साथ-साथ जिन तीन राज्यों में भाजपा खुद सत्ता में रही है, वहां राज्य सरकारों के प्रदर्शन पर भी बहस से भागने की पूरी कर रही है, और हिन्दुत्व की दुहाई से जुड़े भावनात्मक मुद्दों के सहारे ही चुनाव की वैतरणी पार करने की कोशिश कर रही है।


राजनीति : केसरिया की बढ़ती दिक्कतें

बेशक, इसका काफी कुछ संबंध मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान में भाजपा की राज्य सरकारों की विफलताओं से पैदा हुई जनता की नाराजगी से भी है। अगर मध्य प्रदेश तथा छत्तीस गढ़ में भाजपा के डेढ़ दशक लंबे शासन से जनता की गहरी निराशा खुलकर सामने आ रही है, तो राजस्थान में भाजपा की सरकार के खिलाफ आम जनता में बुरी तरह से ठगे जाने का एहसास साफ देखा जा सकता है।
बेशक, इन भाजपायी राज्य सरकारों से जनता की नाराजगी इस बात से और बढ़ गई है कि केंद्र में भी सत्ता हाथ में होने के बावजूद भाजपा रोजगार से लेकर महिलाओं और दलितों की सुरक्षा तक विभिन्न महत्त्वपूर्ण मोचरे पर आम जनता से किए गए वादे पूरे करने में न केवल विफल रही है, बल्कि केंद्र में सत्ता में आने के बाद से उसने सारे परदे उतार कर संविधान, जनतंत्र तथा धर्मनिरपेक्षता विरोधी अपनी करतूतों को खुल्लमखुल्ला और आगे बढ़ाया है।

लेकिन इसे नरेन्द्र मोदी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि  उनकी सरकार की भारी विफलताओं के साथ ही  अब एक के बाद एक सामने आ रहे घोटालों ने उनकी सबसे बढ़कर कॉरपोरेट मीडिया-पीआर के सहारे गढ़ी गई छवि को गंभीर चोट पहुंचाना शुरू कर दिया है, जबकि यही छवि उनका सबसे बड़ा हथियार रहा है। मिसाल के तौर पर रफाल के संबंध में हर रोज आ रहे नये-नये रहस्योद्घाटनों के अलावा पिछले एक हफ्ते में ही कम-से-कम तीन ऐसे खुलासे हुए हैं, जिन्होंने मोदी सरकार और भाजपा की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इनमें से पहले दो रहस्योद्घाटन मोदी सरकार की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को अपना राजनीतिक हथियार बनाने की नंगी कोशिशों के चलते गहरे संकट में धकेल दी गई इस जांच एजेंसी के सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे अंदरूनी झगड़े के क्रम में ही सामने आए हैं।
पहला रहस्योद्घाटन, जो मोदी सरकार द्वारा विपक्षी नेताओं के खिलाफ सीबीआई का अंधाधुंध दुरुपयोग किए जाने की आम आशंकाओं की ही पुष्टि करता है, यह है कि प्रधानमंत्री कार्यालय और बिहार सरकार के भाजपाई उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की ओर से और नीतीश कुमार की जानकारी में सीबीआई पर इस बात के लिए दबाव डाला रहा था कि किसी तरह आईआरटीसी प्रकरण में लालू  प्रसाद यादव के परिवार को गिरफ्तार कर लिया जाए। यह सब इस तथ्य के बावजूद था कि सीबीआई के कानून विशेषज्ञों ने साक्ष्यों के अभाव में ऐसा नहीं करने की ही सलाह दी थी। बाद में मोदी के चहेते सीबीआई के डिप्टी डायरेक्टर राकेश अस्थाना ने लालू प्रसाद के गिरफ्तार न किए जाने को सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा के खिलाफ सीवीसी से अपनी शिकायत का हिस्सा भी बनाया था।
दूसरा इससे भी विस्फोटक रहस्योद्घाटन सीबीआई के झगड़े में मोदी सरकार के पक्षपातपूर्ण हस्तक्षेप के हिस्से के तौर पर तबादला कर वनवास में भेजे गए सीबीआई के डीआईजी मनीष कुमार सिन्हा ने अपने तबादले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका में किया है। मोदी सरकार के कृपापात्र सीबीआई के डिप्टी डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ मोईन कुरैशी प्रकरण में घूसखोरी के आरोपों की जांच से जुड़े रहे मनीष कुमार सिन्हा ने अपनी याचिका में इसकी जानकारी दी है कि किस तरह केंद्रीय कोयला एवं खदान मंत्री हरिभाई पृथ्वी भाई चौधरी ने मोईन कुरैशी प्रकरण को दबाने के लिए एक बिचौलिये के माध्यम से दो करोड़ रुपये की रित मांगी थी। इसके साथ ही उन्होंने इसका भी विवरण दिया है कि किस तरह से प्रधानमंत्री कार्यालय के उच्चाधिकारियों, सीवीसी तथा एनएसए अजीत डोवाल की इस प्रकरण में संलिप्तता थी और खास तौर पर अजीत डोवाल ने उक्त प्रकरण में राकेश अस्थाना के खिलाफ जांच को विफल करने के लिए सीधे हस्तक्षेप किया था। याद रहे कि सीबीआई के मामले में सरकार के आधी रात के ऑपरेशन की अगुआई खुद अजीत डोवाल ही कर रहे थे। इस तरह, रफाल प्रकरण की ही तरह सीबीआई प्रकरण की आंच भी प्रधानमंत्री के चहेतों से होते हुए सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय तथा खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पहुंच रही है।
तीसरा बड़ा रहस्योद्घाटन 2005 के नवम्बर की सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ हत्या के प्रकरण में उस समय सीबीआई के गांधीनगर के एसपी तथा उस प्रकरण के मुख्य जांच अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने मुंबई की सीबीआई अदालत में अपनी गवाही में यह दोहरा कर किया कि उनकी जांच के अनुसार गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह को इस हत्या से राजनीतिक और आर्थिक लाभ हुआ था। अमित शाह  के अलावा एंटी-टैररिज्म स्क्वायड के तत्कालीन डीआईजी डीजी वंजारा, उदयपुर के तत्कालीन एसपी दिनेश एम एन, अहमदाबाद के तत्कालीन एसपी राजकुमार पांडियन तथा अहमदाबाद के तत्कालीन डीसीपी अभय चुडास्मा को भी इस हत्या से राजनीतिक लाभ हुआ था। अमिताभ ठाकुर की गवाही के अनुसार इस हत्या से अमित शाह ने अहमदाबाद के पॉप्युलर बिल्डर्स के मालिकान पटेल बंधुओं से 70 लाख रुपये वसूल किए थे और डीआईजी वंजारा ने 60 लाख रुपये। 
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इस फर्जी मुठभेड़ में, जिसमें कौसर बी और तुलसीराम प्रजापति की भी हत्या कर दी गई थी, मुख्य जांच अधिकारी के अनुसार अमित शाह समेत जो मुख्य आरोपी थे, उन सभी को अदालत के जरिए संदिग्ध तरीके से बरी कराया जा चुका है, जबकि निचले स्तर के जिन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अब भी सुनवाई हो रही है, उनकी मुख्य जांच अधिकारी के अनुसार इस हत्याकांड में कोई खास स्वतंत्र भूमिका नहीं थी। कहना न होगा कि इन तमाम बढ़ते रहस्योद्घाटनों के साथ अभी ऐसे और रहस्योद्घाटन आने वाले दिनों में बढ़ते ही जाने हैं, बढ़ते घेराव में नरेन्द्र मोदी-अमित शाह  की भाजपा और आरएसएस द्वारा हिन्दुत्व और नकारात्मक प्रचार का ही ज्यादा से ज्यादा सहारा लिया जा रहा होगा। यह उनके बुनियादी आधार को तो जरूर बचाएगा लेकिन इतना पक्का है कि चुनाव में उनकी हार का ही रास्ता तैयार करेगा।

राजेन्द्र शर्मा


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