नजरिया : गुजरात के आगे भी जीत है

Last Updated 24 Dec 2017 03:12:29 AM IST

गुजरात चुनाव के नतीजों ने 2019 में देश की दिशा तय कर दी है.


नजरिया : गुजरात के आगे भी जीत है

ये नतीजे इसलिए महत्त्वपूर्ण हैं कि राज्य में 22 साल की सत्ता से पनपी विरोधी लहर तो मौजूद थी ही, चर्चित पाटीदार आंदोलन, केंद्र की नोटबंदी और जीएसटी ने गुजरात चुनाव को देश के भविष्य का संकेत मान लिया था. लेकिन नतीजों के बाद कहना होगा कि जनता में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू जारी है और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति का विकल्प नहीं है. वरना क्या कारण हो सकता है कि 2014 में जो पार्टी देश के केवल पांच राज्यों तक सीमित थी, महज साढ़े तीन सालों में ही 19 राज्यों तक फैल चुकी है,  और देश की करीब 75 फीसद आबादी पर उसका शासन है. 2014 में लोक सभा चुनाव के दौरान कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के महज साढ़े तीन साल में ही यह लक्ष्य 87 फीसद पूरा हो चुका है.
दरअसल, गुजरात चुनाव को एक राज्य के विधानसभा चुनाव के तौर पर देखा ही नहीं जा रहा था. भाजपा और कांग्रेस, दोनों दल इसे 2019 की हवा तय करने वाला चुनाव मान कर ही मैदान में कूदे थे. इसकी एक वजह तो यह थी कि गुजरात प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का गृह प्रदेश है, इसलिए चुनाव के भावी परिणामों को इन दोनों की लोकप्रियता के उतार-चढ़ाव का पैमाना माना जा रहा था, तो दूसरी ओर माना जा रहा था कि इस उद्योग संपन्न प्रदेश के चुनावी नतीजों से तय हो जाएगा कि जीएसटी-नोटबंदी का क्या असर हुआ है. ये आकलन गुजरात को ध्यान में रख कर नहीं, बल्कि आम चुनाव को ध्यान में रख कर किए जाने थे.

