नई हज नीति : अंध-विरोध उचित नहीं
मुसलमानों ने भारत वर्ष से हज पर मक्का (सऊदी अरब) जाने की परम्परा काफी पुरानी है. परन्तु 1927 के रिकॉर्ड में पहली बार हज कमेटी बंबई (अब मुंबई) का उल्लेख मिलता है.
नई हज नीति : अंध-विरोध उचित नहीं |
1932 में पोर्ट एक्ट पास हुआ और विधिवत हज कमेटी बनी. स्वतंत्रता के बाद 1959 में हज कमेटी एक्ट पास हुआ. साल 2002 में भी एक हज कमेटी एक्ट पास हुआ, जिसके तहत हज कमेटी ऑफ इंडिया या सेंट्रल हज कमेटी बनी. मौजूदा हज कमेटी ऑफ इंडिया इसी कानून के तहत कार्य करती है, परन्तु समय-समय पर हज नीति में परिवर्तन होते रहते हैं.
हाल ही में हज कमेटी ने कुछ प्रस्ताव अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्रालय को विचारार्थ भेजे हैं, जिन पर मुस्लिम समाज के कुछ नेताओं और धर्मगुरुओं ने आपत्ति जताई है. पहली आपत्ति यह है कि 45 वर्ष से ज्यादा आयु वाली महिलाओं को बिना मेहरम (महिला के करीबी संबंधी जिससे पर्दा करना आवश्यक न हो जैसे पिता, पुत्र, भाई-भतीजा, पति इत्यादि) के हज पर जाने की आज्ञा देने के प्रस्ताव पर है. मालूम हो कि शरीयत (धर्म संहिता) के अनुसार महिलाएं केवल मेहरम के साथ ही हज पर जा सकती हैं.
इसलिए कुछ उलेमा उदाहरणार्थ इमाम बुखारी के अनुसार इस्लाम में किसी महिला की मेहरम के बिना यात्रा करना निषिद्ध है, परन्तु हज जैसे पवित्र कार्य के लिए शरीयत की इस शर्त को नजरअंदाज किया जा रहा है. इस आपत्ति के सिलसिले में यह कहा जा सकता है कि 45 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के बिना मेहरम के हज यात्रा पर जाने की इजाज़त पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित 95 प्रतिशत मुस्लिम देशों ने दे रखी है. अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी साहब की इस बारे में दलील यह है कि यदि 45 वर्षीय महिला का बिना मेहरम के हज पर जाना शरीयत विरोधी होता तो सबसे पहले इस पर इस्लामी देश सऊदी अरब को ही आपत्ति होती, मगर उसकी ओर से कोई आपत्ति नहीं की गई.
उन्होंने कहा कि हमने हज पर जाने वाली महिलाओं को यह छूट दी है. किंतु इस मामले में मुस्लिम समुदाय स्वतंत्र है कि वह चाहे महिलाओं को बिना मेहरम हज पर भेजे या नहीं भेजे. यों भी बिना मेहरम के कम-से-कम चार महिलाओं का एक साथ हज पर जाना अनिवार्य है. इस विषय में हज कमेटी ऑफ इंडिया के चेयरमैन व सांसद चौधरी मेहबूब अली कैसर का कहना है कि बिना मेहरम के हज पर जाने वाली महिला के लिए यह शर्त भी रखी गई है कि उसका मसलक (उप सम्प्रदाय) इस बात की इजाजत भी देता हो. यों भी आज इक्कीसवीं सदी में कई बड़े पदों पर आसीन मुस्लिम महिलाएं बिना मेहरम के विदेश जाती हैं. आम मुस्लिम महिलाएं भी रेल, बस या हवाई जहाज से बिना मेहरम के यात्रा करती हैं.
इस पर आपत्ति करने वाले लोगों से मेरा प्रश्न है कि शरीयत में तस्वीर बनाना या बनवाना या फोटो खिंचवाना निषिद्ध है. लेकिन बड़े-से-बड़े मौलवी, मुफ्ती, इमाम और उलेमा हज या विदेश यात्रा पर जाने के लिए तस्वीर बनवाते हैं और अखबारों में भी अपनी तस्वीर छपवाते हैं. तब उन्हें शरीयत की याद क्यों नहीं आती? जब महिलाओं को ही कोई छूट दी जाती है, तब तो उन्हें शरीयत की चिंता क्यों सताती है? जहां तक हज यात्रा पर सब्सिडी को समाप्त करने के प्रस्ताव का सवाल है तो इससे हाजियों को नुकसान नहीं फायदा ही होगा. तब वह तीन गुना किराया देकर एयर इण्डिया से हज पर जाने के लिए मजबूर नहीं होंगे बल्कि ग्लोबल टेंडर से जो हवाई कंपनी कम किराये पर हाजियों को ले जाएगी, उससे ही वे जाएंगे.
अलबत्ता, हाजियों के लिए कुर्बानी का कूपन अनिवार्य कर देने का प्रस्ताव अनुचित है. हर हाजी को वह आजादी होनी चाहिए कि वह कुर्बानी कराये या ना कराए और कराए तो अपने ढंग और सुविधा से कराए. इसी तरह कुछ मुस्लिम संगठनों को 70 वर्ष से अधिक उम्र के हज पर जाने के इच्छुक लोगों के लिए आरक्षण को समाप्त करने पर भी आपत्ति है. इस सिलसिले में अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी का यह कहना सही है कि एक से अधिक बार हज पर जाने वाले हाजियों पर ही रोक लगाने का प्रस्ताव है.
हज यात्रा के किराये को कम करने के लिए समुद्री रास्ते से लोगों को भेजने की योजना भी सराहनीय है. यदि इस पर जल्द अमल हो तो बेहतर. संक्षेप में यही कहा सकता है कि नई हज नीति का आंखें बंद करके विरोध उचित नहीं है. हज कमेटी ऑफ इंडिया को भी पेश किए गए प्रस्तावों पर गहराई से विचार करना चाहिए ताकि अल्पसंख्यकों की आशंकाएं दूर हो सके.
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