वैश्विकी : चीन के बदलाव पर दुनिया की नजर
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं कांग्रेस पर पूरी दुनिया के देशों की नजर है ताकि वे आकलन कर सकें कि विश्व महाशक्ति के रूप में उभरने का दावा करने वाला चीन और उसके निर्विवाद नेता शी जिनपिंग आगामी नीतियों और कार्ययोजनाओं का क्या खाका पेश करते हैं!
वैश्विकी : चीन के बदलाव पर दुनिया की नजर |
शी ने पार्टी कांग्रेस में चौदह सूत्री आधारभूत नीति जारी की है, जिसके अंतर्गत चीनी विशिष्टताओं के साथ समाजवादी ढांचे को मजबूत किया जाएगा. 2021 चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का सदी वर्ष होगा और इस दौरान वह गरीबी से मुक्त होकर अपेक्षाकृत समृद्ध राष्ट्र हो जाएगा. 2035 तक वह अग्रिम श्रेणी का नवोन्मेषकारी राष्ट्र होगा, जहां सर्वाधिक आय वाला मध्य वर्ग होगा और आय-संपत्ति का अंतर कम होगा. 2050 चीनी गणराज्य की स्थापना का सदी वर्ष होगा, जब वह विश्व शक्ति के रूप में उभर जाएगा.
शी का समय चीनी इतिहास का निर्णायक समय भी है. अमेरिका और पश्चिमी देशों के पराभव की शुरुआत के बीच शी का अभ्युदय हुआ है. डोनाल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीति ने उसकी विश्व भूमिका को सीमित कर दिया है. इसके कारण विश्व स्तर पर शक्तिशाली देश की शून्यता हो गई है. वैश्विक राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चीन यह शून्य भर सकता है. इसी के मद्देनजर सभी देश अपनी-अपनी नीतियां बना रहे हैं. भारत के प्रति अमेरिका के झुकाव को इसी नजरिये से देखा जा रहा है. आम तौर पर राजनीतिक विश्लेषक मानकर चल रहे हैं कि इस कांग्रेस में शी जिनपिंग के अगले पांच साल के कार्यकाल की पुष्टि होनी है. यह सेंट्रल कमेटी के अधिकार क्षेत्र में है. लेकिन पार्टी संविधान में उनके विचार और नाम को शामिल करके उन्हें माओ जेदांग और देंग सियाओपिंग के बराबर का दर्जा दिया जा रहा है. इससे पता चलता है कि पार्टी में उनका कितना मजबूत नियंत्रण है. पार्टी कांग्रेस के पहले ही कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं को दंडित कर दिया गया था. शी जिनपिंग मानते हैं कि भ्रष्टाचार शरीर की दीमक की तरह खोखला कर रहा है.
हालांकि पश्चिमी मीडिया नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ चलाए गए अभियान को राजनीतिक प्रतिशोध की कार्रवाई बता रहा है. शी जिनपिंग ने जनता का राज कायम करना, हर स्तर पर पीपुल्स आर्मी पर पार्टी का नियंत्रण और चीनी परिस्थितियों में समाजवादी सिद्धांतों पर कायम रहने की अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है. इस संदर्भ में दो बातें महत्त्वपूर्ण हैं. जनता का राज सीधे अथरे में अभिव्यक्ति की आजादी से जाकर जुड़ता है. चीन जिस तरह आर्थिक प्रगति कर रहा है, उसमें जनता की लोकतांत्रिक अपेक्षाएं भी बढ़ेंगी. देखते हैं कि चीन अपने समाजवादी राजनीतिक ढांचे में लोकतांत्रिक मूल्यों का समावेश कैसे करता है. दूसरी अहम बात असहमति के अधिकार से संबंधित है, जिसके आधार पर ही सही मायने में जनता का राज माना जाता है. आम जनता, कम्युनिस्ट नेता और कार्यकर्ताओं की असहमति के अधिकार को किस सीमा तक समावेशित करते हैं. ये प्रमुख चुनौतियां उन पर दबाव बनाती रहेंगी. इनको किस सीमा तक अपनी शासन व्यवस्था का हिस्सा बना पाएंगे, यह आने वाला समय बताएगा.
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