वायु प्रदूषण : कोर्ट का निर्देश बेअसर!
दिवाली से ऐन पहले बीती 9 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली-एनसीआर में एक नवम्बर तक पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी थी.
वायु प्रदूषण : कोर्ट का निर्देश बेअसर! |
बुनियादी मंतव्य था कि बुजुगरे, बच्चों के साथ ही हृदय और ास संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों को स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण से पड़ने वाले कुप्रभावों से बचाए रखा जा सके. लेकिन लोगों में जागरूकता की कमी दिखी. यही कारण रहा कि पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध के बावजूद लोगों ने जमकर आतिशबाजी की. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शुक्रवार की सुबह प्रदूषण का सूचकांक बढ़कर 350 के पार पहुंच गया. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट के अनुसार शुक्रवार की सुबह छह बजे दिल्ली में प्रदूषण सूचकांक 351 दर्ज किया गया जो बेहद खराब की श्रेणी में आता है.
सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्ट (सफर) ने बताया था कि सूचकांक 350 पर तभी पहुंचेगा जब लगभग पिछले साल जितने ही पटाखे छोड़े जाएंगे. इस स्थिति में मौसम की अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उसने शनिवार और रविवार को दिल्ली में प्रदूषण गंभीर स्तर तक पहुंचने की चेतावनी दी है. शनिवार को सूचकांक 471 और रविवार को 409 पर पहुंच सकता है. बहरहाल, बड़ा सवाल है कि पटाखों पर रोक के बावजूद दिल्लीवासी पटाखे फोड़ने में पीछे नहीं रहे. उन्हें पटाखे कहां से मिले. पास के राज्यों से या बीते साल का स्टॉक था उनके पास. जो हो लेकिन दिल्ली के लोगों के गैर-जिम्मेदाराना आचरण से दिल्ली एनसीआर का वायुमंडल पिछले साल जितना ही खराब हो गया है.
दरअसल, दिल्ली-एनसीआर में 1.90 करोड़ लोग आबाद हैं, इसलिए यहां प्रदूषण संबंधी आंकड़ों की परख की जरूरत महसूस होती है. नवम्बर, 2016 में दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) प्रति क्यूबिक मीटर 999 माइक्रोग्राम के खतरनाक स्तर पर जा पहुंचा था. गौरतलब है कि पीएम 25 तथा पीएम 10 स्तर के पार्टिकुलेट मैटर का प्रति क्यूबिक मीटर 999 माइक्रोग्राम के स्तर पर पहुंच जाना खतरनाक कहा जाएगा. इन प्रदूषकों की सुरक्षित सीमा क्रमश: 60 और 100 है, और किसी भी स्थिति में इनका 500 से ज्यादा होना बेहद खतरनाक स्थिति है.
दिल्ली के सर्वाधिक प्रदूषित इलाके हैं आनंद विहार (अंतरराज्यीय बस अड्डे और डीजल और पेट्रोल पंपों के कारण), आरके पुरम (दोनों रिंग रोड से सेक्टर और 12 के बीच जुड़ा है यह इलाका जिसे रात 10 बजे के बाद भारी वाहनों के लिए खोल दिया जाता है) तथा पंजाबी बाग (हरियाणा सीमा के करीब का इलाका जहां के ज्यादातर निवासियों के पास एक से ज्यादा वाहन हैं). तर्क रखा जाता है कि वायु प्रदूषण के खासे सामाजिक कुपरिणाम होते हैं, और यह आर्थिक वृद्धि पर भारी पड़ता है. लोगों की कामकाजी आयु भी प्रभावित होती है, उन्हें ज्यादा छुट्टी लेनी पड़ती है, जिसके आर्थिक कुप्रभावों से नहीं बचा जा सकता. सवाल है कि दिल्ली-एनसीआर बेहद खराब वायु गुणवत्ता से कैसे पार पा सकता है.
नवम्बर, 2016 में स्मॉग के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सभी निर्माण स्थलों पर पांच दिन के लिए निर्माण कार्यों के स्थगन, ऊर्जा संयंत्रों को पांच दिनों तक बंद रखने और करीब 1800 स्कूलों को अस्थायी रूप से बंद रखने जैसे आपातकालीन उपायों की घोषणाओं की झड़ी लगा थी. स्थानीय निवासियों में ‘स्मॉग सेल्फी’ लेने की होड़-सी लग गई थी. उनने ‘माईराइटटूब्रीथ’ हैशटैग का धड़ाधड़ उपयोग भी किया और स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए चेहरों पर मास्क लगाने में भी पीछे नहीं रहे. लेकिन दिल्ली सरकार को ब्रिटेन में किए जाने वाले उपायों को आजमाना चाहिए.
ब्रिटेन में स्थानीय परिषद हैं, जो अपने-अपने इलाकों में निगरानी और सुरक्षा उपायों के संचालन का कार्य करती हैं. किसी क्षेत्र विशेष में वायु की गुणवत्ता जरूरी मानकों से नीचे गिरती है, तो परिषद उस इलाके को वायु गुणवत्ता प्रबंधन क्षेत्र (एक्यूएमए) घोषित कर देती है, और वायु गुणवत्ता में सुधार के कार्य में जुट जाती है. उदाहरण के लिए लंदन में एक्यूएमए लंदन में प्रवेश करने वाली निजी कारों से खासा शुल्क वसूलती है. सोमवार से शुक्रवार के बीच निम्न उत्सर्जन क्षेत्र की व्यवस्था लागू करने के साथ ही वाहनों के ठहराव संबंधी अनेक प्रतिबंध भी लागू किए जाते हैं. वाहनों के प्रतीक्षा समय और उन पर माल चढ़ाई के समय संबंधी प्रतिबंध लागू करती है. रेल से साज-सामान के परिवहन को प्रोत्साहित करती है. प्रदूषण नियंत्रण दस्ता अनुपालन योजनाओं की समय-समय पर समीक्षा करता है. विनियमनों की अनुपालना में चूक पर जुर्माना लगाया जाता है. प्रत्येक चूक पर यह एक हजार डॉलर होता है.
इसके साथ ही विश्व के अनेक शहरों में उद्योगों से निकलने वाले धुंए को कम से कम करने के उपाय किए गए हैं. सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीनीकृत ऊर्जा स्त्रोतों के उपयोग तथा विकसित और त्वरित यातायात साधनों के उपयोग को प्रोत्साहित किया गया है. पैदल चलने और साइकिल के इस्तेमाल के लिए संजाल बिछाया गया है. दिल्ली को भी इन उपायों के साथ-साथ वाहनों के आवागमन को कम से कम करने की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. दिल्ली में दो चरणों में परखे गए ऑड-इवन सड़क राशनिंग नियम को दीर्घकालिक आधार पर आजमाया जाए तो यह खासा लाभकारी हो सकता है. यह नियम पहले पहल 2008 में बीजिंग में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक से पूर्व आजमाया गया था. शुरुआती तौर पर यह अस्थायी था लेकिन परिचालनात्मक रूप से इतना सफल रहा कि चीन की सरकार ने इसे स्थायी बना दिया. उसके बाद से बीजिंग की वायु गुणवत्ता में खासा सुधार दर्ज किया गया.
आखिर में कहना यह कि दिल्ली-एनसीआर के लोगों को सोशल और स्थानीय मीडिया के साथ ही पूरी तरह इसी काम में लगाए गए एसएमएस अलर्ट पण्राली के जरिए बताया जाना जरूरी है कि वायु की खराब गुणवत्ता किस कदर उनके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होती है.
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