सुशासन : लोक विकास की कुंजी
मौजूदा समय में सरकार की प्रक्रियाएं नागरिकों पर केन्द्रित होते हुए एक नये डिज़ायन और सिंगल विंडो संस्कृति में तब्दील हो रही है.
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सुशासन में निहित ई-गवर्नेंस की ज्यादातर पहल में बिज़नेस मॉडल, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप समुचित तकनीक और स्मार्ट सरकार के साथ इंटरफेस उद्यमिता इत्यादि का उपयोग किया जाता है, लेकिन आगे बढ़ने या आरम्भिक सफलता को दोहरा पाने में यह पूरी तरह अभी सफल नहीं है. सुशासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा है जो शासन को अधिक खुला, पारदर्शी तथा उत्तरदायी बनाता है ताकि सामाजिक-आर्थिक उन्नयन में सरकारें खुली किताब की तरह रहें और देश की जनता को दिल खोलकर विकास दें. मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतांत्रिकरण का महत्त्व सुशासन की सीमाओं में आते हैं.
1991 में उदारीकरण के तीन दशक के बाद यह कहा जा सकता है कि सूचना का अधिकार, नागरिक घोणापत्र, ई-गवर्नेंस, सिटीजन चार्टर, ई-याचिका तथा ई-सुविधा समेत लोकहित से जुड़े तमाम संदर्भ सुशासन की दिशा में उठे कदम ही हैं. इसमें कोई दुविधा नहीं कि सुशासन के कोर में सरकार की जिम्मेदारी कहीं अधिक है. भारत के परिप्रेक्ष्य में सुशासन और इसके समक्ष खड़ी चुनौतियां दूसरे देशों की तुलना में भिन्न हैं. जाहिर है न्याय, सशक्तीकरण, रोजगार एवं क्षमतापूर्वक सेवा प्रदान करने से जब तक समाज के प्रत्येक तबके को गरीबी, बीमारी, शिक्षा, चिकित्सा समेत बुनियादी तत्वों को हल नहीं मिलता तब तक सुशासन की परिभाषा अधूरी रहेगी.
सुशासन की क्षमताओं को लेकर ढेर सारी आशाएं हैं. ़इन्हीं को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में आते ही सुशासन को लेकर कुछ सक्रिय दिखाई दिये. 25 दिसम्बर को क्रिसमस दिवस के रूप में ही नहीं बल्कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के रूप में भी मनाने की प्रथा रही है. मोदी वर्ष 2014 में इस तिथि को सुशासन दिवस के रूप में प्रतिष्ठित किया. ऐसा अटल बिहारी वाजपेयी को और अधिक सम्मान देने के लिए किया गया. तभी से 25 दिसम्बर ने एक नई अवधारणा व विचारधारा से पोषित हो सुशासनिक राह ले लिया. सफल और मजबूत मानवीय विकास को समझने के लिए सुशासन के निहित आयामों को जांचा-परखा जा सकता है. प्रधानमंत्री मोदी साढ़े तीन वर्ष का कार्यकाल बिता चुके हैं. सुशासन की अभिक्रियाओं से यह उतना भरा समय नहीं दिखता जितना व्यावहारिक तौर पर होना चाहिए.
पिछले कुछ वर्षो से हमारी अर्थव्यवस्था संकट में है. नोटबंदी और जीएसटी के चलते इसके साईड इफैक्ट भी देखने को मिले. मेक इन इण्डिया समेत स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप इण्डिया से उम्मीदें खूब लगायी गई पर देश की नौकरशाही में व्याप्त ढांचागत कमियां और क्रियान्वयन में छुपी उदासीनता के अलावा निहित भ्रष्टाचार पर पूरा नियंत्रण न होने से मामला कागजी ही सिद्ध हुआ है. स्किल डवलेपमेंट मामले में चीन से ही नहीं हम दक्षिण कोरिया जैसे छोटे राष्ट्र से भी पीछे हैं. भारत के नगरों और गांवों के विकास के लिए वर्ष 1992 में 73वें और 74वें संविधान संशोधन इस दिशा में उठाया गया कदम था.
प्रधानमंत्री मोदी न्यू इण्डिया की बात कर रहे हैं लेकिन इस पर शक कम होने के बजाय गहराता है. जब तक कृषि क्षेत्र और इससे जुड़ा मानव संसाधन भूखा-प्यासा और शोषित महसूस करेगा. सुशासन के लिए महत्वपूर्ण कदम सरकार की प्रक्रियाओं को सरल बनाना भी है और ऐसा तभी होगा जब पूरी प्रणाली पारदर्शी और ईमानदार हो. पुरानी पड़ चुकी नौकरशाही के ढांचे में नई जान फूंकना मोदी के लिए भी न पहले आसान था और न अब. हां कोशिश बड़ी जरूर की जा रही है.
यह कहना सही है कि डिजिटल गवर्नेंस का दौर बढ़ा है. भारत में नवीन लोकप्रबंधन की प्रणाली के रूप में यह संचालित भी हो रहा है पर सुशासन के भाव में तब बढ़ोत्तरी होगी जब सरकार के नियोजन तत्पश्चात होने वाले क्रियान्वयन का सीधा लाभ जनता को मिले. हालांकि जनधन योजना के तहत खोले गये 25 करोड़ से अधिक बैंक खाते कई काम आ रहे हैं. गैस की सब्सिडी इसी के माध्यम से सीधे जनता को मिल रही है पर सरकार जिस प्रकार सब्सिडी हटा रही है और मार्च 2018 तक लगभग इसे समाप्त करने की कोशिश में है. यह सुशासन नहीं बल्कि यह एक आर्थिक गणना है जिसमें लोक कल्याण कम आर्थिक मुनाफे पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है.
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