मुद्दा : कि बुझती नहीं ये आग

Last Updated 19 Sep 2017 05:23:28 AM IST

अंग्रेजी का मुहावरा है- व्हेयर देयर आर फॉरेस्ट्स, देयर आर फायर. जरूरी नहीं कि यह जंगल वास्तविक यानी वृक्षों-झाड़ियों वाला हो.


मुद्दा : कि बुझती नहीं ये आग

कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो चुके आधुनिक शहर भी आग को इस वजह से न्योता देते हैं क्योंकि वहां किसी मामूली चिंगारी को भयावह अग्निकांड में बदलने वाली कई चीजें और असावधानियां मौजूद रहती हैं. मुंबई स्थित आर. के. फिल्म्स एंड स्टूडियोज में लगी आग ने इसी ओर एक बार फिर इशारा किया है. आग से हुआ नुकसान कितना अधिक है, इसका संकेत स्टूडियो के संस्थापक राज कपूर के बेटे ऋषि कपूर ने यह कहकर दिया कि आर.के. फिल्मों की यादों को आग ने छीन लिया है.

शहरों में आग के कई हालिया उदाहरण हैं. कुछ ही महीने पहले ब्रिटेन के बेहतरीन शहर लंदन का 24 मंजिला ग्रेनफेल टावर देखते-देखते राख हो गया था. अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना से लेकर दिल्ली में द्वारका स्थित पांच सितारा होटल और दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस स्थित अंतरिक्ष भवन, आईटीओ स्थित एक प्रतिष्ठित समाचारपत्र समूह की इमारत और नोएडा की फैक्टरियों में लगी भयानक आग ने यही साबित किया है कि आज हर आधुनिक शहर ऐसी वजहें पैदा कर रहा है, जिनके चलते मजबूत कंक्रीट से बनी इमारतें भी आग के सामने टिक नहीं पा रही हैं.

खराब अर्बन मैनेजमेंट भी लकदक दिखने वाली इमारतों-जगहों में आग लगने की एक वजह है. यह प्रबंधन इमारतों को मौसम के हिसाब से ठंडा-गर्म रखने, वहां काम करने वाले लोगों की जरूरतों के मुताबिक आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक साजो-सामान जुटाने में तो दिलचस्पी रखता है, पर जिन चीजों आग पैदा होने या उसे रोकने का प्रबंध किया जा सके-उस पर उसका रत्ती भर भी ध्यान नहीं.

चार सौ साल पहले 1666 में लगी ग्रेट फायर ऑफ लंदन के बार में कहा जाता है कि इस शहर को बेहद ‘तुच्छ’ वजहों से उठी चिंगारी ने बर्बाद किया था. ‘ग्रेट फायर ऑफ लंदन’ के पीछे जो वजह बताई जाती रही है, उसके मुताबिक वह आग लंदन की पुडिंग लेन स्थित एक छोटी बेकरी शॉप में शुरू हुई थी, जबकि कैलिफोर्निया के ओकलैंड वेयरहाउस में एक प्रायोजित म्युजिक कंसर्ट के आयोजन के वक्त लगी आग एक रेफ्रिजरेटर की देन बताई जाती है. आज की आधुनिक रसोइयों में रखे फ्रिज-माइक्रोवेव से लेकर एसी, कंप्यूटर जैसे उपकरण और फाल्स सीलिंग के भीतर की जाने वाली वायरिंग महज एक शॉर्ट सर्किट के बाद काबू नहीं किए जा सकने वाले आग के शोले पैदा कर रही है.

ऐसे में यह सिर्फ इत्तफाक नहीं है कि लंदन के ग्रेनफेल टावर की आग के पीछे इस इमारत के एक फ्लैट में रखे रेफ्रिजरेटर में हुए विस्फोट को अहम वजह माना गया. समस्या यह है कि आधुनिक शहरीकरण की जो मुहिम पूरी दुनिया में चल रही है, उसमें सावधानियों व आग से बचाव के उपायों पर ज्यादा काम नहीं किया गया है. आज प्राय: इमारतें ऐसे बिल्डिंग मैटीरियल से बन रही है, जिसमें आग को निमंत्रित करने वाली तमाम चीजों का इस्तेमाल होता है.

आंतरिक साज-सज्जा के नाम पर फर्श और दीवारों पर लगाई जाने वाली सूखी लकड़ी, आग के प्रतिव बेहद संवेदनशील रसायनों से युक्त पेंट, रेफ्रिजरेटर, इनवर्टर, माइक्रोवेव, गैस का चूल्हा, इलेक्ट्रिक चिमनी, एसी, टीवी और सबसे प्रमुख पूरी इमारत की दीवारों के भीतर बिजली के तारों का संजाल (इनटर्नल वायरिंग) है जो किसी शॉर्ट सर्किट की सूरत में छोटी सी आग को बड़े हादसे में बदल डालते हैं. इस सभी चीजों को आग से बचाने के इंतजाम भी प्राय: या तो किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, जैसे एमसीवी के हवाले होते हैं या फिर फायर अलार्म के सहारे, जो अक्सर ऐसी सूरत में काम करते नहीं मिलते हैं क्योंकि उनकी समय-समय पर जांच नहीं होती.

देश में तो इसके अतिरिक्त भी लापरवाहियों की लंबी फेहरिस्त है. पर कुछ और अहम बातें भी हैं, जो शहरों में आग को विनाशकारी ताकत दे रही हैं. जैसे, तकरीबन हर बड़े शहर में बिना यह जाने ऊंची इमारतों के निर्माण की इजाजत दे दी गई है कि क्या उन शहरों के दमकल विभाग के पास जरूरत पड़ने पर उन इमारतों की छत तक पहुंचने वाली सीढ़ियां (स्काईलिफ्ट) मौजूद है या नहीं.

मिसाल के तौर पर दिल्ली में दमकल विभाग के पास अधिकतम 40 मीटर ऊंची स्काईलिफ्टें हैं, पर यहां इमारतों की ऊंचाई 100 मीटर तक पहुंच चुकी है. नोएडा में भी अधिकतम 42 मीटर ऊंची स्काईलिफ्ट उपलब्ध है पर यहां जो करीब दो हजार गगनचुंबी इमारतें हैं या जो निर्माणाधीन है, उनमें से कुछ की ऊंचाई 300 मीटर तक है. यही स्थिति दूसरे बड़े शहरों में है.

अभिषेक कुमार
लेखक


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