वैश्विकी : और घनीभूत हो गई अनिश्चितता
राजनीतिक प्रयोगधर्मिता की भूमि नेपाल में तीन प्रमुख वाम दलों का एक छतरी के नीचे आकर आगामी असेंबलियों और संसदीय चुनाव लड़ने की घोषणा ने काठमांडू में लंबे समय से जारी राजनीतिक अनिश्चितता को और अधिक घनीभूत कर दिया है.
वैश्विकी : और घनीभूत हो गई अनिश्चितता |
इस ऐतिहासिक घटना को कई धड़ों और गुटों में बंटे कम्युनिस्ट आंदोलन को एकता के सूत्र में बांधने का पहला कदम बताया जा रहा है. एकीकरण की इस प्रक्रिया को वर्तमान देउबा गठबंधन सरकार के अमंगलकारी प्रभाव के रूप में देखा जा रहा है. नेपाल के एक बड़े तबके में दो चरणों में होने वाले प्रांतीय असेंबलियों और संसदीय चुनावों के भविष्य को लेकर आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं. हालांकि गठबंधन सरकार में शामिल माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता प्रचंड ने चुनाव संपन्न होने तक सरकार को अपना समर्थन जारी रखने की घोषणा की है.
नेपाल के तीन वाम दलों के चुनावी गठबंधन में पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन-यूएमएल, प्रचंड की सीपीएन (माओवादी) और बाबूराम भट्टाराई का नया शक्ति दल शामिल हैं. सैद्धांतिक तौर पर यह मजबूत गठबंधन दिखाई देता है. प्रांतीय असेंबलियों और संसद में इनका प्रतिनिधित्व बढ़ेगा, लेकिन नेपाल की पारंपरिक राजनीति के साथ कम्युनिस्ट वैचारिकी का जो घालमेल हुआ है, उससे न तो कम्युनिस्ट और न ही कम्युनिस्ट वैचारिकी अपने आप को शुद्ध रख पाई है. कह सकते हैं कि सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि में कम्युनिस्ट आंदोलन असफल रहा है. दरअसल, कम्युनिस्ट आंदोलन किसी निश्चित विचार से बंध नहीं पाया है.
यही वजह है कि कम्युनिस्ट आंदोलन आंशिक सफलताओं के बावजूद नेपाल की संपूर्ण जनांकाक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं कर पा रहा. चुनावी गठबंधन करने की घोषणा के बावजूद अब तक इनकी सैद्धांतिकी स्पष्ट नहीं हो पाई है. जिन मुद्दों को लेकर इनके बीच असहमतियां थीं, क्या उन पर सहमति कायम हो गई है या नहीं. स्पष्ट नहीं हो पाया है. इन तीनों दलों के बीच वृहत्तर संघवाद और राज्यों के पुनर्सगठन को लेकर भी मतभेद था. चुनाव अभियान के दौरान उन्हें इन सवालों के जवाब देने होंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विलय कितना टिकाऊ होता है और क्या सकारात्मक कर पाता है. यह सच है कि वाम दलों के इस गठबंधन से नेपाली कांग्रेस बैकफुट पर है. मजबूत वाम गठबंधन से लड़ने के लिए नेपाली कांग्रेस को भी मजबूत लोकतांत्रिक गठबंधन बनाना होगा.
नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व में ऐसा कोई लोकतांत्रिक गठबंधन बनता है, तो नेपाल में भारत के केरल की तर्ज पर नये गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हो सकता है. लेकिन इससे पहले प्रांतीय असेंबलियों और संसदीय चुनाव तक देउबा सरकार का बना रहना अनिवार्य है. नेपाली सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक राजनीतिक प्रतिष्ठान द्वारा अगली जनवरी तक चुनाव संपन्न कराना अनिवार्य है. देउबा सरकार को गिराना या आगामी चुनाव को बाधित करने का मतलब होगा कि नये संविधान को वैधानिकता नहीं मिल पाएगी और नेपाल की राजनीतिक अनिश्चितता का दूसरा दौर शुरू हो जाएगा. यह नेपाल की जनांकाक्षाओं के साथ विश्वासघात होगा.
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