नजरिया : विश्व युद्ध की आहट तो नहीं !
क्या दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है? इसकी संभावना कम है, लेकिन इसे पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता.
नजरिया : विश्व युद्ध की आहट तो नहीं ! |
विश्व की महाशक्तियां जानती हैं कि ऐसी स्थिति आई तो उसके परिणाम बेहद भयावह होंगे और मुमकिन है कि दुनिया का एक बड़ा हिस्सा खत्म हो जाए.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद पिछले करीब सत्तर सालों में विकसित देशों ने इंसानों के लिए जितनी दवाओं या आकाश में जितने नए ग्रहों की खोज की है, उससे ज्यादा आविष्कार खतरनाक हथियारों के किए जा चुके हैं. लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ देश अपने वर्चस्व या महज स्वाभिमान के नाम पर हमले जैसी आक्रामकता से भी बाज नहीं आते.
अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच नाक की लड़ाई, उसी खतरनाक मुहाने तक आ पहुंची है, जो विश्व भर में तबाही मचा सकती है. पूरी दुनिया दो धड़ों में बंटी नजर आ रही है. कूटनीतिक तौर पर अधिकांश देशों ने उ.कोरिया के परमाणु कार्यक्रमों से लेकर हमला करने की उसकी धमकियों की आलोचना की है. लेकिन यह कोई राज नहीं है कि अमेरिका या अमेरिका चीन के बीच ‘कोल्ड वॉर’ का लंबा इतिहास रहा है. ऐसे अन्य देशों की भी कमी नहीं है, जो अमेरिका पर तानाशाही के आरोप लगाते रहे हैं और उसके प्रतिद्वंद्वी गुट के साथ खड़े रहे हैं.
यानी माहौल बिगड़ा तो तीसरे विश्व युद्ध के छिड़ने में देर नहीं लगेगी और ढेरों देश किसी ने किसी महाशक्ति के साथ खड़े नजर आएंगे. विश्व का नेता बनने की लालसा और अन्य देशों को पिछलग्गू बना कर रखने की नीति के चलते ही यह ‘कोल्ड वॉर’ अक्सर सुलगता रहा है. कभी जापान के कब्जे में रहे कोरिया के दो टुकड़े होना और फिर उ.कोरिया में अमेरिकी युद्ध ने इस आंच को कभी ठंडा ही नहीं होने दिया.
करीब 7 दशक पहले अमेरिकी हमले में तबाह हो चुके उ.कोरिया की यह आग फिर धधक उठी है. पिछले दिनों ताबड़तोड़ मिसाइल और बम परीक्षण करके उसने अमेरिका को बर्बाद करने की सीधी धमकी दे दी है तो अमेरिका ने भी दुनिया में अब तक के सबसे बड़े ‘एक्शन’ की बात करते हुए उ.कोरिया को नेस्तनाबूद कर देने और ऐसे परिणाम भुगतने की चेतावनी दे डाली है, जो अब तक किसी देश ने नहीं देखे हैं. ऐसे में, आश्चर्य नहीं कि गोटियां बिछने लगी हैं. एक तरफ अमेरिका और उसके मित्र देश लामबंद हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ अमेरिका विरोधी रूस और चीन पर्दे के पीछे से रणनीति बनाने में जुट गए हैं. कोरिया लंबे समय से अमेरिका पर हमले की धमकी देता रहा है. जिस तरह की खबरें सामने आती रही हैं, उनसे ये संकेत मिलते हैं कि हजारों किलोमीटर दूर उसका दुश्मन अमेरिका उसकी मिसाइलों के दायरे में है.
