वैश्विकी : खिलाफ हवा से गुजरते ट्रंप
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दो साल के कार्यकाल के पूरा होने पर उनकी नीतियों और उनकी लोकप्रियता का जनमत संग्रह हुआ, जब वहां के मतदाताओं ने मध्यावधि चुनावों में सीनेट के करीब एक तिहाई सदस्यों और हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव (निचला सदन) और कुछ राज्यों के गवर्नर का चुनाव किया।
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अमेरिकी चुनाव व्यवस्था के अनुसार हर चार वर्ष में ऐसे मध्यावधि चुनाव होते हैं, जो राष्ट्रपति के कार्यकाल के बीच की अवधि में संपन्न होते हैं। चुनाव परिणामों का असर राष्ट्रपति ट्रंप की विदेश नीति से अधिक उनकी घरेलू राजनीति पर पड़ेगा। भारत सहित जो विभिन्न देश हैं, उनकी इन परिणामों से कोई उम्मीद या आशंका नहीं थी। मोटे रूप में ट्रंप ने पिछले दो वर्षो में जो नीतियां अपना रखी हैं, लगभग उसी दिशा में अमेरिकी प्रशासन आगे बढ़ेगा।
चुनाव परिणामों को ट्रंप ने अपनी बड़ी जीत करार दिया है। उनके इस कथन में कुछ सच्चाई है क्योंकि अमेरिकी शासन तंत्र की सबसे शक्तिशाली संस्था सीनेट में ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी ने अपना बहुमत बरकरार रखा है, लेकिन ट्रंप के लिए यह झटका है कि निचले सदन में रिपब्लिकन पार्टी का बहुमत समाप्त हो गया है, और वहां डेमोक्रेटिक पार्टी को बहुमत मिला है। अपने दो वर्षो के कार्यकाल के दौरान आर्थिक संरक्षणवाद, अवैध आव्रजन पर रोक तथा विश्व के अन्य क्षेत्रों में सुरक्षा जिम्मेदारियों को कम करने की नीतियों का विदेशी और घरेलू मोचरे पर व्यापक विरोध हुआ है। इसके बावजूद ट्रंप इन मुद्दों पर बिल्कुल भी झुकने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन विपक्ष, मीडिया और अमेरिका के अल्पसंख्यक समुदायों में उनके प्रति विरोध बढ़ता ही जा रहा है। आने वाले दिनों में यह विरोध और तीव्र और कटु होने की संभावना है।
निचले सदन में बहुमत के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू की जा सकती है। ट्रंप को कई अन्य मामलों की जांच में घेरने की कोशिश भी की जा रही है। इस पर ट्रंप ने अपने चिर-परिचित हमलावर अंदाज में यह धमकी दी है कि वह ईट का जवाब पत्थर से देंगे। यदि निचले सदन में उनके खिलाफ मुहिम चलेगी तो वह सीनेट में विपक्षी नेताओं के खिलाफ ऐसा ही हथकंडा अपनाएंगे।
अमेरिका की घरेलू राजनीति का यह गृह युद्ध इस बात पर भी निर्भर है कि विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी निचले सदन में किस व्यक्ति को अध्यक्ष चुनती है। इस पद के लिए नैंसी पेलोसी सबसे प्रमुख दावेदार हैं,जिन्हें अमेरिकी मीडिया ने देश की सबसे शक्तिशाली महिला की संज्ञा दी है। पेलोसी का यह रुख अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के प्रति अपेक्षाकृत नरम है। वह ट्रंप के साथ मिलजुल कर कामकाज चलाना चाहती हैं। उनकी पार्टी के अनेक सदस्य इस रवैये के आलोचक हैं तथा वे किसी घोर ट्रंप विरोधी को निचले सदन का सदस्य बनाना चाहते हैं। इस पूरे घटनाक्रम पर ट्रंप ने नैंसी पेलोसी की प्रशंसा करते हुए कहा है कि यदि आवश्यक हुआ तो वह उनके पक्ष में कुछ रिपब्लिकन सदस्यों का समर्थन जुटाने के लिए तैयार हैं। पेलोसी ने अमेरिकी सदन में एक सौ आठ साल का पुराना रिकॉर्ड तोड़ते हुए सबसे लंबे समय आठ घंटे सात मिनट तक भाषण दिया है। इस दौरान उनके चेहरे पर किसी तरह का तनाव नहीं दिखा। पेलोसी से पहले अमेरिका के हाउस स्पीकर चैंप क्लार्क ने 1909 में पांच घंटे पंद्रह मिनट तक भाषण दिया था। पेलोसी अपने भाषण में ऐसे युवा प्रवासियों को निर्वासन से बचाने के बारे में बोल रही थीं, जिनके पास किसी तरह के वैध दस्तावेज नहीं थे।
भारत के लिए एक शुभ संकेत यह है कि अमेरिका का सबसे शक्तिशाली पुरुष (डोनाल्ड ट्रंप) और अमेरिका की सबसे ज्यादा शक्तिशाली महिला (नैंसी पेलोसी), दोनों प्रधानमंत्री मोदी के प्रशंसक हैं। पेलोसी भारत समर्थक हैं, और मोदी के नेतृत्व और नीतियों की खुलकर प्रशंसा करती हैं। जहां तक अमेरिकी संसद में भारतीयों के प्रतिनिधित्व का प्रश्न है, तो उसमें कोई खास बदलाव नहीं आया है। निचले सदन में पहले की तरह ही चार प्रवासी भारतीय पहुंचे हैं। इनमें डॉ. अमी बेरा ने चौथी बार जीत हासिल की है। राजा कृष्ण मौर्थी तीस फीसद से भी ज्यादा मार्जिन के साथ चुनाव जीते हैं। सिलिकॉन वैली में रो खन्ना ने रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार को हराया है। इन तीनों के अलावा एकमात्र भारतीय सांसद प्रमिला जयपाल ने जीत हासिल की है।
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