बाल दिवस : नेहरू से मोदी तक

Last Updated 14 Nov 2018 05:04:21 AM IST

चौदह नवम्बर को पूरे देश में बाल दिवस फिर मनाया जाएगा। बहुत सारे आयोजन होंगे।


बाल दिवस : बाल दिवसनेहरू से मोदी तक

हर आयोजन में बच्चों के अधिकारों एवं सुरक्षा की चर्चा के साथ-साथ उन्हें भारत के भविष्य के रूप में दशर्या जाएगा लेकिन कड़वा सच है कि दुनिया में पहला देश भारत ही है जहां सर्वाधिक बाल श्रम होता है। दुनिया के बाल मजदूरों में भारत की लगभग 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री को बच्चों से बहुत ही लगाव था। बच्चे उन्हें चाचा नेहरू कहते थे। यहां तक कि उन्हीं के जन्म दिवस पर बाल दिवस मनाया जाता है। आज के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रुचि भी बच्चों के प्रति कुछ ज्यादा ही है। फिर भी देश में बच्चों की स्थिति दयनीय है। बाल श्रम की बात हो, बाल व्यापार, बाल यौन शोषण या बाल अधिकार की बात हो उन्हें जरूरत मुताबिक संरक्षण और सुरक्षा नहीं मिल पा रहे। 
इस विषय पर नीति निर्धारकों को भी सोचने की जरूरत है कि बाल स्वास्थ्य, बाल शिक्षा, बाल पोषण, मनोरंजन, खेल पर कुल मिलाकर बच्चों के लिए सरकार कितना ‘बजट’ निर्धारित करती है। एक तरफ यह स्थिति है तो दूसरी तरफ ‘बचपन’ छिनता जा रहा है। आज वैीकरण के युग में समाज स्वयं अपने बच्चों का बचपन छीन रहा है। बच्चों से आधिकाधिक अपेक्षाएं, उनकी रुचि के अनुसार हम तैयार नहीं। अपनी रुचि के अनुसार बच्चों को तैयार करने की सोच लिए हुए हैं। इसी बोझ से आज का ‘बचपन’ दबता जा रहा है। देश में बच्चों की संख्या 41.4 करोड़ से अधिक है, जो दुनिया के अन्य किसी भी देश में बच्चों की संख्या की तुलना में सर्वाधिक है। दु:खद है कि अनेक बच्चे सामाजिक-आर्थिक तथा ऐतिहासिक कारणों से अनेक प्रकार के अभावों से ग्रस्त हैं। वे भेदभाव, उपेक्षा और शोषण के सहज शिकार हो जाते हैं।

