पाकिस्तान जिहाद जारी रखेगा

Last Updated 18 Sep 2017 05:36:32 AM IST

पाकिस्तान 1947 में अपने अस्तित्व में आने से लेकर अब तक बहुत से ऐसे विरोधाभासों से जूझता रहा है, जिनसे निकट भविष्य में भी छुटकारा मिलने की उम्मीद नहीं है.


पाकिस्तान जिहाद जारी रखेगा.

सेना प्रमुख की राजनीतिक सक्रियता और लगातार बढ़ती हुई ताकत इसी तरह का एक विरोधाभास है. कहने को तो पाकिस्तान में लोकतंत्र है, जनता द्वारा चुनी हुई सरकार है, प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट है, लेकिन साथ ही यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों से सम्बंधित मामलों में सेना का एकाधिकार है. पाकिस्तान में सेना प्रमुख की स्थिति एक वास्तविक शासक की तरह है, जिसके शब्दों/आदेशों को दरकिनार नहीं किया जा सकता है.

अभी हाल ही में पाकिस्तान ने अपना 52वां रक्षा दिवस मनाया, जिसके दौरान सेना-प्रमुख द्वारा रावलपिंडी में उर्दू में दिया गया भाषण काफी महत्त्वपूर्ण है. यह भाषण पूरी तरह से एक राजनीतिक भाषण था, जिसमें पाकिस्तान की आधिकारिक नीतियों की झलक देखने को मिलती है. अपने 15 मिनट के भाषण के दौरान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने आतंरिक सुरक्षा से लेकर देश की विदेश नीति से सम्बंधित महत्त्वपूर्ण मामलों पर प्रकाश डाला.

आतंरिक सुरक्षा पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने ‘बुरे-आतंकियों’ को न केवल ‘भटके हुए लोगों’ कहकर सम्बोधित किया बल्कि उन्हें यह भी बताया कि इस्लाम के मुताबिक ‘जिहाद रियासत की जिम्मेदारी और उसका हक है और यह हक रियासत के पास ही रहना चाहिए.’ इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘पाकिस्तान का मतलब क्या? ला-इलाहा-इल्लिलाह के वारिस होने पर हमें फख्र है.’ एक ओर यह तथ्य इस बात की ओर इशारा करता है कि पाकिस्तान आतंकवाद को एक ‘रणनीतिक अस्त्र’ के तौर पर इस्तेमाल करता रहेगा. दूसरी तरफ इसके मायने यह हैं कि इस्लाम अभी भी पाकिस्तान की पहचान का अभिन्न अंग बना हुआ है और देश के नीति-निर्धारकों में इस पर आम राय है.

आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के लिए सेना-प्रमुख ने कहा कि सेना, सरकार, और अन्य संस्थानों के बीच जरूरी सुधार पर बातचीत जारी है, जिनके बिना राष्ट्रीय कार्रवाई नहीं हो सकती. इन सुधारों के केंद्र में प्रमुख रूप से देश के शिक्षा संस्थान, मदरसे, पुलिस, और कानूनी उपाय शामिल हैं. अब प्रश्न यह उठता है कि क्या समस्या की जड़ को समाप्त किए बिना ही सतही तौर पर किए जाने वाले इन सुधारों से वास्तविक धरातल पर कोई परिवर्तन देखने को मिलेगा? अंतरराष्ट्रीय समाज द्वारा लगातार डाले जा रहे दबाव पर पाकिस्तान का पक्ष रखते हुए सेना प्रमुख ने स्पष्ट किया कि राष्ट्र ने आतंकवाद विरोधी अभियान में पिछले दो दशक के दौरान बेइंतहा कुर्बानियां दी हैं. आतंकवाद के खिलाफ छेड़े गए इस युद्ध में अब तक मिली कामयाबी सिर्फ पाकिस्तान का ही कमाल है. इसके पश्चात उन्होंने सेना द्वारा किए गए सैन्य ऑपरेशन का जिक्र करते हुए कहा कि ‘ऑपरेशन शेरदिल से लेकर राह-ए-रस्त, राह-ए-निजात, जर्ब-ए-अज्ब और अब रद्द-उल-फसाद तक हमने एक एक इंच की कीमत अपने लहू से अदा की है.’ हालांकि उन्होंने यह नहीं स्पष्ट किया कि क्यों इतने सारे ऑपरेशन के बावजूद बहुत से आतंकवादी संगठन बचे रह गए. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि क्यों अभी तक पाकिस्तान वि के कुख्यात आतंकवादी संगठनों की शरणगाह बना हुआ है?



बाजवा के भाषण से ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तान की राष्ट्रीय  कहानी (नेशनल नैरेटिव) में रत्ती भर बदलाव नहीं आया है और यह अभी भी भारत को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है. भारत पर अप्रत्यक्ष हमला बोलते हुए सेना-प्रमुख ने कहा कि दुश्मन की कोशिश यह है कि बलूचिस्तान में अशांति फैलाकर पाकिस्तानी लोगों के भविष्य और पाकिस्तान-चीन दोस्ती को नुकसान पहुंचाए. 1971 के युद्ध का जिक्र करते हुए बाजवा भारत पर बांग्लादेश के उदय का आरोप मढ़ने से भी नहीं चूके. इसके अतिरिक्त उन्होंने भारत पर पाकिस्तान के पानी पर भी कब्जा करने का झूठा और मनगढंत आरोप लगाया. गौरतलब है कि भारत सिंधु जल समझौते के आधार पर निर्धारित अपने ही हिस्से का पूरा पानी उपयोग नहीं करता है.

पाकिस्तान के हिस्से के पानी को कब्जा करने का तो सवाल ही नहीं उठता है. पाकिस्तानी दहशतगर्दी पर पर्दा डालते हुए सेना प्रमुख ने भारत को यह भी सलाह दे डाली कि इस मसले का हल भारत के अपने हित में है इसलिए उसे ‘पाकिस्तान के खिलाफ गाली और कश्मीरियों के खिलाफ गोली’ की नीति के मुकाबले राजनीतिक और कूटनीतिक तरीकों को वरीयता देनी चाहिए. इसी तरह अफगानिस्तान में भी अपनी कारस्तानियों को छिपाते हुए, सेना-प्रमुख ने महाशक्तियों के हस्तक्षेप पर ही सारा दोष मढ़ने की कोशिश करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान को अपनी क्षमता से अधिक मदद की. लेकिन आगे से वह अफगानिस्तान की जंग अपने देश (पाकिस्तान) में नहीं लड़ सकते. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि अफगान धड़े युद्ध की तरफ बढ़ रहे हैं तो पाकिस्तान किसी भी सूरत में इस युद्ध का हिस्सा नहीं बन सकता. हालांकि जमीनी सच्चाई इसके विपरीत है.

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों में बदलाव के बाद पाकिस्तान की काफी फजीहत हुई थी. इस मामले पर अपने विचार व्यक्त करते हुए सेना प्रमुख ने कहा कि पाकिस्तान उपादान (ऐड) नहीं, इज्जत और भरोसा चाहता है. वह चाहता है कि आतंक-विरोधी अभियान में उसकी कुर्बानियों को नजरअंदाज न किया जाए. वास्तव में सेना-प्रमुख के इस भाषण के सूक्ष्म विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि आने वाले समय में पाकिस्तान की दक्षिण एशिया के प्रति नीतियों में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं होने वाला है. चाहे वह आंतरिक सुरक्षा हो या विदेश नीति. सेना की भूमिका पहले की तरह ही निर्णायक रहेगी. भारत न केवल सबसे बड़े शत्रु के रूप में देखा जाएगा बल्कि पाकिस्तान की आतंरिक असफलताओं का ठीकरा भी इसी के सर पर फोड़ा जाता रहेगा. पूर्व की भांति अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क सहित अन्य आतंकी संगठनों को पाकिस्तान में शरण मिलती रहेगी. हमारी सीमा पर दागे जा रहे मोर्टार और उसकी जद में आकर एक महिला की मौत का सबब भी यही है.

आशीष शुक्ला


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