हालांकि, उ.कोरिया और अमेरिका के परमाणु हथियारों समेत कुल सैन्य शक्तिय में जमीन-आसमान का अंतर है. लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हथियारों के आधुनिक विकसित युग में आज एक छोटा-सा बम भी इतनी बड़ी तबाही मचा सकता है, जहां बाकी हथियारों के इस्तेमाल का मौका भी न मिले. आशंकाओं का एक बड़ा कारण यह भी है कि आमने-सामने खड़े दोनों देशों की कमान दो ऐसे व्यक्तियों के हाथ में है, जिनके फैसलों की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. उ.कोरिया की कमान आक्रामक किम जोंग के हाथ में है, तो अमेरिका की कमान अप्रत्याशित फैसले ले लेने वाले डोनाल्ड ट्रम्प के हाथों में. यहां यह बात संदर्भविहीन नहीं है कि ट्रम्प अमेरिका को एक बार फिर से सबसे बड़ी ताकत बनाने का एलान कर चुके हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने उ. कोरिया को पूरी तरह खत्म करने की धमकी दी है, तो उ. कोरिया ने अमेरिका को राख में तब्दील कर देने और उसके सहयोगी जापान को सागर में डुबो देने तक की धमकियां जारी रखी हैं. उ. कोरिया के तानाशाह किम जोंग कुछ दिनों पहले डोनाल्ड ट्रम्प को पागल कह चुके हैं, तो उनके देश के मंत्री ने अब अमेरिकी राष्ट्रपति की तुलना भौंकने वाले कुत्ते से कर डाली है. यानी अमेरिका की धमकियों या आर्थिक प्रतिबंधों को दरकिनार कर उ. कोरिया अपने हथियारों की दौड़ जारी रखेगा. उ.कोरिया ने दबाव और आर्थिक प्रतिबंधों को ठेंगा दिखाते हुए अपना परमाणु कार्यक्रम जारी रखा है. उसने हाल में हाइड्रोजन बम का परीक्षण किया है और उससे पहले ताबड़तोड़ कई ऐसी इंटर कॉन्टिनेटल बैलिस्टिक मिसाइलों का भी परीक्षण कर चुका है, जो अमेरिका तक निशाना साध सकती हैं. वह जापान के आसमान का अतिक्रमण कर उसे भी धमका रहा है.
उ.कोरिया को मनचला बनाने में पाकिस्तान की भूमिका भी सामने आ चुकी है. बीबीसी में पाकिस्तान के एक अधिकारी ब्रिगेडियर फि़रोज़ हसन ख़्ान ने यह खुलासा किया था कि 90 के दशक में उ. कोरिया और पाकिस्तान एक-दूसरे के सम्पर्क में आए. उ. कोरिया ने मिसाइल बनाने में पाकिस्तान की मदद की और पाकिस्तानी वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान के रिसर्च सेंटर ने परमाणु हथियार बनाने में उ. कोरिया की मदद की. धड़ों में बंटते देश उ. कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर पिछले वर्ष संयुक्त राष्ट्र के कड़े कदमों का जापान, जर्मनी और ब्रिटेन समर्थन कर चुके हैं. ताजा धमकियों के बाद अमेरिका ने जापान और दक्षिण कोरियाई सेना के साथ अलग-अलग सैनिक युद्धाभ्यास किया है. अमेरिका अपने सहयोगी और उ. कोरिया के कट्टर दुश्मन दक्षिण कोरिया में पहले ही मिसाइलें तैनात कर चुका है. जापान ने भी सारे विश्व से उ. कोरिया के खिलाफ एकजुट हो जाने को कहा है.
फ्रांस ने भी मौजूदा हालात को बेहद गंभीर बताते हुए इसे रोके जाने के लिये तत्काल कदम उठाने की बात कही है. दूसरी तरफ, अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने वाले चीन और रूस ने भी हाल में दक्षिण चीन सागर में बड़ा नौसैनिक युद्धाभ्यास किया. यानी युद्ध की आहट भर से दुनिया की महाशक्तियों ने अपने वर्चस्व और अन्य देशों ने अपने हितों के मुताबिक अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है. जहां तक भारत का सवाल है, तो वह सीधे-सीधे युद्ध के साथ खड़ा नहीं होगा. लेकिन क्षेत्रीय महाशक्ति होने के नाते वह विश्व बिरादरी की हलचलों से खुद को अलग भी नहीं रख सकता. भारत जानता है कि चीन अमेरिका के खिलाफ खड़ा होगा और पाकिस्तान उसके साथ होगा. ये दोनों देश भारत के हितैषी नहीं हो सकते. इसके अलावा, मोदी और ट्रम्प हाल के दिनों में विश्व मंच पर बेहद करीब आ गए हैं.
भारत के साथ संबंध मजबूत करने के लिए ट्रम्प पहले ही कई कदम उठा चुके हैं. एक तरफ अमेरिका ने भारत के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं, तो दूसरी तरफ पाकिस्तान को किनारे कर दिया है. उसने पाकिस्तान को आतंकी समूहों का समर्थन बंद करने की चेतावनी दी है. वहीं, पाकिस्तान को मिलने वाली 35 करोड़ डॉलर की आर्थिक सहायता भी अमेरिका रोक चुका है. दूसरी तरफ, उसने भारत से अफगानिस्तान में अपनी बड़ी भूमिका निभाने को कहा है. यानी अमेरिका चाहता है कि किसी भी वैश्विक संकट में महाशक्तियों में शुमार हो चुका भारत उसके साथ खड़ा हो. खास कर, आतंकवाद विरोधी अभियानों और विश्व शांति के प्रयासों में.
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