इनमें से बहुत से बच्चों के परिवार दूरदराज के इलाकों में रहते हैं, जिनके लिए आजीविका के साधन बहुत सीमित हैं, उन्हें बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। कुछ अन्य काम की तलाश में घर-बार छोड़कर शहरों और नगरों में पलायन कर जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में बच्चे ऐसे माहौल से वंचित हो जाते हैं, जिसमें सुरक्षित और खुशहाल जीवन जी सकें। अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग करते हुए अपना समुचित विकास कर सकें।  वास्तव में यह दुभाग्यपूर्ण स्थिति है जिससे निपटने के लिए सभी संबद्ध लोगों को मिल कर प्रयास करने की आवश्यकता हैं।
भारत के संविधान में बच्चों तथा उनके अधिकारों को संरक्षण प्रदान किया गया है। हमने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौते का अनुमोदन किया है। हम चाहते हैं कि हमारे सभी बच्चों को सुरक्षा और गरिमा के साथ जीने के लिए ऐसा सुरक्षित और ममता-भरा माहौल मिले जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ सुनिश्चित हो कि सभी बच्चे स्कूल जाएं, उनका शोषण करने वालों को सजा देने के उपयुक्त कानून बनें, बच्चों के सामने मौजूद खतरों के बारे में समाज को जानकारी हो तथा सरकार, निर्वाचित जन-प्रतिनिधि और समाज बाल संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर कारगर ढंग से ध्यान दें ताकि उनकी बेबसी को कम किया जा सके।
बाल संरक्षण शब्द का उपयोग विभिन्न संगठन विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न रूपों में करते हैं। इस शब्द का अर्थ होगा हिंसा, दुरुपयोग और शोषण से संरक्षण। सीधे शब्दों में कहें तो बाल संरक्षण का अर्थ प्रत्येक बच्चे के इस अधिकार को संरक्षण देना है कि उसे किसी प्रकार की क्षति न पहुंचाई जाए। इससे अन्य अधिकरों को भी बल मिलता है अर्थात सुनिश्चित होता है कि बच्चों को वह सब कुछ प्राप्त हो जिसकी उन्हें जीवित रहने, विकसित होने और फलने-फूलने के लिए आवश्यकता है। 2002 में बच्चों के बारे में संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष अधिवेशन में राष्ट्रों ने अधिवेशन में अनुमोदित ‘अ र्वल्ड फिट फॉर चिल्ड्रेन’ (बच्चों के लायक दुनिया) घोषणा को साकार करने का संकल्प व्यक्त किया। यह संकल्प ऐसी दुनिया के निर्माण का है जिसमें ‘सभी लड़कियां और लड़के अपने बचपन का आनंद ले सकें..जिसमें उन्हें भरपूर प्यार, सम्मान और दुलार मिले..जिसमें उनकी सुरक्षा और खुशहाली सबसे पहले हों और जिसमें वे स्वास्थ्य, शांत और गरिमा के साथ बड़े हों।’ ये भावनाएं कानूनी मानदंडों से परे हैं। वि की हर संस्कृति में बच्चे सबके दुलारे होते हैं। फिर भी हम उनके संरक्षण में विफल रहते हैं। देश में बच्चों के अधिकारों के संरक्षण, प्रोत्साहन और सुरक्षा के लिए राष्ट्र बालक अधिकार संरक्षण आयोग मार्च, 2007 में बाल अधिकार अधिनियम, 2006 की धारा 4 के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय के रूप में स्थापित किया गया है। इस अधिनियम में बच्चों को 18 वर्ष से कम आयु के किशोर की परिभाषा दी गई है। अधिनियम की धारा 2(ब) के अनुरूप बाल अधिकारों में संयुक्त राष्ट्र संघ संधि के तहत अधिकार सम्मिलित हैं। किशोर न्याय (बालकों की देखरेख एवं संरक्षण) कानून, 2000 क्या है? इसका मुख्य उद्देश्य क्या है? 20 नवम्बर, 1989 को संयुक्त राष्ट्र कनवेंशन में बालकों के अधिकारों के संरक्षण हेतु प्रस्ताव पारित किया गया। इस कनवेंशन में न्यायिक कार्यवाहियों का सहारा लिए बिना समय-सीमा तक पीड़ित बालकों के सामाजिक पुन: एकीकरण के लिए बल दिया गया है।
भारत सरकार ने ग्यारह दिसम्बर, 1992 को इस कनवेंशन के निर्णयों को स्वीकार किया और विधि का उल्लंघन करने वाले किशोरों और देखरेख तथा संरक्षण के लिए जरूरतमंद बालकों से संबंधित विधि का उनके विकास की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए उचित देखरेख एवं संरक्षण एवं उपचार का उपबंध करते हुए तथा उनसे संबंधित न्याय निर्णयन करने में बालकों के सर्वोत्तम हित में बालकों के प्रति मैत्रीपूर्ण दृष्टिकोण अपनाते हुए तथा उनके अंतिम पुर्नवास के लिए इस अधिनियम को तीस दिसम्बर, 2000 को राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद पारित किया गया। इस अधिनियम का मुख्य आधार बालकों के सर्वोत्तम हित को दृष्टिगत रखते हुए उनके हित में देखरेख, संरक्षण व पुर्नवासन का लाभ किया जाना है। अंत में यही कहा जा सकता है कि जब तक समन्वित तरीके से हम सभी सरकार, गैर-सरकारी संगठन, आम अवाम एक होकर बच्चों की तरफ ध्यान नहीं देंगे तब तक हम बच्चों के अधिकार, संरक्षण, सुरक्षा, कल्याण, पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा से कोसों दूर रहेंगे। हम कहते तो हैं-बच्चे कल के भविष्य हैं, लेकिन अभी भी हमें बहुत कुछ ‘भविष्य’ के लिए करने की जरूरत है।

राजेश मणि


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