आकांक्षा पर तुषारापात
पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में नीतीश सरकार ने बड़ी आशा से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया था. उन्हें उम्मीद थी कि मोदी उनकी और बिहार की चिर प्रतीक्षित आशा जरूर पूरी करेंगे.
नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो) |
सच तो यह है पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह में प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने के पीछे सरकार की यही आकांक्षा मुख्य कारण थी. इस आशय का इजहार प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तभी कर दिया था, जब पिछली जुलाई में उन्होंने महागंठबंधन की तिलांजलि देकर दोबारा भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा था. यही कारण है कि नीतीश सरकार ने मोदी के स्वागत के लिए जबर्दस्त तैयारी की थी. लेकिन लगता है कि स्वागत का पूरा तामझाम भी मोदी को रिझा नहीं सका.
समारोह के दौरान नीतीश ने मंच पर अपने हाथ जोड़कर मोदी से पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिए जाने की गुजारिश की लेकिन उनकी भावनात्मक अपील का भी प्रधानमंत्री पर कोई असर नहीं हुआ. उन्होंने अपील अनसुनी करते हुए साफ कह दिया कि ऐसा करना गुजरे जमाने की बात है. इतना ही नहीं, मोदी ने पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने के बदले उसे दस टॉप विश्वविद्यालय में स्थान बनाने की चुनौती दे डाली. मोदी का बयान नीतीश सरकार के साथ-साथ बिहारवासियों के लिए भी घाव पर नमक छिड़कने जैसा था. इसमें कोई शक नहीं कि प्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री के ऐसा कहने का कारण 2015 में मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा लिया गया एक नीतिगत निर्णय है, जिसके अनुसार विरासत के मुद्दे के साथ-साथ कर्मचारियों तथा विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों की असंतुष्टि के चलते किसी भी राज्य विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय में परिवर्तित नहीं किया जा सकता. लेकिन सचाई यही है कि मोदी ने राजनीतिक कारणों से नीतीश कुमार की गुजारिश अनसुनी की.
इस बात से शायद ही किसी को इनकार हो कि मोदी ने पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा न देकर वास्तव में नीतीश को उनकी औकात बताई है. वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है, जब मोदी ने नीतीश को उनकी औकात बताई है. पिछले मंत्रिमंडल के विस्तार के दौरान भी नीतीश की अवहेलना की थी, जब जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से किसी को भी मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया. तथ्यों पर नजर डालें तो प्रतीत होता है, जैसे यह पटना विश्वविद्यालय का शताब्दी समारोह नहीं, बल्कि मोदी का स्वागत समारोह था. इस दौरान पूरा पटना मोदी के कटआउट्स और होर्डिंग्स से अटा पड़ा था. शहर मोदी के साथ-साथ अन्य भाजपा नेताओं के पोस्टर्स से पट गया था. कहने की जरूरत नहीं कि ऐसा सोची-समझी रणनीति के तहत ही किया गया. मोदी व भाजपा नेताओं के पोस्टर्स और कटआउट्स इतने बड़े पैमाने पर इसलिए लगाए गए थे कि नीतीश को संदेश दिया जा सके कि महागंठबंधन से निकलने के बाद अब उनकी स्थिति दोयम दर्जे की हो चुकी है, और उन्हें जदयू-भाजपा गठबंधन में प्रमुख नहीं, बल्कि सहयोगी की भूमिका में रहना होगा. कहे बिना भी स्पष्ट है कि नीतीश और उनकी पार्टी को यह भूमिका रास नहीं आने वाली.
वैसे इसके लिए नीतीश स्वयं जिम्मेदार नजर आते हैं. जिस तरह उन्होंने मोदी के स्वागत में पूरे प्रशासन को झोंक दिया और मंच से कसीदे काढ़े, उससे मोदी और भाजपा के लिए समझना मुश्किल नहीं रह गया था कि अब वह मोदी की गोदी में गिर पड़े हैं. मालूम हो कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में तैनात जवानों ने नीतीश की गाड़ी को हवाईअड्डे तक आगवानी के लिए जाने से रोक दिया था. काफी हिल-हुज्जत के बाद उन्हें वहां तक जाने की इजाजत मिली. हालांकि नीतीश ने मोदी के स्वागत में कोई कोर-कसर नहीं रख छोड़ी थी. इसके लिए मर्यादाओं को भी ताक पर रख दिया. अपने आका मोदी को खुश करने के लिए शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा और लालू प्रसाद यादव जैसी हस्तियों को भी निमंत्रण भेजने से इनकार कर दिया क्योंकि ये लोग मोदी की मुखालफत करते हैं. इस मुद्दे पर बवाल मचा तो पटना विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रासविहारी सिंह ने बयान दिया कि इन लोगों को ईमेल से निमंत्रण भेजा गया है परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी और उक्त तीनों व्यक्तियों ने शताब्दी समारोह में हिस्सा लेने से मना कर दिया. कौन नहीं जानता कि निमंत्रण भेजने में विलंब प्रायोजित था. तीनों कोई गुमनाम व्यक्ति तो नहीं थे कि उन्हें ढूंढ़ने में विश्वविद्यालय प्रशासन को मशक्कत करने की जरूरत पड़ती.
अवसर था पटना विश्वविद्यालय के शताब्दी समारोह का लेकिन समारोह से पटना विश्वविद्यालय ही गायब था. इसके विपरीत मोदी केवल मुख्य अतिथि थे, लेकिन समारोह के केंद्र में वही थे. कहा जाए तो मोदी ने इस अवसर को अपनी पब्लिसिटी के लिए लूट लिया. हां, इस लूट में नीतीश और उनकी सरकार भी शामिल थी. ऐसे में मोदी ने वही किया जो एक महत्वाकांक्षी राजनेता करता है यानि इस अवसर का इस्तेमाल अपनी छवि में सुधार के लिए किया. कहने की आवश्यकता नहीं कि हाल के दिनों में मोदी की लोकप्रियता में गिरावट आई है. मोदी जैसे आत्ममुग्ध व्यक्ति के लिए इससे सुनहरा अवसर क्या हो सकता था.
जब मोदी के समर्थक मोदी-मोदी का जयकारा लगा रहे थे, तो वह मुग्धभाव से सुनते रहे थे. मुदित होते रहे. कहने की आवश्यकता नहीं कि मोदी को प्रशंसा सुनना खूब भाता है. अन्यथा नहीं कि जिन कुछ विद्यार्थियों ने मोदी का विरोध किया, उन्हें पटना पुलिस खोजने में जुटी हुई है. विद्यार्थियों ने इतना ही तो कहा था कि आपसे नहीं होगा, मोदी जी. इतनी-सी बात भी जिसे गंवारा नहीं है, वह जब देश को साथ लेकर चलने की बात करता है, तो पूरी तरह हास्यास्पद लगता है. बहरहाल, समारोह का जो होना था, वह तो हो ही गया लेकिन अब जदयू-भाजपा गठबंधन में दरार पैदा होने के आसार नजर आने लगे हैं. जद यू ने लोक सभा की सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. जद यू के इस निर्णय को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के उस बयान के जवाब के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें उन्होंने अपनी पार्टी के नेताओं को सभी 40 सीटों पर काम करने के लिए कहा था. कहा जा सकता है कि हनीमून पूरा होने के पहले ही तलाक की आशंका उठ चली है.
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