विश्लेषण : चमक बनाम उजाला
सौभाग्य योजना लांच हुई है. ‘सौभाग्य’ यानी सहज बिजली हर घर योजना के तहत 16000 करोड़ रुपये का खर्च होगा और हर उस घर को बिजली पहुंचाने की कोशिश की जाएगी, जहां पर बिजली नहीं है.
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योजना के मुताबिक अनुमानित सभी चार करोड़ परिवारों को बिजली कनेक्शन प्रदान करेगा, जिनके पास वर्तमान में बिजली कनेक्शन नहीं है. करीब चार करोड़ परिवारों को मुफ्त बिजली कनेक्शन का सौभाग्य मिलेगा. इससे पहले उज्ज्वला योजना के तहत देश के 709 जिलों में करीब तीन करोड़ गैस कनेक्शन दिए जा चुके हैं.
मुफ्त बिजली कनेक्शन और मुफ्त गैस का चूल्हे का गणित देखें, तो करीब चार करोड़ मुफ्त बिजली कनेक्शन और तीन करोड़ मुफ्त गैस कनेक्शन का आर्थिक कनेक्शन भी है और राजनीतिक भी. मुफ्त बिजली कनेक्शन के खर्च का अधिकांश खर्च केंद्र सरकार ही उठाएगी. सोलह हजार करोड़ रुपये का अधिकांश खर्च केंद्र सरकार उठाएगी, इसका अर्थ यह है कि ऐसी योजनाओं के लिए सरकार के पास फंड की कमी नहीं है, जिनके सहारे केंद्र सरकार खुद को गरीब-प्रिय साबित कर सके. भारतीय अर्थव्यवस्था के साइज के हिसाब से यह पूरी 16000 करोड़ रुपये भी बहुत बड़ी रकम नहीं है. अकेले विजय माल्या इस रकम के करीब आधे साइज की रकम यानी करीब 8000 करोड़ रुपये की रकम को खाकर लंदन में बैठा हुआ है. इस रकम का आर्थिक महत्त्व ज्यादा ना भी हो, तो भी राजनीतिक महत्त्व गहरा है.
उज्ज्वला योजना के तहत करीब तीन करोड़ गैस कनेक्शन जा चुके हैं. करोड़ों के घरों को छूनेवाली इन योजनाओं का संदेश राजनीतिक तौर पर देने की भाजपा की यह कोशिश करेगी यह सिर्फ सूट-बूटवालों की सरकार नहीं है. गरीबों के सपने की सरकार है. 2019 के आम चुनावों शुरु आती आहटें सुनाई देने लगी हैं. ऐसे भी अनुमान हैं कि 2018 के अंत में ही लोक सभा चुनाव कराए जा सकते हैं यानी तय अवधि से करीब छह महीने पहले. इस हिसाब से देखें, तो एक सवा साल का ही वक्त बचा है सरकार के पास, खुद को साबित करने के लिए. इसलिए यह भी समझा जा सकता है कि सरकार लगभग चुनावी मोड में है, चुनावी तेवर में है. चुनावी तेवर का आशय है कि लगभग हर उस तबके को लुभाया जाए, जो वोट के लिहाज से बहुत महत्त्वपूर्ण है.
भाजपा शासित राज्यों में किसानों की कर्जमाफी की योजनाएं लागू हो गई हैं. इस सरकार के सामने दो बुनियादी आर्थिक समस्याएं हैं, जिनके राजनीतिक फलितार्थ हैं. एक तो रोजगार सृजन की और दूसरी विकास दर की. यह बात लगातार साफ हो रही है कि अर्थव्यवस्था से आठ से दस प्रतिशत की दर से विकास करने की स्थिति में नहीं है. आर्थिक सर्वेक्षण खंड दो के हिसाब से तो छह प्रतिशत की विकास दर हासिल करने के लिए भी बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी. छह प्रतिशत की दर से विकास करती हुई अर्थव्यवस्था में रोजगार के अवसर डराने वाली तस्वीर तब पैदा करते हैं, जब तमाम रोजगारों को मशीन खत्म करने के संकेत दे रही हो. एक आकलन के मुताबिक और रोबोट-तकनीकी अगले पांच वर्षो में तीस प्रतिशत बैंक नौकरियां खत्म हो जाएंगी.
