कश्मीर : नई साजिश है चोटीकांड
कश्मीर में महिलाओं की चोटी काटने और इससे संबंधित हिंसा की घटनाएं लगातार हो रही हैं. घाटी में माहौल ऐसा बना हुआ है कि कोई भी कहीं भी शक के घेरे में आ सकता है.
कश्मीर : नई साजिश है चोटीकांड |
फिर चाहे वह स्थानीय हो या पर्यटक या सुरक्षाकर्मी या सेना का जवान, बूढ़ा हो या विक्षिप्त या फिर विकलांग, संदेह किसी पर भी किया जा सकता है. सिर्फ संदेह के आधार पर भीड़ उत्तेजित होकर हिंसा कर रही है. हिंसक भीड़ के इन हमलों में कुछ मौतें भी हुई और कई गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं. जम्मू-कश्मीर पुलिस के मुताबिक एक महीने में 130 चोटी काटने की घटनाएं वादी में हो चुकी हैं.
जम्मू-कश्मीर पुलिस अभी तक किसी चोटी काटने वाले को पकड़ नहीं सकी है. सुराग देने वाले को 6 लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा भी की गई है. लेकिन कुछ ठोस हाथ नहीं आया है. चोटी काटने की वारदातों से उत्पन्न अफवाहों ने पूरी घाटी को मानो अपने चपेट में ले लिया है. चोटीकटवा के नाम पर लोग क्रूर हिंसा पर उतर आए हैं.
रास्ते में कोई भी सवाल पूछ सकता है और अगर जवाब ठीक से न दे पाए या फिर पहचान पत्र साथ न हो तो स्थानीय लोगों के निशाने पर आ सकते हैं. क्रूरता तो इस हद तक हो गई है कि कश्मीर के सोपोर में एक मंद बुद्धि युवक वसीम अहमद तांत्रे को चोटीकटवा समझ कर भीड़ ने पीट-पीट कर अधमरा कर दिया और फिर उसको जिंदा जलाने की कोशिश भी की.
श्रीनगर की डल झील में तब हलचल मच गई जब कुछ लोगों ने एक व्यक्ति को चोटीकटवा समझ पर पानी में डुबोने की कोशिश की. विदेशी पर्यटकों पर भी हमला किया गया. श्रीनगर के रैनावारी इलाके में 6 विदेशी पर्यटकों पर करीब 1000 लोगों की भीड़ ने हमला कर दिया. समय रहते अगर पुलिस नहीं पहुंचती तो इन विदेशी पर्यटकों के साथ भीड़ कुछ भी कर सकती थी. इस तरह सेना और अर्धसैनिक बल के जवानों पर भी हमले हो रहे हैं. कुपवाड़ा में सेना के चार जवानों पर हमला हुआ, जिसमें से एक गंभीर घायल हुआ.
देश के विभिन्न हिस्सों से चोटी काटने की खबरें आना बंद हो गई. लेकिन कश्मीर में ये सिलसिला लगातार हो रहा है. सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है? कश्मीर आंतकवाद ग्रस्त इलाका है. आतंकवादी और उनके समर्थक भय और धर्म के नाम पर आम जनता को दबा कर रखने की रणनीति से चलते हैं. अफवाहें फैलाना इसी रणनीति का एक अहम हिस्सा है, जिसे आम जनता का दिल-दिमाग उलझाने में मदद मिलती है. पिछले कुछ समय से घाटी में आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो रही है. इस साल 100 से अधिक आतंकवादी मारे जा चुके हैं.
इस कार्रवाई के साथ-साथ हुर्रियत के खिलाफ आतंकी फंडिग मामलों की जांच कर रही है और कई गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं. और ऐसे में चोटी कांड इन देश विरोधी ताकतों को बल देना का काम कर रहा है. हुर्रियत ने इन चोटी काटने वाली वारदातों के लिए सरकार और सुरक्षा बल को जिम्मेदार ठहराया है. स्थानीय सोशल मीडिया में भी इसकी चर्चा है. हुर्रियत की कोशिश लगातार यही रहती है कि किसी तरह से सेना के खिलाफ माहौल बना रहे. ऐसे में चोटी काटने वाला विचार उनके लिए एक घातक हथियार बन गया है.
सवाल यह भी है घाटी में मुस्लिम महिलाओं की ही चोटियां क्यों काटी जा रही है? ये सवाल अटपटा लग सकता है क्योंकि 1990 में कश्मीरी हिन्दुओं के पलायन के बाद घाटी में मुस्लिम की ही आबादी है जबकि गैर मुस्लिम मुश्किल से एक प्रतिशत होंगे. मुस्लिम महिलाएं बुरका या हिजाब के बिना घर से बाहर नहीं निकल सकती हैं.
जब घाटी में आतंकवाद शरू हुआ तो सबसे पहले महिलाओं के लिए ड्रेस कोड लागू किया गया. इससे लागू करने में आतंकवादी संगठनों के साथ साथ कट्टरपंथ दुख्तरान-ए-मिल्लत ने भी कश्मीरी महिलाओं पर अत्याचार करके ड्रेस कोड लागू किया जो आज तक चल रहा है. ऐसे में हिजाब में या बुर्के में जा रही महिला की चोटी कैसे कोई काट सकता है?
इस सवाल में ही जवाब छिपा है. एक षड्यंत्र के तहत घाटी में चोटी कांड को फैलाया जा रहा है. कश्मीर में रह रहे लोगों की त्रासदी है कि पिछले 30 साल से वे आतंक के खौफ, धर्म के नाम पर भावनात्मक शोषण और अब इस तरह की अफवाहों के आधार पर मार काट को झेल रहे हैं. इस सब में कश्मीरी युवा ही सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है. शायद इस कारण चोटी कांड से संबंधित हिंसा में ज्यादातर युवा ही शामिल हैं. ये युवा अनपढ़ या पिछड़े नहीं है. फिर भी अफवाहों को सच मान कर हिंसा करने में जरा भी संकोच नहीं कर रहा है. और यह बहुत ही खतरनाक है.
| Tweet |