गुजरात चुनाव : बहस में विकास नदारद

Last Updated 24 Oct 2017 06:06:05 AM IST

गुजरात में विकास सचमुच पागल हो गया लगता है. इसमें किसी को कोई शक-शुबहा रहा भी होगा, तो कम-से-कम अब, गुजरात की राजधानी, गांधीनगर में नरेन्द्र मोदी की सोमवार, 16 अक्टूबर की बहुप्रचारित रैली के साथ दूर हो जाना चाहिए.


गुजरात चुनाव : बहस में विकास नदारद

बेशक, अपनी पार्टी की 15 दिन की ‘गुजरात गौरव यात्रा’ के समापन के मौके पर हुई रैली में, जिसे भाजपा कार्यकर्ताओं की सबसे विशाल रैली के रूप में प्रचारित किया जा रहा था, प्रधानमंत्री ने बार-बार अपने और अपनी पार्टी के ‘विकास’ का पक्षधर होने का दावा किया. यहां तक कि उन्होंने इसका एलान भी कर दिया कि गुजरात का आने वाला चुनाव, ‘विकासवाद बनाम वंशवाद’ के बीच होगा. लेकिन इसके बावजूद वास्तव में वह न सिर्फ गुजरात के चुनाव को खुद अपने और राहुल गांधी के बीच एक द्विध्रुवीय, ‘व्यक्तित्वों का मुकाबला’ बनाने की प्रवृत्तियों को ही हवा देते नजर आए, प्रधानमंत्री जोर-शोर से विकास के लाभों का कोई तर्क पेश करने के बजाए, गुजराती जनता को भावनाओं के ज्वार में बहाने की ही कसरत करते नजर आए. इस रैली से अपनी पार्टी के चुनाव प्रचार की आधिकारिक रूप से शुरुआत करते हुए नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के चुनाव के लिए भाजपा के प्रचार को मजबूती के साथ गुजराती गौरव, गुजराती अस्मिता आदि के नारों से बांधने का भी रास्ता दिया, जो विकास को एक रस्मी नारा मात्र बनाकर रख देने वाला है.

जाहिर है कि गुजराती गौरव की दुहाई को चलाने के लिए, नरेन्द्र मोदी को ‘गुजरात दुश्मन’ की खोज थी, जो उन्होंने बड़ी आसानी से गढ़ लिया. अपनी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी को और वास्तव में जवाहरलाल नेहरू से लेकर राहुल गांधी तक गांधी-नेहरू परिवार को गुजरात और गुजराती-दुश्मन बनाकर पेश करने में उन्हें क्यों कोई संकोच होता? उन्होंने सरदार पटेल से लेकर मोरारजी देसाई तक और दूसरे भी कई नेताओं के साथ ‘अन्याय’ की खासी लंबी झूठी-सच्ची सूची पेश की. उन्होंने सरदार सरोवर परियोजना से लेकर, राजस्थान से पानी तक के मामलों में गुजरातियों के साथ हुए अन्याय गिनाए.

और इस सब को शीर्ष पर ले जाते हुए उन्होंने, खुद अपनी गिरफ्तारी के षडयंत्र रचे जाने का भी आरोप लगाया. अपने जोड़ीदार, अमित शाह की गिरफ्तारी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने दावा किया कि शाह की गिरफ्तारी के पीछे वास्तव में असली निशाने पर तो मोदी ही थे! वैसे यह कार्यनीति तो मोदी इससे पहले भी, 2002 के अल्पसंख्यक विरोधी नरसंहार की पृष्ठभूमि में हुए गुजरात के आम चुनाव में ‘शानदार’ कामयाबी के साथ आजमा चुके  थे और नरसंहार के कांग्रेस समेत सभी आलोचकों को ‘पांच करोड़ गुजरातियों’ का दुश्मन बनाकर खड़ा कर के, कथित गुजराती गौरव को वोटों में तब्दील कर के दिखा चुके थे. याद रहे कि यह ‘गुजराती गौरव’ जितना शेष गैर-गुजरातियों के विरुद्ध था उतना ही खुद गुजरातियों के एक हिस्से यानी घोषित रूप से मुसलमानों के और अघोषित रूप से दलितों व आदिवासियों के भी विरुद्ध था.

