भारत-पाक बातचीत के बरक्स

Last Updated 15 Jan 2018 06:31:39 AM IST

इस समाचार ने पूरे देश को चौंकाया कि हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की पाकिस्तान के सुरक्षा सलाहकार नसीर खान जंजुआ के साथ थाइलैंड की राजधानी बैंकाक में दो घंटे की बातचीत हुई.


भारत-पाक बातचीत.

पहली नजर में यह समझना कठिन था कि आखिर बातचीत हुई कैसे और क्यों? नरेन्द्र मोदी सरकार का स्टैंड यह रहा है कि आतंकवाद और बातचीत साथ नहीं चल सकता है. इस आधार पर दोनों देशों के बीच बातचीत रुकी हुई है. पठानकोट हमले के बाद भारत ने बातचीत रद्द कर दिया था. तो फिर यह बातचीत क्यों हुई? इसकी जरूरत क्या आ पड़ी? इससे यह भी आशंका पैदा हुई कि कहीं सरकार अचानक अपना रवैया बदलकर फिर से बातचीत तो नहीं करने जा रही है. आखिर 2015 में दोनों राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी बिना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के लाहौर चले गए थे. इसमें यह प्रश्न उठना स्वाभविक था कि क्या फिर वैसा ही कुछ होने जा रहा है? विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार से जब यह पूछा गया तो उनका जवाब था कि हम कहते रहे हैं कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते, लेकिन आतंकवाद पर तो बातचीत हो सकती है. तो क्या यह पाकिस्तान के साथ बातचीत आरंभ करने के लिए गढ़ा गया नया तर्क है? आतंकवाद के नाम पर दोनों देशों के बीच क्या फिर से बातचीत हो सकती है? ऐसे सारे प्रश्न लोगों के मन में उठ रहे हैं. इनका निश्चयात्मक भाव में कोई उत्तर देना कठिन है.

वास्तव में रवीश कुमार द्वारा कही गई बातों के निहितार्थ काफी गहरे हैं. उसे ठीक से समझने की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि बातचीत कई स्तरों पर होती है, जिसे रोक नहीं सकते. दोनों देशों के डीजीएमओ यानी सैन्य ऑपरेशन के महानिदेशक समय-समय पर बातचीत करते हैं. इसी तरह सीमा सुरक्षा बल या बीएसएफ और पाकिस्तान रेंजर्स के बीच बातचीत होती रहती है. दोनों सुरक्षा सलाहकारों के बीच बातचीत ऑपरेशन स्तर का था. वास्तव में यह कहना कठिन है कि 26 दिसम्बर को दोनों सुरक्षा सलाहकारों के बीच क्या बातचीत हुई होगी. किंतु दोनों देशों के बीच जो स्थिति है, उसमें बहुत दोस्ताना माहौल तो नहीं ही हो सकता.

नरेन्द्र मोदी सरकार अब पाकिस्तान के विरुद्ध अपने कड़े रुख में इतना आगे बढ़ चुकी है कि उसके लिए अचानक पलटी मारना राजनीतिक रूप से भी जोखिम भरा होगा. वैसे भी पाकिस्तान की इस समय जो स्थिति है, उसमें बातचीत करने का कोई परिणाम भी नहीं आ सकता. यह रणनीतिक दृष्टि से भी उचित नहीं है. अमेरिका ने जिस तरह पाकिस्तान के खिलाफ अनपेक्षित रूप से अपना रवैया कड़ा किया हुआ है, उससे निकलने के लिए पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान की छटपटाहट साफ देखी जा सकती है. अगर अमेरिका ने वाकई अपने कथन के अनुरूप पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर हवाई हमला या अन्य सैन्य तरीके अपनाए तो वह क्या करेगा? चीन ने उसका समर्थन जरूर किया है, लेकिन वह किस सीमा तक वैसी स्थिति में उसका साथ देगा यह कहना कठिन है. बहरहाल, ऐसे समय में भारत किसी तरह की बातचीत कर पाकिस्तान को सांत्वना का पुरस्कार नहीं दे सकता. अमेरिका की चिंता यदि पाकिस्तान के पश्चिमी सीमा के आतंकवादियों की है तो हमारी चिंता भी हमसे लगे इलाके के आतंकवादी हैं. हमने सर्जिकल स्ट्राइक किया.