जाहिर है, किसी प्रदेश की राजनीति में जितनी ताकत झोंकी जाती है, दोनों ही दलों ने उससे कहीं ज्यादा ताकत गुजरात चुनाव में झोंक रखी थी. कांग्रेस को यहां से 2019 की रेस शुरू करनी थी, तो बीजेपी को साबित करना था कि जनता में उसकी लोकप्रियता और विसनीयता उसी तरह कायम है, जैसी लोकप्रियता के साथ 2014 में वह प्रचंड बहुमत लेकर केंद्र में सत्तासीन हुई थी. और भाजपा ने यह साबित भी कर दिया. गुजरात में राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार की अलग रणनीति अपनाई. लेकिन यह रणनीति परंपरागत ही रही. कोई चौंकाने वाली बात सामने नहीं आई. वहीं मोदी चुनाव प्रचार में हर बार कुछ न कुछ ऐसा जरूर कर देते हैं, जो लोगों से उन्हें जोड़ता भी है, और विरोधियों को चौंकाता भी है. इस बार पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए मोदी ने हजारों कैडरों से सीधे फोन पर बातचीत की. इससे कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा और वे समर्पित होकर काम करते नजर आए. दरअसल, आम जनता से जुड़कर रहना मोदी का राजनीतिक स्वभाव बन चुका है. फेसबुक और ट्वीटर पर सक्रिय दुनिया के वे सबसे बड़े नेता हैं. आम लोगों को भी फॉलो करते हैं. मन की बात के जरिए आम लोगों से इंटरेक्ट करते हैं. इंस्टाग्राम पर तस्वीरें डालकर, ट्वीट कर यानी किसी न किसी प्रकार से वे जनता के साथ बातचीत करते रहते हैं. चुनाव के दौरान इस काम का उन्हें निश्चित रूप से फायदा मिलता है. शायद यह भी एक वजह है कि नोटबंदी, जीएसटी और पाटीदार जैसे मुद्दे गुजरात विधानसभा चुनाव में असर नहीं डाल सके और भाजपा को इसका फायदा मिला. इतना ही नहीं, हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश की घरेलू तिकड़ी से घिरी भाजपा को राहुल के तीखे और आम लोगों की दुखती रग पर हाथ रख देने वाले धुंआधार चुनाव प्रचार का भी सामना करना पड़ रहा था, जो कांग्रेस अध्यक्ष की ताजपोशी के लिए तैयार राहुल का शायद पिछले 13 वर्षो के सबसे आक्रामक चुनावी अभियान के रूप में देखा जा रहा था. राहुल के लिए अध्यक्ष पद संभालने से पहले और 2019 की तैयारियों को देखते हुए ये चुनाव क्या मायने रखते थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने गुजरात में ताबड़तोड़ 30 रैलियां कीं और 32,000 किमी. की यात्रा की. गुजरात पर फोकस रखने के लिए हिमाचल प्रदेश को अनदेखा कर दिया और वहां महज 3 रैलियां कीं. इसलिए कि साढ़े तीन साल की मोदी सरकार को गुजरात में ही विफल करार देकर 2019 का रास्ता तैयार किया जाए.
भाजपा के लिए चिंता की बात यह थी कि राहुल की सभाओं में भीड़ भी जुट रही थी. लेकिन यह मोदी और अमित शाह का ही करिश्मा था कि पार्टी संगठन ने राहुल के व्यापक समर्थन को भी वोट में तब्दील नहीं होने दिया. भाजपा के लिए गुजरात चुनाव कितना अहम था, इसे समझने के लिए उस लाव-लश्कर को देखना जरूरी है, जो पूरे चुनाव अभियान के दौरान गुजरात में डेरा डाले रहा. केंद्र सरकार के तकरीबन सारे मंत्री किसी न किसी समय गुजरात में पार्टी के लिए जान लड़ाते नजर आए. यहां तक कि मोदी ने भी राहुल की काट के लिए 34 रैलियां कर डालीं और चुनाव अभियान के दौरान राहुल से 10,000 किमी. से ज्यादा की दूरी तय की. यह मोदी का ही करिश्मा है कि एक समय पिछड़ती-सी लग रही भाजपा ने न केवल सत्ता बरकरार रखी, बल्कि पिछली बार की तुलना में यहां 1.25 प्रतिशत वोटों की बढ़ोतरी भी की.
गुजरात के प्रतिष्ठापूर्ण चुनाव में जहां मोदी का जादू वोटों में तब्दील होता दिखाई दिया, वहीं अमित शाह का प्रबंधन पार्टी को एकजुट रखने में कामयाब रहा. उनके नेतृत्व में पार्टी अपने वोटरों को बूथ तक लाने में सफल रही. मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की इस जुगलबंदी ने उत्तराखंड, झारखंड, महाराष्ट्र, हरियाणा, गोवा, असम, मणिपुर, अरु णाचल प्रदेश और अब हिमाचल प्रदेश से कांग्रेस को बाहर कर दिया. हिमाचल में तो पार्टी ने 68 में से 44 सीटें जीत कर जबर्दस्त जीत दर्ज की है. गुजरात और हिमाचल के साथ अब भाजपा ने 14 राज्यों में अपनी सरकार बना ली है, जबकि 5 राज्यों, नगालैंड, सिक्किम, आंध्र प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और बिहार में उसकी गठबंधन सरकार है. अब तक 29 राज्यों में से 19 में केसरिया रंग छा चुका है. दूसरी तरफ कांग्रेस अब सिर्फ 5 राज्यों कर्नाटक, पंजाब, पुडुचेरी, मेघालय और मिजोरम तक सिमट कर रह गई है. भाजपा के लिए यह बड़ी उपलब्धि है कि उसने असम के साथ साथ पूर्वोत्तर राज्यों में कमल खिला दिया है. इसका श्रेय पूरी तरह मोदी को जाता है, जिन्होंने इन राज्यों के न सिर्फ  ताबड़तोड़ दौरे किए हैं, बल्कि कई बड़ी सौगातें भी इन छोटे राज्यों को दी हैं. म्यांमार, भूटान और चीन की सीमा पर सेना की सक्रियता का एक मतलब यह भी है कि इन इलाकों में भाजपा के रणनीतिकार अपनी राजनीतिक पैठ बढ़ाने के लिए सक्रिय हैं.  प. बंगाल में भी अब भाजपा पहले के मुकाबले काफी मजबूत हो चली है. इसके अलावा, वाम दलों के प्रभाव वाले केरल पर भी पूरा ध्यान दिया गया है.
2018 में जिन 8 राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें भाजपा के लिए मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और कर्नाटक बेहद अहम हैं. इनमें तीन राज्यों में उसे अपनी सत्ता बचानी है, तो कर्नाटक को कांग्रेस से छीनने की चुनौती सामने है. पूर्वोत्तर के मेघालय और मिजोरम में भी उसका मुकाबला सत्तारूढ़ कांग्रेस से है, तो त्रिपुरा में वाम मोर्चे से. नगालैंड में अपनी गठबंधन सरकार को बनाए रखना भी उसकी प्राथमिकता है क्योंकि 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले अपनी ताकत और लोकप्रियता दिखाने का यह आखिरी मौका होगा. बहरहाल, अब तक की रेस तो यही कह रही है कि गुजरात के आगे भी जीत है.
 

उपेन्द्र राय
‘तहलका’ के सीईओ व एडिटर-इन-चीफ


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment