टीम इंडिया : तेज पिच पर खुली पोल

Last Updated 13 Oct 2017 06:57:01 AM IST

विराट सेना 2015-16 में ऑस्ट्रेलिया में 4-1 से सीरीज हारने के बाद से लगातार विजय पताका फहराए हुए हैं.


तेज पिच पर खुली पोल

वह इस हार के बाद से अब तक जिम्बाब्वे, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड, वेस्ट इंडीज, श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया को हराकर वनडे सीरीजें जीत चुकी है. इन जीतों से यह गुमान होना स्वाभाविक है कि हम विश्व विजेता बनने की तरफ बढ़ रहे हैं. लेकिन तब ही गुवाहाटी में खेले गए दूसरे टी-20 में टीम इंडिया हारी, उससे यह तो लगा कि हमारी कुछ खामियां अभी भी बरकरार हैं और मुश्किल परिस्थितियां होने पर हम पहले जैसे ही कमजोर नजर आने लगते हैं. गुवाहाटी मैच में टीम इंडिया के दिग्गज बल्लेबाजों ने जिस तरह से समर्पण किया, उससे यह जरूर लगता है कि टीम इंडिया जब इस साल दिसम्बर में दक्षिण अफ्रीका दौरे पर जाएगी तो उसे 2013 के दौरे वाली स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है.

भारत में वनडे या टी-20 मैच खेले जाने के दौरान आमतौर पर पेस गेंदबाजों के अनुकूल विकेट नहीं मिलते हैं. लेकिन हालात ने गुवाहाटी के विकेट को मुश्किल बना दिया. बारिश की वजह से साफ्ट विकेट में नमी आ जाने से विकेट में असमतल उछाल हो गई. साथ ही गेंद स्विंग होने ने भारतीय बल्लेबाजों के लिए मुश्किल खड़ी कर दी. ऑस्ट्रेलिया के लिए सिर्फ दूसरा टी-20 मैच खेल रहे पश्चिम ऑस्ट्रेलिया के पेस गेंदबाज बेरहेनडॉर्फ ने इन हालात में नियंत्रित स्विंग गेंदबाजी की तो भारतीय उच्चक्रम की समझ में नहीं आ सका कि इस गेंदबाज को कैसे हैंडिल किया जाए.

इससे एक बात फिर उजागर हो गई कि मुश्किल हालात में क्वालिटी अटैक का सामना करने में हम अब भी घबरा जाते हैं. इस घबराहट का ही नतीजा था कि दूसरे टी-20 में 27 रन तक स्कोर पहुंचते दोनों ओपनर रोहित शर्मा, शिखर धवन, कप्तान विराट कोहली और मनीष पांडे पेवेलियन पहुंच चुके थे. यही नहीं संकट मोचक की भूमिका निभाने वाले महेंद्र सिंह धोनी और ताबड़तोड़ अंदाज में खेलने वाले हार्दिक पांडय़ा भी इस हालात में टीम के काम नहीं आ सके. अब सवाल यह है कि जब हम घर में इस तरह लीद कर सकते हैं तो दिसम्बर में दक्षिण अफ्रीका दौरे पर जाकर तीन टेस्ट, छह वनडे और तीन टी-20 की सीरीजें खेलेंगे, तब वहां की मुश्किल स्थितियों में हम क्या करेंगे?

हम यदि पिछली सीरीजों का अनुसरण करके हार गए तो हमारे घर में अनुकूल माहौल में एक के बाद एक सीरीज जीतने के कोई मायने नहीं रह जाएंगे. दक्षिण अफ्रीका को हमेशा ही टफ प्रतिद्वंद्वी माना जाता है. भारतीय टीम 2013 में दक्षिण अफ्रीका दौरे पर गई थी, तो उसे एक मैच बारिश में धुलने की वजह से 2-0 से हार का सामना करना पड़ा था. हालात यह थे कि बारिश ने तीसरे वनडे में खलल नहीं डाला होता तो हम 3-0 से सीरीज हारकर आए होते. इस दौरे पर दक्षिण अफ्रीका के पेस गेंदबाजों डेल स्टेन, सोतसोबे और मोन्रे मोर्कल का सामना करने में हमारे बल्लेबाजों को लगातार दिक्कत हुई. कभी-कभार एक-दो बल्लेबाज चले भी तो बाकी से सहयोग नहीं मिल पाने के कारण भारत को बड़ी हारों का सामना करना पड़ा.

टीम इंडिया के दक्षिण अफ्रीका में हारना कोई नई बात नहीं है. लेकिन दक्षिण अफ्रीका 2015-16 में भारतीय दौरे पर आकर हमें हमारे घर में 3-2 से हरा गई. यह सही है कि भारत के लिए टी-20 सीरीज जीतने का अभी भी मौका है. लेकिन क्वालिटी पेस गेंदबाजी के आगे लड़खड़ाने से यह तो संकेत मिलता है कि टीम इंडिया को 2019 में विश्व कप में जौहर बिखेरने हैं तो उसे आने वाले समय में दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड के माहौल में भारत के दिग्गज बल्लेबाजों को शानदार प्रदर्शन करके यह जताना होगा कि वह पेस गेंदबाजी के अनुकूल माहौल में भी जीतना जानता हैं. हम जब तक ऐसा नहीं कर पाते हैं, तब तक हमारे लिए अगले आईसीसी विश्व कप में जीत के दावेदारों में अपना नाम शुमार करा पाना मुश्किल होगा.

यह उम्मीद की जा रही थी कि भारतीय टीम की परख ऑस्ट्रेलिया करेगी. लेकिन ऑस्ट्रेलिया उम्मीदों से बहुत खराब प्रदर्शन करके भारत के जीत के गुरूर को और बढ़ा दिया है. सवाल यह है कि क्या हम इन सफलताओं को दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी दोहराने में सक्षम हैं. यह बात इन देशों के दौरों पर ही पता चल पाएगी. गुवाहाटी में जिस तरह से खेले हैं, उससे नहीं लगता है कि हम पेस गेंदबाजी के अनुकूल विकेट पर जीतने का माद्दा रखते हैं. अगर वास्तव में ऐसा नहीं है तो 2019 विश्व कप में हमारा दावा स्वत: ही कमजोर हो जाता है.

मनोज चतुर्वेदी


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