यही वह चुनाव था जिसमें खुद नरेन्द्र मोदी ने नरसंहार के बाद काम कर रहे अल्पसंख्यकों के शरणार्थी कैंपों को ‘बच्चे पैदा करने वाली फैक्टरियां’ बताया था और ‘हम पांच, हमारे पच्चीस’ का हामी करार देकर, मुसलमानों पर हमला किया था. यानी यह गुजराती हिन्दू अस्मिता और गुजराती हिन्दू गौरव का ही मामला था. फिर भी, इस बार के चुनाव में 2002 की कार्यनीति के कुछ तत्व नहीं बल्कि पूरी कार्यनीति ही दुहरायी जा रही नजर आती है. लेकिन, इससे कोई यह न समझे कि इस बार गुजरात में भाजपा का चुनाव अभियान, विकास के प्रश्नों से दूर भले रहे, सांप्रदायिक दुहाई से भी दूर ही रहने वाला है और बिना किसी भेद के सभी गुजरातियों को लेकर चलने जा रहा है. मोदी की भाजपा बखूबी जानती है कि वह गुजराती गौरव की अपनी झूठी दुहाई को, हिन्दुत्व की खपच्चियों के सहारे ही खड़ा कर सकती है. अचरज की बात नहीं है कि खासतौर पर गुजरात में उसकी शुरुआत, मोदी की इस चुनाव की पहली औपचारिक रैली से पहले ही हो चुकी थी, जब गुजरात में प्रचार के लिए, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरखपुर की गोरखनाथ पीठ के प्रमुख, योगी आदित्यनाथ को उतारा गया था.

अचरज नहीं कि अपनी अतिरिक्त रूप से चमकाई गई हिन्दुत्ववादी छवि के साथ आदित्यनाथ ने गुजरात में अपने भाषणों में राहुल गांधी को घेरने की कोशिश की तो, राहुल के गुजरात के अपने दौरे के क्रम में विभिन्न मंदिरों के दर्शन करने के मुद्दे पर. बाद में पड़ोसी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री, शिवराज सिंह चौहान ने भी हमले की इसी लाइन को जारी रखा. जाहिर है कि इस हमले का मकसद हिन्दू होने के नाम पर ही गुजरातियों को भाजपा के पीछे और जाहिर है कि उसके विरोधियों के खिलाफ, लामबंद करना था. आने वाले दिनों में हम इस प्रक्रिया को और तेज होता ही देखेेंगे. हां! यह देखना दिलचस्प होगा कि खुद प्रधानमंत्री मोदी सीधे गुजराती गौरव के इस हिन्दूकरण में भागीदारी करते हैं या चतुर श्रम विभाजन के तहत इसे आदित्यनाथों के ही भरोसे छोड़े रहते हैं. वैसे प्रधानमंत्री ने अपने विरोधियों और खासतौर पर कांग्रेस पर सांप्रदायिकता का सहारा लेने का आरोप लगाकर, इस यज्ञ में खुद अपने हाथों से समिधा डालने का भी संकेत तो कर ही दिया है.

संघ-भाजपा की शब्दावली में यह आरोप वास्तव में, अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण का आरोप है, जो अल्पसंख्यक विरोधी गोलबंदी का उनका जाना-पहचाना हथियार है. याद रहे कि उप्र  के चुनाव में प्रधानमंत्री इसी रास्ते चलकर, ‘कब्रिस्तान बनाम श्मशान’ और ‘दिवाली बनाम रमजान’ की दुहाइयों तक पहुंचे थे! बेशक, आने वाला समय बताएगा कि इस रास्ते चलना भी भाजपा को गुजरात में लगातार पांचवी बार जीत दिला पाता है या नहीं. फिलहाल, इतना तय है कि मोदी इस चुनाव में जोखिम नहीं लेना चाहते हैं. यहां वैसे भी मुख्यमंत्री के कुर्सी पर होते हुए भी, पूर्व-मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री की तस्वीर पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है. इस चुनाव में बदहवास संघ-भाजपा अपना सांप्रदायिक चेहरा ज्यादा से ज्यादा चमकाएंगे.

राजेंद्र शर्मा


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