प्रसंगवश : गांधी का महात्मा होना

Last Updated 01 Oct 2017 01:16:04 AM IST

गांधी जी में अलौकिक संत-सी दूरदृष्टि और मंजे हुए राजनेता जैसी तात्कालिक परिस्थितियों के सटीक आकलन की भी क्षमता थी.


गांधी का महात्मा होना

पर इससे भी अधिक महत्त्व का उनका आत्मीय मानवीय संस्पर्श था. जो भी दबे, सहमे, सकुचे रूप में आता था, उनसे मिल कर खुश हो कर लौटता था. वे मनुष्य की आंतरिक सदाशयता में पूरा विश्वास करते थे और इस भाव को सब में बांटना भी चाहते थे. इस उद्देश्य के लिए वे अपने विरोधी तक को भरोसा देना चाहते थे. यही कारण है कि लड़ने-झगड़ने के बाद भी उनके विरोधियों को भरोसा बना रहता था कि गांधी जी उनके मित्र हैं. 
अपनी मातृभूमि की अखंडता और एकता की चाह रखने वाले गांधी जी भिन्न और विरोधी प्रवृत्तियों को भी साथ ले चलने की शक्ति के मूर्तिमान केंद्र से बन गए थे. मनुष्य मात्र की सेवा के संकल्प और साधना के साथ गांधी जी ने स्वयं को धीरे-धीरे जनता (या कहें जनमानस) के साथ एकाकार कर दिया था. पराई पीर को जानने की कोशिश द्वारा उन्होंने जन-जन की पीड़ा, दु:ख और कष्ट को अपना बना लिया था. इसी से दूरदराज के गांवों के मौन, नि:स्वार्थ, स्त्री-पुरु ष, बूढ़े-बच्चे, अनपढ़-गंवार सब के अथाह विश्वास ने उन्हें ‘गान्हीं महतमा’ बना दिया था. गांधी जी ने भी उनके साहस, विश्वास और बलिदान को आदर दिया. इसी से वे और उनकी ‘सुराजी पलटन’ लोक-मानस में छा गई. आम आदमी से महात्मा बनने की गांधी-गाथा किसी रहस्य में नहीं लिपटी है. इसके लिए उन्होंने अपने अनुभव के सूत्र निकाल कर स्वावलंबन, सत्य-अहिंसा को व्यवहार में अमल में लाने की कोशिश शुरू की. उन्होंने लंबे समय तक खान-पान, आचार आदि पर संयम तथा आत्मानुशासन से अपने शरीर और मन को साधा था. वे खुद भी बाह्य परिस्थितियों से अप्रभावित हुए अविचलित रह पाते थे.

पश्चिमी और भारतीय, दोनों ही तरह के चिंतकों से अपना वैचारिक आधार बनाकर उन्होंने अपना आध्यात्मिक मूल सुदृढ़ किया. एक शर्मीला, दुबला-पतला, अपरिपक्व-सा दिखने वाला युवा एक अपरिचित जीवन सागर में पटक दिया गया और अनुभवों से वह अपने को रचता गया. गांधी जी के निजी सचिव प्यारे लाल कहते हैं कि गांधी जी की सफलता का श्रेय उनमें समझौता करने की अचूक क्षमता में निहित है. उनमें यह शक्ति थी कि वे किसी मुद्दे को अपने विरोधी की नजर से भी देख सकते थे. इस क्षमता के साथ ही वह भरोसा करने के हिमायती थे. ये दो ऐसे आधार थे, जिसके कारण विरोधी भी गांधी जी के मित्र बन जाते थे. प्यारे लाल  दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण देते हैं कि एक दूरदराज स्थान से आए ‘एमके गांधी’ नाम के  आदमी ने जो भिन्न नस्ल का है, पूरा अनगैया है, जिसे कोई राजकीय शक्ति या अधिकार भी नहीं प्राप्त है, सिर्फ और सिर्फ नि:स्वार्थ सेवा और नैतिक दबाव की बदौलत अनजानी धरती पर विलक्षण करिश्मा दिखा दिया. यही अनुभव आगे चल कर भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई का पूर्वरंग या कहें पूर्वाभ्यास सिद्ध हुआ. भारत में अपनी राजनैतिक यात्रा शुरू करते हुए गांधी जी ने स्वार्थहीनता, अहिंसा, दृढ़ता, साहस, नियम-बद्धता, आत्म-नियंत्रण, सत्य आदि वृहत्तर मानवीय मूल्यों को अमली जामा पहनाया.
वे देश-विभाजन के लिए बिल्कुल ही तैयार नहीं थे. मुस्लिम लीग के विभाजन वाले कारनामों से दुखी थे. इसके परिणामों से आगाह और चिंतित थे पर उन्होंने सरकार के कांग्रेसी नेताओं पर निर्णय छोड़ दिया. विभाजन का निर्णय हुआ तो उन्होंने भारी मन से उसे स्वीकार किया परंतु इसके चलते समाज को जो नुकसान और कष्ट हुआ तत्काल उससे उबरने की कोशिश में जुट गए. स्वतंत्रता के जश्न से दूर विभाजन के दौरान भड़के दंगों की आग बुझाने चल पड़े थे. गांधी जी के विचार मानवता के लिए हैं, और इसीलिए अभी भी प्रासंगिक बने हुए हैं. राजनैतिक न्याय पाने के लिए उनके रास्ते पर चलने वाले कई और भी हुए हैं. मार्टनि लूथर किंग, नेल्सन मंडेला, दलाई लामा तथा सू की ने प्रकट रूप से उनका आभार माना है. गांधी जी ने स्थानीय और वैश्विक, दोनों ही दृष्टियों से मानवीय मूल्यों पर आधृत समाज के निर्माण के लिए विकल्प प्रस्तुत किया था. दुर्भाग्य है कि गांधी जी के बाद भारतीय समाज में पारस्परिक सद्भाव कम हुआ और द्वेष को राजनैतिक हथियार बनाया जाता रहा है. गांधी-स्वर हमें अभी भी सत्य, प्रेम और अहिंसा की संभावना की याद दिलाता है.

गिरीश्वर मिश्र


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment