जाधव केस: मुलाकात नहीं, क्रूर मजाक
कुलभूषण जाधव के बारे में अब हर भारतीय को पता है. इसलिए अलग से उनके बारे में कुछ बताने की आवश्यकता नहीं.
जाधव केस: मुलाकात नहीं, क्रूर मजाक |
पाकिस्तान ने जिस तरह जाधव की उनकी मां एवं पत्नी से मुलाकात कराई उससे उसका पाखंडी और क्रूर चेहरा एक बार फिर उजागर हुआ है. हालांकि पाकिस्तान की रणनीति इसके पीछे यही थी कि दुनिया में संदेश दे सके कि वह मानवीयता के आधार पर काम करता है. पाकिस्तान विदेश विभाग के प्रवक्ता मोहम्मद फैसल की ओर से कहा भी गया कि 25 दिसम्बर को उनकी मुलाकात का दिन इसलिए चुना गया, क्योंकि यह मोहम्मद अली जिन्ना का जन्मदिन है.
पाकिस्तान के एक वर्ग के लिए भले यह मानवीय आधार पर उठाया गया कदम हो, पर हमारे लिए और दुनिया के लिए तो पाकिस्तान ने अपनी असलियत फिर दिखा दी है. आखिर यह कौन-सी मुलाकात हुई जिसके बीच कांच की दीवार खड़ी कर दी गई हो? आखिर ऐसी मुलाकात का क्या अर्थ जिसमें माइक और स्पीकार का प्रयोग हो रहा हो? वहां न केवल कैमरे लगे थे, बल्कि पाकिस्तान के अधिकारी भी उपस्थित थे. यही नहीं, भारत की शर्त के अनुसार एक भारतीय राजनयिक को वहां रहने की अनुमति तो दी गई, लेकिन उनके सामने भी शीशे की दीवार लगा दी गई. तो यह है पाकिस्तान का मानवीय चेहरा! अगर यह मानवीय चेहरा है तो अमानवीय चेहरा किसे कहेंगे? इस सवाल का जवाब पाकिस्तान नहीं दे सकता. इसका जवाब तो हमारे साथ दुनिया को तलाशना होगा. पाकिस्तान विदेश विभाग के प्रवक्ता से जब पत्रकारों ने पूछा कि उनके बीच शीशे की दीवार क्यों लगाई गई तो उनका जवाब था, सुरक्षा के कारण.
मजे की बात देखिए कि इसके पीछे भी वह भारत को ही कारण मानते हैं. यानी भारत ने जाधव की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा था. यह सवाल पाकिस्तान से पूछा जाना चाहिए कि एक बेटे को मां और पति को पत्नी से क्या खतरा हो सकता था? हालांकि भारत में भी ऐसे लोग हैं, जो इस मुलाकात को पाकिस्तान के रवैये में आया बदलाव मानते हैं. ऐसे लोग तो यहां तक कहने लगे हैं कि अब भारत को भी अपने कड़े रवैये में बदलाव लेकर एक कदम आगे बढ़ना चाहिए और पाकिस्तान के साथ फिर से बातचीत की शुरुआत करनी चाहिए. कुछ दिनों पहले यह खबर उड़ी थी कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने नेताओं से भारत के साथ बातचीत करने को कहा है. ऐसा उन्होंने कहा या नहीं, इसका कोई प्रमाण नह है. किंतु यह भारत है, जहां पता नहीं क्यों कुछ लोगों को पाकिस्तान का क्रूर और आतंकी चेहरा लगातार नहीं दिखता. वास्तव में इनके आधार पर देश की नीति का फैसला करना कठिन है. साफ है कि पाकिस्तान की रणनीति का इन पर प्रभाव पड़ा है. अमेरिका का दबाव उस पर है और उसने जाधव की परिवार के साथ मुलाकात को मानवीय आधार पर लिया गया फैसला बताकर इतना प्रचारित किया है कि कुछ लोगों का उसके झांसे में आना स्वाभाविक है.
