प्रदूषण : अंधेरे की दिवाली

Last Updated 09 Nov 2018 05:34:16 AM IST

इस साल दिवाली पर आतिशबाजी से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में हवा की गुणवत्ता और बिगड़ गई।


प्रदूषण : अंधेरे की दिवाली

ज्यादातर इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स 1000 के करीब पहुंच गया। अनेक शहरों में भी प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जमकर धज्जियां उड़ाई गई। पिछले दिनों कोर्ट ने देशभर में पटाखों की खरीद-फरोख्त पर पाबंदी लगाने से इनकार करते हुए कुछ शतरे के साथ दिवाली पर आतिशबाजी को छूट दी थी। कहा था कि दिवाली पर दो घंटे के लिए रात 8 से 10 बजे तक पटाखे चलाए जा सकेंगे, लेकिन इस आदेश का पालन नहीं हुआ।
इस साल दिवाली से पहले देश के विभिन्न हिस्सों में पटाखा फैक्ट्रियों में हुई अलग-अलग दुर्घटनाओं में अनेक लोग मारे गए। दिवाली से पहले पटाखा फैक्ट्रियों में छिटपुट दुर्घटनाएं भी हुई जिनमें लोग मारे गए या घायल हुए। दुर्घटनाओं से पीड़ित परिवारों के लिए दिवाली खुशी की बजाय दुख का कारण बन जाती है। यह तस्वीर का एक पहलू है। दूसरी तरफ, पटाखों से वायु व ध्वनि प्रदूषण से सांस व हृदय रोगियों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है। 

कोई त्योहार जहां हमारी आस्था से जुड़ा होता है, वहीं  ईश्वर और प्रकृति में हमारे विश्वास को और अधिक पुष्ट भी करता है। शास्त्रों में कहा गया है कि ईश्वर पृथ्वी, जल, वायु और प्रकृति के कण-कण में विराजमान है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक तरफ हम त्योहार मना कर ईश्वर में अपनी आस्था प्रकट करते हैं, वहीं प्रकृति विरोधी क्रिया-कलाप से उसके प्रति अपनी ही आस्था पर चोट भी करते हैं। त्योहार मनाने का तरीका प्रकृति संरक्षण में अवरोधक है, तो उस पर पुनर्विचार आवश्यक है। विडंबनापूर्ण है कि देश में जब भी परंपरा से हटकर कुछ सकारात्मक सोचा जाता है, तो बिना किसी ठोस तथ्य के कट्टरपंथियों का विरोध झेलना पड़ता है। इस बदलते समय में जबकि प्रकृति का दोहन निरंतर बढ़ता जा रहा है, तो प्रकृति को मात्र परंपरावादियों के भरोसे छोड़ना बेवकूफी होगी। समय आ गया है कि हम अपने और प्रकृति के अस्तित्व के लिए दिवाली मनाने के ढंग पर सोचें। 
दिवाली के दौरान वायु प्रदूषण से वातावरण में हानिकारक गैसों एवं तत्वों की मात्रा आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है।   दुर्भाग्यपूर्ण है कि सस्ते होने के कारण चीन-निर्मित पटाखों ने भारतीय बाजार पर कब्जा जमा लिया है। इनमें सल्फर की मात्रा अधिक होती है। इनके जलने पर वातावरण में सल्फर डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है। सल्फर डाईऑक्साइड की अधिकता आंखों में जलन, सिरदर्द, सन एवं हृदय संबंधी रोग और कैंसर उत्पन्न करती है। दरअसल, देश में पटाखों की गुणवत्ता जांचने के लिए ठोस नीति नहीं है। हालांकि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी, नई दिल्ली पटाखों की ध्वनि का परीक्षण करके प्रमाणपत्र अवश्य प्रदान करती है। लेकिन आयातित पटाखों की गुणवत्ता जांचने के लिए अधिकृत एजेंसी देश में नहीं है। देश में निर्मित पटाखे भी गुणवत्ता की दृष्टि से बहुत अच्छे नहीं होते। बड़ी मात्रा में वायु एवं ध्वनि प्रदूषण पैदा करते हैं। दिवाली के दौरान वातावरण में सस्पैंडिड परटिकुलेट मैटर (एसपीएम) तथा रेस्पाइरेबल परटिकुलेट मैटर (आरपीएम) की मात्रा बढ़ने से अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इस दौरान वातावरण में नाइट्रोजन डाईऑक्साइड की मात्रा आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है। नाइट्रोजन डाईऑक्साइड की अधिकता से फेफड़ों के रोग, छाती में जकड़न एवं विषाणु संक्रमण होने का खतरा बना रहता है।
दूसरी तरफ, पटाखों में कैडमियम, लैड, कॉपर, जिंक, आर्सेनिक, मरकरी एवं क्रोमियम जैसी अनेक जहरीली धातुएं भी पाई जाती हैं। ये सभी पर्यावरण पर बुरे प्रभाव डालती हैं। कॉपर सन तंथ को प्रभावित करता है। कैडमियम गुदरे को नुकसान पहुंचाता है, तो लैड तंत्रिका तंत्र को। जिंक से उल्टी के लक्षण प्रकट होने लगते हैं जबकि आर्सेनिक एवं मरकरी कैंसर जैसे रोग पैदा करते हैं। इसके अतिरिक्त पटाखा उद्योग में प्रयोग किया जाने वाला गनपाउडर भी हानिकारक होता है। इसके वहां कार्य करने वाले बच्चों पर हानिकारक प्रभाव देखे गए हैं।
पटाखे छुड़ाते समय आग लगने की घटनाओं से भी जान-माल का नुकसान होता है। दिवाली के दौरान ध्वनि प्रदूषण से एक ओर मानव शरीर में अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं, तो वहीं पशु-पक्षियों पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। ध्वनि प्रदूषण से उच्च रक्तचाप, बहरापन, हृदयाघात, नींद में कमी जैसी बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं। समय आ गया है कि हम पटाखों को त्याग कर दिवाली के दौरान होने वाले प्रदूषण को मिटाने का सामूहिक प्रयास करें। इसलिए कि पटाखे हमारा ही नुकसान करते हैं।

रोहित कौशिक


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