पैराडाइज पेपर्स व्यावहारिक रुख अपनाएं

Last Updated 13 Nov 2017 04:59:37 AM IST

डेढ़ वर्ष पहले हमारे सामने पनामा दस्तावेज आए थे और अब पैराडाइज है. दोनों में सनसनाहट का अंश एक समान है. किंतु सनसनाहट के अनुरूप ही इसके परिणाम भी आएंगे इसे लेकर संदेह की पूरी गुंजाइश है.


पैराडाइज पेपर्स व्यावहारिक रुख अपनाएं.

ध्यान रखिए इंटरनेशनल कंसोर्टयिम आफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) ने ही पनामा दस्तावेज भी लीक किए थे और उसी ने पैराडाइज दस्तावेज भी सामने लाया है और वही जर्मन अखबार ‘जीटॉयचे साइटुंग’ ने इसे छापा है. इसमें दुनिया भर के राजनेताओं, कलाकारों, व्यापारियों, कॉरपोरेट घरानों आदि के नाम हैं, जिनके बारे में धारणा यह बन रही है उन्होंने अपने देश से छिपाकर उन देशों में निवेश किए या कंपनियां बनाकर कारोबार किए जहां कर नहीं लगता या कम लगता है.

सामान्य निष्कर्ष यह निकल सकता है कि ऐसे सारे लोग बेईमान हैं और इनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. 180 देशों की सूची बनाकर आईसीआईजे ने भारत को 19 वां स्थान दिया है. इसका अर्थ यह हुआ कि भारत का स्थान भले सबसे ऊपर नहीं है लेकिन काफी ऊपर है. कुल 714 भारतीयों के नाम होने का अर्थ भी यही है. पैराडाइज दस्तावेज सामने आने के साथ ही कुछ लोग याद दिला रहे हैं कि जब पनामा दस्तावेज में कुछ नहीं हुआ तो इसमें क्या हो सकता है? पहली नजर में बात सही भी लग सकती है. किंतु यह पूरे मामले का एक पहलू है. कई बार पहली नजर में कोई तथाकथित खुलासा जितनी सनसनाहट पैदा करती है उसमें कानूनी कार्रवाई के तथ्य उतने नहीं होते.

जिन लोगों ने इन दस्तावेजों को बाहर लाने में परिश्रम किया है हम उनका महत्त्व कम नहीं कर रहे. यह दावा किया गया है कि इसमें उन फर्म और फर्जी कंपनियों के बारे में बताया गया है, जो दुनिया भर में अमीरों और ताकतवर लोगों का पैसा दूसरे देशों में भेजने में उनकी मदद करते हैं. लेकिन इन्होंने दस्तावेज प्रकाशित करने के साथ ही उसमें यह स्पष्टीकरण दिया है कि विदेशों में कंपनियों या न्यासों के पंजीकरण वैध कायदे से भी किया जाता है और इसमें किसी नाम आने का मतलब यह नहीं है कि संबंधित व्यक्ति या इकाई ने कानून का उल्लंघन किया ही है.

आखिर ऐसा स्पष्टीकरण की इन्हें आवश्यकता क्यों पड़ी? अगर ये इसे भ्रष्टाचार मानते हैं तो इन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था. वस्तुत: इस एक पंक्ति के स्पष्टीकरण से पूरा मामला कमजोर हो जाता है. दूसरे, आईसीआईजे की वेबसाइट ने भी सभी लोगों और इकाइयों के नाम और ब्योरे भी जारी नहीं किए हैं. अगर वाकई इसमें 1 करोड़ 34 लाख दस्तावेज हैं तो इसका अध्ययन आसानी से नहीं हो सकता है. यह मानना उचित नहीं है कि भारत में इसका संज्ञान नहीं लिया गया है. वास्तव में पनामा दस्तावेजों की जांच कर रहे बहु एजेंसी समूह (एमएजी) को ही इसकी भी जांच सौंप दी गई है. यह केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष की अध्यक्षता वाला समूह है, जिसमें केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के दूसरे अधिकारी, प्रवर्तन निदेशालय, रिजर्व बैंक और वित्तीय खुफिया इकाई के प्रतिनिधि शामिल हैं.



केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा है कि जैसे-जैसे उन्हें दस्तावेज हाथ लगेंगे वैसे-वैसे ही उनकी कार्रवाई आगे बढ़ सकती है. वित्त मंत्रालय की ओर से तत्काल विज्ञप्ति जारी कर कहा गया कि जिन लोगों या कंपनियों के नाम सामने आए हैं उनमें से कुछ पर पहले से ही नजर थी. इनमें से कुछ के खिलाफ काला धन विदेश में छिपाने को लेकर पहले से ही जांच चल रही है. इसके अलावा बाजार नियामक सेबी विभिन्न सूचीबद्ध कंपनियों और उनके प्रवर्तकों द्वारा कोष की कथित हेराफेरी और कंपनी संचालन में खामी की जांच करेगा. इसमें विजय माल्या से जुड़े प्रवर्तक शामिल हैं. पैराडाइज पेपर में माल्या का नाम भी शामिल है. अगर सूचीबद्ध कंपनियों और उनसे जुड़ी या उनके प्रवर्तकों के बारे में खुलासा किया जाता है तो यह देखा जाएगा कि कंपनी संचालन या खुलासा नियमों या कोष की हेराफेरी समेत कोई अनियमितता तो नहीं की गई. इस तरह दो प्रकार से इनकी जांच होगी. आयकर विभाग तो अपनी ओर से उनके रिटर्न की समीक्षा करेगा ही. जो जानकारी दी गई है उसके अनुसार बरमूडा की प्रतिष्ठित विधि सलाहकार कंपनी एप्पलबाय के कम्प्यूटर रिकॉर्ड से निकाले गए इन दस्तावेजों में करीब 70 लाख कर्ज समझौते, वित्तीय ब्योरे, ई-मेल, ट्रस्ट के कागजात और अन्य दस्तावेज शामिल हैं. ये दस्तावेज करीब 50 साल के हैं. जरा सोचिए, क्या इसकी संपूर्ण जांच संभव भी है?

119 साल पुरानी कंपनी ऐप्पलबाय वकीलों, अकाउंटेंट्स, बैंकर्स और अन्य लोगों के नेटवर्क की एक सदस्य है. इस नेटवर्क में वे लोग भी शामिल हैं, जो अपने मुवक्किलों के लिए विदेशों में कंपनियां बनाते हैं और उनके बैंक खातों का प्रबंधन करते हैं. इनका दावा है कि ये कोई गैर कानूनी काम नहीं करते. हालांकि ये कानूनों का लाभ उठाकर निजी व्यक्तियों और कंपनियों को धन बचाने और छिपाने में मदद करते हैं इस सच से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है. किंतु इनका गला पकड़ना अत्यंत कठिन है. यहां यह जानना भी जरूरी है कि ऐप्पलबाय का दूसरा सबसे बड़ा मुवक्किल एक भारतीय कंपनी है, जिसकी दुनियाभर में करीब 118 सहयोगी कंपनियां हैं. ऐप्पलबाय के भारतीय मुवक्किलों में कुछ बड़े कॉर्पोरेट्स और कंपनियां हैं. इसे भी अपने कारोबार की चिंता है.

इसने जांच में पूरा सहयोग करने का भरोसा दिया है. दस्तावेज में जितने नाम अभी तक आए हैं उन सबका उल्लेख करना यहां आवश्यक नहीं है. चूंकि इनमें दुनिया भर की बड़ी हस्तियों के नाम हैं, इसलिए भारत के साथ दुनिया भर के उन देशों की इससे संबंधित गतिविधियों पर भी नजर रखनी होगी. कोई दस्तावेज कहीं किसी कम्प्यूटर से उड़ा लेना और फिर उसके एक-एक पहलू की जांच कर सच्चाई तक पहुंचने में आकाश और पाताल का अंतर होता है. इस कटु यथार्थ को हमें समझना चाहिए. यदि केवल कर बचाने के लिए निवेश किया गया है तो आप उसे अनैतिक तो कह  सकते हैं, इसके लिए उसे सजा नहीं दी जा सकती. फिर भी भारत एवं दुनिया भर में होने वाली जांच के परिणामों की प्रतीक्षा करेंगे.

 

 

अवधेश कुमार


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