रोहिंग्या : मुस्लिम देशों की बेरुखी

Last Updated 14 Sep 2017 06:07:43 AM IST

काल वैशाखी बांग्लादेश के दक्षिणी भाग को प्रभावित करने वाला एक भयंकर तूफान है, जो हर साल सैकड़ों बंगलादेशियों की जान निगलने को बदनाम है.


रोहिंग्या : मुस्लिम देशों की बेरुखी

लेकिन आजकल बांग्लादेश अपने दक्षिण पूर्व में स्थित देश म्यांमार से आने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर गहरे संकट में फंसता दिखाई पड़ रहा है. विश्व की घनी आबादी और बेहद गरीब देशों की सूची में शुमार होने वाले बांग्लादेश को अनेक इस्लामिक देश नसीहत दे रहे हैं कि वे अपनी सीमाएं म्यांमार से भागने वाले तकरीबन 12 लाख रोहिंग्या मुसलमानों के लिए खोल दे.

तस्करी, आतंकवाद, बेरोजगारी, चक्रवात और राजनीतिक बंद से बेहाल बांग्लादेश लाखों शरणार्थी रोहिंग्या को कैसे गले लगाएं और कहां बसाएं, इसे लेकर इस देश में काफी उथल-पुथल है. हालांकि तमाम संकटों से जूझते हुए भी बांग्लादेश रोहिंग्या की इस मानवीय त्रासदी से उबरने में लगातार मदद कर रहा है, जबकि उसके पास न तो जमीन है, न ही संसाधन. इस समूचे घटनाक्रम के बीच कथित इस्लामिक पैरोकार पाकिस्तान, सऊदी अरब, तुर्की, मलयेशिया या इंडोनेशिया रोहिंग्या के पक्ष में गुस्से का सार्वजनिक इजहार तो कर रहे हैं, लेकिन उनके द्वारा मानवीय मदद के नाम पर रोहिंग्या को अपने देश में जगह देने या बसाने की कोई पेशकश अभी तक नहीं की गई है.

इसके पहले इराक और सीरिया के मुस्लिम शरणार्थियों के लिए यूरोप को मानवाधिकार का पाठ पढ़ाने वाले इस्लामिक देश तब भी अपने मुल्क में मुस्लिम शरणार्थियों को बसाने को लेकर खामोश थे और ये खामोशी बदस्तूर  है. यूरोप के विकसित देशों में शुमार तुर्की ने तो बांग्लादेश आने वाले रोहिंग्या मुसलमानों पर होने वाले खर्च की जिम्मेदारी उठाने की बकायदा घोषणा भी की है. तुर्की के राष्ट्रपति की पत्नी बंगलादेश आकर रोहिंग्या को गले लगाती हैं, उनकी दयनीय हालत पर आंसू भी बहाती हैं.

लेकिन किसी पीड़ित रोहिंग्या को साथ नहीं ले जातीं. अपने परमाणु बम को इस्लामिक परमाणु बम का नाम देकर मुसलमानों की सरपरस्ती का दंभ भरने वाले पाकिस्तान की संसद म्यांमार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव तो लाती है, लेकिन उनकी सरकार ऐसी कोई पेशकश नहीं करती की अपने विमान भेजकर पीड़ित मुसलमानों को पाकिस्तान में बसने की फौरी राहत दी जाए. पूर्वी एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया ने भी विरोध तो किया है लेकिन रोहिंग्या को अपने देश में जगह देने के लिए वे भी तैयार नहीं. दुनिया की तकरीबन 23 प्रतिशत आबादी वाले इस धर्म के देशों में ईरान, कतर, सऊदी अरब जैसे रईस देश शुमार है. लेकिन अपने देश के दरवाजे रोहिंग्या के लिए खोलने को तैयार नहीं.

मलयेशिया और मालद्वीप जैसे देश राजनीतिक रिश्ते तो म्यांमार से तोड़ सकते है मगर रोहिंग्या को रहने के लिए अपनी जमीन पर पनाह नहीं दे सकते. इधर, जेहादी संगठन एकजुट होकर म्यांमार को सबक सिखाने की घोषणा कर चुके है, इसमें यमन का अल कायदा समूह और पाकिस्तान के लश्कर-ए तैयबा शामिल है. जाहिर है इन आतंकी संगठनों के आगे आने से म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों की त्रासदी बढ़ने ही वाली है. इसमें कोई  संदेह नहीं की म्यांमार में रोहिंग्या का शोषण लगातार चला आ रहा है और हाल के दिनों में बौद्ध और रोहिंग्या के बीच कथित राष्ट्रवाद को लेकर बड़े पैमाने पर खूनी संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं. आश्चर्य इस बात का है कि कथित इस्लामिक देश अपने धर्म के लोगों की संकट के समय  मानवीय आधार पर मदद देने से गुरेज करते है, जिससे स्थिति को समय रहते सम्हाला भी जा सकता है.

अफगानिस्तान, इराक, सीरिया और मध्यपूर्व में गृहयुद्ध के पनपने और अस्थिरता का कारण समय रहते स्थिति को न संभालने की गलती ही रही है. देखने में यह भी आता है की इस्लामिक शक्तियां अपने फायदे के लिए हालत को बद से बदतर होने देने और आतंकी प्रश्रय के लिए मुफीद वजह का इंतजार करती है. दुनिया में इस्लामिक आतंकवाद के पनपने से इस्लाम के प्रति अविश्वास और संदेह वीभत्स रूप में सामने आ रहा है. बहरहाल आवश्यकता इस बात की है कि इस्लामिक देश अविलम्ब आगे आकर रोहिंग्या मुसलमानों की मानवीय मदद करें और उन्हें आतंकी बनने से रोके. अन्यथा यह खतरा बौद्ध और इस्लाम के बीच सभ्यता के टकराव का कारण बन सकता है. इसके दूरगामी परिणाम पूरी दुनिया के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं.

डॉ. ब्रह्मदीप अलूने


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