बाल दिवस : संवरेगा बचपन तभी बढ़ेगा देश

Last Updated 15 Nov 2018 04:05:38 AM IST

के प्रथम प्रधानमंत्री और बच्चों के प्रिय चाचा जवाहर लाल नेहरू के जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।


बाल दिवस : संवरेगा बचपन तभी बढ़ेगा देश

बाल दिवस को मनाने के पीछे बड़ी बात ये है कि किस तरह से बच्चों का विकास हो सके। आज बच्चों के विकास के पोषण को लेकर सरकार कई तरह के कार्यक्रम चला रही है। आंगनबाड़ी केंद्र खोलकर, स्कूलों में मिड-डे मील की सुविधा देकर बचपन बचाने की कोशिश की जा रही है। 1960 में जहां हमारी बाल मृत्यु दर 65/1000 थी वहीं 2015 में यह 38/100 हो गई है।
इन आंकड़ों से हम तभी तक अपनी पीठ थपथपा सकते हैं, जब तक हम बाल विकास के दूसरे पहलू नहीं देखते। दिल्ली के दर्दनाक निर्भया मामले में नाबालिग का शामिल होना, पिछले साल दिल्ली में एक विद्यालय में बच्चों द्वारा शिक्षक की हत्या करना, सड़कों पर रोजाना नाबालिगों द्वारा दुर्घटना; यह बताती हैं कि बच्चों के मानसिक और नैतिक विकास पर अभी तक हमारा ध्यान नहीं गया है। 2016 राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष देशभर में नाबालिगों के खिलाफ 35849 मामले संज्ञान में आए हैं, जिनमें से 1903 मामले बलात्कार के हैं। एक शैशव मस्तिष्क क्यों अपराध की तरफ अग्रसर हो रहा है? आंकड़ों पर गौर करें तो 2016 में बच्चों के खिलाफ 1,06,958 अपराध संज्ञान में आए हैं, जिनमें से 36 हजार से ज्यादा मामले पॉस्को एक्ट के तहत दर्ज किए गए हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 2017 में 13 राज्यों के 17000 बच्चों पर सर्वे करवाकर यह पाया कि 50 फीसद से ज्यादा बच्चे किसी-न-किसी रूप में यौन शोषण का शिकार हुए हैं।

हमारे देश में हर साल एक लाख से ज्यादा बच्चे लापता हो जाते हैं, जिनमें से 70 फीसद से ज्यादा बालिकाएं होती हैं। बढ़ते अपराध का पूरा ठीकरा हम पुलिस पर फोड़ते हैं। सोचिए एक बच्चा बलात्कार या हत्या करता है या बच्चे के साथ हिंसा होती है तो क्या इसके लिए सिर्फ  सरकार या प्रशासन जिम्मेदार है? क्या समाज परिवार विद्यालय और अभिभावकों के रूप में हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है? अक्सर एकल परिवारों में यह देखने को मिलता है कि माता-पिता मोबाइल पर व्यस्त हैं और बच्चा इंटरनेट पर वीडियो देख रहा है या कोई गेम खेल रहा है। कब आपका बच्चा ऑनलाइन हिंसा का शिकार हो जाए या कोई जानलेवा खेल खेलने लग जाए? क्या आपको लगता है कि कुछ भी गलत होने पर बच्चा आपको खुलकर बताएगा? इंटरनेट के माध्यम से सामाजिक व्यवहार, बड़ों के प्रति सम्मान, नैतिक आचरण और महिलाओं के प्रति सम्मान को बच्चा कभी भी आत्मसात नहीं कर पाएगा। हितोपदेश में भी कहा गया है-
मातृपितृकृताभ्यासो गुणितामेति बालक:।
न गर्भच्युतिमात्रेण पुत्रो भवति पण्डित:।।

अर्थात माता-पिता के निरंतर प्रयासों से ही बालक गुणवान और योग्य बनता है । सिर्फ  जन्म लेने से ही बालक पंडित नहीं बन जाता। समय की आवश्यकता है कि माता-पिता बच्चे के ना केवल अभिभावक बने अपितु उसके साथ मित्रवत व्यवहार कर उसकी मनोवृत्ति को पूर्णतया जानें। माता-पिता के अलावा बालक की दूसरी पाठशाला विद्यालय है, जहां बच्चे का शारीरिक, मानसिक, नैतिक और बौद्धिक विकास होता है। हमारे पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धतियों ने बच्चों को शिक्षित और सभी नागरिकों की जगह सूचना के भंडार वाले संवेदनहीन व्यक्ति के रूप में विकसित किया है। सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता और निजी शिक्षण संस्थानों के व्यावसायीकरण ने पिछड़े और ग्रामीण इलाकों के बच्चों की प्रतिभा पर कुठाराघात किया है।
जब तक बच्चों को सदाचार वाली शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी, तब तक उससे सभ्य नागरिक बनने की अपेक्षा  बेमानी होगा। कहते हैं जब बच्चों का भविष्य सुनहरा होगा तभी देश तरक्की की राह पकड़ सकता है इसलिए भारत के भविष्य को सुनहरा बनाने के लिए न केवल माता-पिता और गुरु जनों को अतिरिक्त प्रयास करने होंगे वरन समाज और सरकार को भी बच्चों के सर्वागीण विकास में अपनी भूमिका निभानी होगी। हमेशा याद रखिए, 20 वर्ष बाद का भारत वैसा होगा जैसा आज हम अपने बच्चों को बनाएंगे। नेहरू जी ने कहा है ‘आज के बच्चे ही कल का भारत बनाएंगे। उनके पालन-पोषण का हमारा तरीका ही देश का भविष्य निर्धारित करेगा’ इसीलिए यदि भारत के भविष्य को बनाना है तो पहले बचपन को संवारना होगा। बाल दिवस पर चाचा नेहरू को यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

विजय गुर्जर


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment