शिक्षण संस्थाएं : धर्मनिरपेक्ष चरित्र जरूरी

Last Updated 12 Oct 2017 05:54:32 AM IST

भारत के पहले राष्ट्रपति एवं महान शिक्षाविद् डॉ. राजेन्द्र प्रसाद देश में शिक्षा व्यवस्था के पुनर्निर्माण, शिक्षा से सामाजिक कल्याण, शिक्षा के माध्यम, शिक्षा और सामंजस्य, व्यावहारिक शिक्षा और बुनियादी तालीम जैसे सामाजिक सरोकारों से ताउम्र गहराई से जुड़े रहे.


शिक्षण संस्थाएं : धर्मनिरपेक्ष चरित्र जरूरी

भारतीय शिक्षा को लेकर उनके विचार सदैव प्रासंगिक बने रहते हैं. वे देश के करोड़ों लोगों के व्यक्तित्व की विभिन्नताओं को देश की एकता एवं अखंडता के लिए चुनौती समझते थे, जो देश के विकास में बाधक हो सकता है. उन्होंने जोर देकर कहा था कि देश की एकता एवं अखंडता को बनाए रखने का काम पुलिस का डंडा या अदालतें नहीं कर सकतीं. अगर यह दूर किया जा सकता है, तो केवल अच्छी शिक्षा द्वारा, और यह काम हमारे विश्वविद्यालय ही कर सकते हैं.

हाल ही में केंद्रीय विश्वविद्यालयों के एक सरकारी ऑडिट में सलाह दी गई है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के नाम से क्रमश: ‘मुस्लिम’ व ‘हिन्दू’ शब्द हटा लिया जाए ताकि विश्वविद्यालयों का धर्मनिरपेक्ष चरित्र प्रदर्शित हो सके. भारत के भावी भविष्य के सपने संजोने में देश के दो शिक्षा संस्थानों का गहरा योगदान रहा है. इन दोनों विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दरजा प्राप्त है, और हजारों विद्यार्थी नियमित यहां से ज्ञानार्जन कर रहे हैं. किसी धर्मनिरपेक्ष देश के शिक्षा संस्थानों में माहौल कैसा हो, यह देखना बेहद जरूरी हो जाता है क्योंकि इन दोनों विश्वविद्यालयों की प्रतिष्ठा देश ही नहीं विदेशों में भी है, और अनेक देशों के विद्यार्थी यहां शिक्षा प्राप्त करने आते हैं.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1877 में स्वाधीनता संग्राम के दौरान राष्ट्रीय भावनाओं को मजबूत आधार एवं स्वदेशी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सर सैयद अहमद खान ने की थी. पहले दिन से ही अरबी, फारसी भाषाओं के साथ-साथ संस्कृत की शिक्षा की भी व्यवस्था की गई. सर सैयद अहमद खां निश्चित तौर पर इस विश्वविद्यालय के जरिए मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ना चाहते थे. देश की सर्वोत्तम सुविधाओं से शुमार इस विश्वविद्यालय में तकरीबन 25 फीसद विद्यार्थी गैर-मुसलमान हैं. वैसे यहां के गैर-मुस्लिम छात्रों का अनुभव सामान्य नहीं रहता. रमजान शुरू होते ही कैम्पस के भीतर सारी कैंटीन बंद कर दी जाती हैं, जो शाम को इफ्तार के वक्त ही खुलती हैं. यहां तक कि होस्टल में भी यही स्थिति रहती है. कैम्पस में एक मजहब का बोलबाला रहता है.

जाहिर है एक धर्मनिरपेक्ष देश के शिक्षा संस्थान से अलहदा यहां का माहौल है. ‘यही नहीं शुक्रवार को हाफ टाइम के बाद जुम्मे की नमाज के लिए छुट्टी दे दी जाती है. इस दौरान भी सारी कैंटीन बंद हो जाती हैं.’ ऐसे में यहां पढ़ने वाले गैर-मुस्लिम कैसा अनुभव करते होंगे, समझा जा सकता है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीय जी को सात्विकता, देशभक्ति, धर्मनिष्ठा तथा सेवा भाव के अद्भुत गुणों के साक्षात अवतार के रूप में याद किया जाता है. इस शिक्षा संस्थान को लेकर मालवीय जी की परिकल्पना में एक ऐसा धर्मनिरपेक्ष भारत का बेहतर भविष्य  रहा होगा जिससे समूचा राष्ट्र मजबूत हो सके. 1905 में इस विश्वविद्यालय को स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया और 4 फरवरी, 1916 को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ. वर्तमान में यह विश्वविद्यालय अपनी स्थापना के गौरव को दरकिनार करने के रूप में तेजी से पहचान बना रहा है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के 100 साल पूरे होने पर जो रैली निकली थी, उसमें राम मंदिर के नारे लग रहे थे. अभी हाल ही में इस शिक्षा संस्थान में राष्ट्रवाद और संस्कृतिवाद थोपने के प्रयास भी किए गए.

देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारत की एकता एवं अखंडता की रक्षा के लिए धर्म, जाति और संस्कृति का सहारा लेने से सदा बचने की हिदायत दी थी. भारत की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के साथ सबसे बड़ी चुनौती देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र और साझी विरासत को बनाए रखना है. यह शिक्षा संस्थान ही कर सकते हैं, जिसकी बात डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने की थी. भारत के ख्याति प्राप्त शिक्षण संस्थानों में कथित संस्कृतिवाद को थोपने के प्रयास इस उदार लोकतंत्र के लिए आत्मघाती हो सकते हैं. बहरहाल, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के सरकारी ऑडिट की सलाह पर गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है.

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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