वैश्विकी : भारत-पाक को एक पलड़े पर न रखें ट्रंप

Last Updated 29 Oct 2017 12:41:37 AM IST

शी जिनपिंग के कार्यकाल का एक और विस्तार नई विश्व व्यवस्था के उभरने का संकेत है.


वैश्विकी : भारत-पाक को एक पलड़े पर न रखें ट्रंप

अमेरिका समझ रहा है कि चीन का वर्चस्ववादी विकास का एजेंडा और अपने पड़ोसियों के प्रति उसकी आक्रामक नीति एशिया में वाशिंगटन के प्रभाव को कम कर सकता है. अत: चीन की विस्तारवादी नीतियों पर अवरोध और शक्ति-संतुलन की खातिर वह इस क्षेत्र में प्रमुख खिलाड़ी बना रहना चाहता है. अपनी इस रणनीतिक योजना में भारत की अहमियत को वह बखूबी समझता है. सामान्य तौर पर मार्क्‍सवादी और उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था परस्पर विरोधी मानी जाती है.  इन दोनों विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले देश अपने राजनीतिक मूल्यों और विों के आधार पर एक समूह बना कर अपनी वैचारिक एकता प्रदर्शित करते रहे हैं. सोवियत संघ के बिखरने से पूर्व और शीतयुद्ध के दौरान एक-दो अपवादों को छोड़कर यह देखने में आता रहा है. भारत अपनी गुटनिरपेक्षता की नीति के चलते तीसरी राह पकड़ कर चला था. लेकिन अब विश्व व्यवस्था पूरी तरह बदली हुई है.

एशिया और विशेषकर भारत के संदर्भ में ट्रंप के रुख में जो बदलाव आया है, अमेरिकी विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन की दिल्ली यात्रा ने उसको रेखांकित किया है. अमेरिका अफगानिस्तान और भारतीय प्रशांत क्षेत्र में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका बढ़ाने का पक्षधर है. दरअसल, भारत ट्रंप की अफगान नीति की रीढ़ है. मजबूत और सक्षम भारत अमेरिकी हितों को बेहतर ढंग से संरक्षित कर सकता है. सच तो यह भी है कि नई दिल्ली के साथ वाशिंगटन के लिए जितने ज्यादा हित जुड़ते हैं, उतने किसी और देश के साथ नहीं. दोनों देशों की राजनीतिक संस्कृति साझी है, राजनीतिक आस्थाएं समान हैं और आतंकवाद के मसले पर दोनों के सामने चुनौतियां समान हैं. विश्व शक्ति के रूप में उभर रहा चीन का एकदलीय अधिनायकवादी तंत्र अमेरिका और भारत दोनों की चिंता का समान कारण है. ट्रंप-प्रशासन इस खतरे से वाकिफ है. इसलिए टिलरसन ने दिल्ली यात्रा के दौरान द्विपक्षीय संबंधों के स्तर, रफ्तार और संभावना बढ़ाने के संकल्प के साथ भारत को अत्याधुनिक सामरिक तकनीक देने का वचन दिया.
भारत-अमेरिकी रिश्तों का एक अहम आयाम पाकिस्तान भी है. टिलरसन भारत आने के पहले पाकिस्तान भी गए थे. उन्होंने भारत में यह जरूर कहा कि ट्रंप की अफगान नीति तभी प्रभावी होगी, जब पाकिस्तान अपनी धरती पर आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करेगा. लेकिन उन्होंने यह भी संकेत दिया कि अमेरिका आतंकवाद का मुकाबला करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान से मिल कर काम करना चाहता है. इसका अर्थ यह है कि अमेरिका आतंकवाद के खिलाफ गंभीर नहीं है और वह पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए राजी नहीं है. पाकिस्तान और आतंकवाद के मसले पर असफल हो चुकी अमेरिकी नीति में कोई बदलाव नहीं आया है. अमेरिका ने 75 आतंकवादियों की जो सूची पाक को सौंपी है, उनमें हाफिज सईद का नाम नहीं है. आतंक पर भारत और पाक को एक तराजू पर रखने की अमेरिकी नीति दिल्ली-वाशिंगटन के रिश्तों को गहरी दोस्ती में तब्दील नहीं होने देंगी. इससे अंतत: अमेरिका ही कमजोर होगा.

डॉ. दिलीप चौबे


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