जाधव की मां और पत्नी को मिलने के पहले कपड़े बदलाव गए और उनको अपने आभूषण तक उतारने को मजबूर किया गया. कपड़े और आभूषण से क्या समस्या हो सकती है, यह समझना किसी के लिए भी कठिन है. ऐसे रवैये को मानवता की किस परिभाषा के तहत रखा जाए यह फैसला उन लोगों को करना है, जो इस मुलाकात से उत्साहित हैं. पाकिस्तान का रवैया कुलभूषण जाधव के बारे में जो पहले था वही आज भी है. उसके विदेश विभाग के प्रवक्ता ने साफ शब्दों में कहा कि मुलाकात का मतलब यह नहीं कि जाधव के प्रति हमारी नीति बदल गई है. वह आतंकवादी गतिविधियों और तोड़फोड़ में संलिप्त था और एक व्यक्ति की हत्या उसने स्वीकार किया है. ध्यान रखने की बात है कि भारत ने इसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में अपील की थी, जिसने 18 मई 2017 को अंतिम फैसला दिए जाने तक फांसी देने पर रोक लगा रखी है. इस तरह, जाधव आज जिंदा है तो केवल अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के कारण. जाधव के मामले में पाकिस्तान का पूरा व्यवहार झूठ पर टिका है. इस मुलाकात के बाद भी जाधव का एक वीडियो जारी कराया गया, जिसमें वे पाकिस्तान को इस मुलाकात के लिए शुक्रिया अदा कर रहे हैं. वे कह रहे हैं कि उन्होंने पाकिस्तानी अधिकारियों से मुलाकात कराने के लिए कहा था और उन्होंने उनकी अपील स्वीकार कर ली. इसमें जाधव मुलाकात वाले कपड़े में नहीं हैं. इसका अर्थ है कि इस वीडियो की रिकॉर्डिग पहले ही करा ली गई थी.
इसके पहले भी जाधव से अपराध कबूल करवाने का जो वीडियो सामने आया था, उसमें करीब 105 कट थे. पाकिस्तान जाधव के मामले में लगातार झूठ का सहारा ले रहा है. जब मार्च 2016 में पाकिस्तान की ओर से बयान आया कि उसने कुलभूषण जाधव नाम के एक रॉ के जासूस और आतंकवादी गतिविधियां चलाने वाले शख्स को पकड़ा है तो भारत ने तत्क्षण स्वीकार किया कि हां, वे उनके नागरिक हैं लेकिन वह नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं, जो ईरान से व्यापार करते थे. उसकी मानवीयता का आलम तो यह है कि वियना संधि के तहत उससे कॉन्स्यूलर एक्सेस के लिए कहा गया तो उसने इनकार कर दिया. मजे की बात देखिए कि मां और पत्नी से मुलाकात के बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा कि यह कॉन्स्यूलर एक्सेस ही तो है. क्या मजाक है? हालांकि बाद में साफ किया गया कि कॉन्स्यूलर एक्सेस की कोई योजना नहीं है. आखिर क्यों? मुंबई हमले में पकड़े गए आतंकवादी कसाब तक को भारत ने कॉन्स्यूलर एक्सेस का प्रस्ताव दिया था, लेकिन पाकिस्तान ने तो उसे अपना नागरिक मानने से ही इनकार कर दिया. यह होता है मानवीय व्यवहार.
प्रश्न है कि भारत को अब क्या करना चाहिए? जाधव का मामला देश के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है. अभी हम अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला लड़ रहे हैं. परंतु जाधव पाकिस्तान की जेल में सुरक्षित है, इसकी कोई गारंटी नहीं. आखिर सरबजीत की त्रासदी हम भूले नहीं हैं. तो भारत को साफ घोषणा करनी होगी कि अगर जाधव के साथ कुछ ऐसा-वैसा हुआ तो पाकिस्तान को उसका परिणाम भुगतना पड़ेगा. जिस तरह से पाकिस्तान ने मुलाकात को एक क्रूर मजाक में बदला है, उसके बाद उससे किसी तरह की उम्मीद करनी बेमानी होगी.
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