कश्मीर में आतंकवाद के विरुद्ध बहुस्तरीय ऑपरेशन ऑल आउट चल रहा है. पाकिस्तान इससे इतना परेशान है कि उसने 2017 में 860 बार युद्धविराम का उल्लंघन किया है. कहने का तात्पर्य यह कि सामान्य बातचीत का कोई वातावरण है ही नहीं. इसलिए यह मानने का कोई कारण नहीं होना चाहिए कि भारत आनन-फानन में पाकिस्तान के साथ राजनीतिक एवं राजनयिक स्तर की समग्र वार्ता आरंभ कर देगा. भारत का एक रुख और रहा है. आरंभ के दिनों में ही मोदी सरकार ने साफ कर दिया था कि यदि आप कश्मीर के हुर्रियत नेताओं से बातचीत करते हैं तो फिर उन्हीं से कीजिए हमसे नहीं. यह रुख भी अभी तक बदला नहीं है. तो फिर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के बयान के क्या अर्थ हैं? भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत का मतलब समग्र वार्ता प्रक्रिया से होता है, जिसमें दोनों देशों के अधिकारियों एवं समय-समय पर नेता भी भाग लेते हैं. उस वार्ता के बारे में रवीश कुमार ने कोई बयान नहीं दिया है. जहां तक शेष बात का संबंध है तो वह होता रहेगा. सीमा के दोनों ओर की स्थिति पर डीजीएमओ बात करते हैं और करते रहेंगे. यह तो हमेशा होता है. इसी तरह सीमा सुरक्षा बल एवं पाक रेंजर्स भी बात करते रहेंगे.

इन्हीं का विस्तारित रूप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की बातचीत है. इसमें युद्धविराम के उल्लंघन से लेकर सीमा पार आतंकवाद संबंधी बातचीत शामिल होता है. ऐसी बात में कोई हर्ज नहीं है. यह तो होना ही चाहिए. वैसे पाकिस्तान के साथ बातचीत में कोई हर्ज नहीं है अगर वह इस बात के लिए तैयार हो जाए कि एजेंडा केवल आतंकवाद होगा. रवीश कुमार ने आतंकवाद पर बातचीत का जो वक्तव्य दिया है वह यही तो है. अगर वह आतंकवाद पर बातचीत के लिए तैयार हो जाए तो हमें उसे हाथों हाथ लेना चाहिए. सच यह है कि पाकिस्तान कभी आतंकवाद के एजेंडे पर बातचीत के लिए तैयार होगा ही नहीं. आतंकवाद का मतलब सीमा पार आतंकवाद से है.

इस पर बातचीत का मतलब होगा पाकिस्तान द्वारा इस बात की स्वीकृति कि वाकई भारत में उनकी सीमा से आतंकी भेजे जाते हैं. इस सचाई को पाकिस्तान कभी स्वीकारता ही नहीं है. ऐसे में वह इस एजेंडा पर बातचीत करने को क्यों कर तैयार होगा? इसलिए बैंकाक में दोनों राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बातचीत और उसके बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के बयान से यह अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि सरकार की नीति में कोई परिवर्तन आ गया है. किंतु आप पाकिस्तान जैसे खतरनाक हालत से गुजर रहे एक देश से बिल्कुल संवादहीनता की स्थिति भी नहीं रख सकते. हां, अमेरिका ने जो दबाव बढ़ाया है उसका लाभ उठाने की तैयारी हमारी अवश्य होनी चाहिए. वैसे हालात में हम अपनी ओर से उसे दबाव में लाने की कोशिश कर सकते हैं. इसमें भारत की रणनीतिक क्षमता और कुशलता की परीक्षा होगी.

 

 

अवधेश कुमार


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