इस आंकड़े की पुष्टि होती है जून 2016 से मार्च 2017 के बीच एचडीएफसी बैंक ने करीब 11000 लोगों के रोजगार खत्म किए हैं. दूसरे महत्त्वपूर्ण बैंक-एक्सिस बैंक ने अपने कुल कर्मिंयों की दस प्रतिशत संख्या यानी करीब 2,500 लोगों की छंटनी की है. यानी कम रोजगार लागत से ज्यादा कारोबार कर पाना संभव हो रहा है. सॉफ्टवेयर क्षेत्र की रोजगार की स्थिति भी सकारात्मक नहीं है. यानी रोजगार फिर आएगा कहां से? कम कुशल लोगों को रोजगार देनेवाले कंस्ट्रक्शन क्षेत्र की हालत खराब चल रही है. तमाम वजहें हैं उसकी चोर किस्म के बिल्डरों ने ग्राहकों को ऐसे लूटा है कि कंस्ट्रक्शन बाजार से ग्राहक गायब हैं. कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में नये नियम लागू होने की वजह से छोटे बिल्डरों के लिए काम करना असंभव हो गया है. कुल मिलाकर रोजगार के नये अवसर मुश्किल से आ रहे हैं. निर्यात बढ़ा पाना संभव नहीं हो पा रहा है, विश्व अर्थव्यवस्था का हाल कुछ ऐसा है कि उसमें ज्यादा माल नहीं खपाया जा सकता. ऐसी सूरत में पूरी अर्थव्यवस्था में समग्र चमक पैदा करने का काम मुश्किल होता जा रहा है. ऐसी सूरत में एक रास्ता यह है कि चुनिंदा क्षेत्रों पर फोकस करके उन्हें राहत दी जाए फिर दावा संभव होगा कि अर्थव्यवस्था में इस तरह से तेजी रही है.
सबसे बड़ी चुनौती सरकार के सामने यह है कि अगर रोजगार नहीं पैदा नहीं हो रहे हैं, तो 2019 के चुनावों में क्या जवाब दिए जाएंगे? उज्ज्वला और सौभाग्य योजनाएं कहीं-न-कहीं मतदाताओं को बताने की तैयारियां हैं, पर इनसे अर्थव्यवस्था के मूल मसले हल नहीं होते. मूल मसला यह है कि अर्थव्यवस्था में ऐसी स्थितियां बनें कि रोजगार पैदा हों और हरेक इतना कमा पाए कि किसी मुफ्तखोरी की जरूरत ना पड़े. पूरी अर्थव्यवस्था अगर चमक रही हो, तो फिर ऐसे पैबंदों की जरूरत नहीं पड़ती. पर अर्थव्यवस्था में तेज विकास दिखायी नहीं पड़ रहा है. कृषि की स्थिति खासी खराब है. वहां कर्जमाफी से फौरी तौर पर राहत है. पर कृषि की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वहां उत्पादकता बहुत कम है. खेती का काम कुल मिलाकर घाटे का सौदा बन गया है.
खेती में बहुत कम उत्पादन में बहुत ज्यादा लोग लगे हुए हैं. यानी खेती पर निर्भर जनसंख्या को कम किया जाना है, अभी खेती में जैसे-तैसे लगे लोगों को खेती से हटाकर कहीं और रोजगार दिया जाना है. पर घूम-फिरकर वही सवाल आ जाता है-कहीं और रोजगार भी है कहां? सरकार के हुनर आधारित शिक्षण-प्रशिक्षण के परिणाम भी ठोस तौर पर आते नहीं दिखते. इस काम के लिए जिम्मेदार राजीव प्रताप रुडी को मंत्री पद से हटाया गया, उसकी मूल वजह यही थी कि उनकी परफारमेंस इस क्षेत्र में दिखायी नहीं दी. कुल मिलाकर उज्ज्वला और सौभाग्य अर्थव्यवस्था के सीमित इलाकों में थोड़ी चमक ला सकते हैं, पर समग्र अर्थव्यवस्था के मसले इनसे हल होनेवाले नहीं हैं. समाधान के वास्ते ज्यादा समग्र सोच और ज्यादा ठोस काम की जरूरत है.
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