पूर्णिमा
अमावस्या का मतलब है चंद्रमा की नई कला की शुरुआत. आमतौर पर जो लोग गृहस्थ या परिवारीजन होते हैं और आध्यात्मिकता के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हैं, उनके लिए पूर्णिमा ज्यादा उपयुक्त और अनुकूल मानी गई है.
![]() जग्गी वासुदेव |
गृहस्थ का आशय है, घरबार चलाने वाला यानी, जिसका घर पर स्वामित्व हो. हालांकि घर का काम था हमें संभालना, लेकिन अब हम ही घर को संभालते हैं. शुरू में घर का ख्याल आया था.
हमें सिर्फ शारीरिक रूप से आश्रय प्रदान करने के लिए. लेकिन आज यह शारीरिक आश्रय से बढ़कर कहीं ज्यादा हो चुका है. हम इस काम में निपुण हो गए हैं कि अपनी भलाई के लिए हम जो भी साधन इस्तेमाल करते हैं, उसे हम अपनी कब्र में तब्दील कर लेते हैं. घर एक बेहतरीन साधन है, जिससे हम चीजों को सुव्यवस्थित कर अपने लक्ष्य को पाने के लिए ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए ऐसा नहीं है.
घर को सुव्यवस्थित करने में वे इतने व्यस्त हो जाते हैं कि वे महज घर के स्वामी बन कर ही रह जाते हैं. तो आमतौर पर गृहस्थ जनों के लिए आध्यात्मिकता से जुड़ा कुछ भी करने के लिए पूर्णिमा अनुकूल मानी जाती है, क्योंकि यह उनके लिए सौम्य और शांत होती है. आमतौर पर देखा गया है, जो शांत और सौम्य होता है, वह धीमा भी होता है. जबकि अमावस्या उन तपस्वियों व साधकों के लिए है, जो बेहद हड़बड़ी में हैं और जिनके पास ज्यादा वक्त नहीं है. यहां वक्त की कमी का आशय वृद्धावस्था से नहीं है, बल्कि तीव्र लालसा से है.
जो व्यक्ति जानने की तीव्र लालसा की आग में जल रहा हो, उसके पास ज्यादा वक्त नहीं होता, क्योंकि हो सकता है कि यह आग कल सुबह तक उसे भस्म में बदल दे. ऐसे लोगों के लिए यह रात बेहद उपयोगी है. यह रात शिव से संबंधित है, क्योंकि शिव का संबंध संहार, अग्नि और भस्म से जोड़ा जाता है.
जिस क्षण आप शिव शब्द का उच्चारण करते हैं, उसमें भस्म, अग्नि, दाह और विध्वंस जैसी चीजें उस शब्द का हिस्सा होती हैं. इस धरती पर सबसे नजदीकी घटना जो स्वभाविक रूप से संहार या शून्यता के करीब होती है, वह है अमावस्या. अमावस्या से एक दिन पहले वाली जो रात होती है, वह सर्वाधिक अंधियारी होती है, इसलिए इसे शिवरात्रि कहा जाता है. इसके अगले दिन अमावस्या होती है, जो दरअसल चांद की नई शुरुआत है.
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