रेल हादसा : पटरी क्यों छोड़ रही रेल?
बुलेट युग में जाने की तैयारियों में जुटी भारतीय रेल को खतौली के पास हुए भीषण रेल हादसे ने आईना दिखा दिया है.
रेल हादसा : पटरी क्यों छोड़ रही रेल? |
अगर वह आम यात्री गाड़ियां को संभालने में भी सफल नहीं है तो उसकी आलोचना होनी ही है. कलिंग उत्कल एक्सप्रेस हादसे में जो आपराधिक लापरवाही सामने आई है, उसे देखते हुए रेलवे को काफी शर्मिदगी उठानी पड़ी है. इसी कारण पहली बार रेलवे बोर्ड के सदस्य, महाप्रबंधक (उत्तर रेलवे) और मंडल रेल प्रबंधक समेत आठ बड़े अधिकारियों के खिलाफ रेल मंत्री के निर्देश पर कड़ी कार्रवाई की गई है.
वैसे तो भारतीय रेल की बड़ी दुर्घटनाएं देर रात में होती हैं, लेकिन खतौली दुर्घटना सायंकाल 5.45 बजे घटी. फिर भी इसकी भयावहता समझने में रेलवे को घंटों लग गए. पहले कहा गया कि 5-6 डिब्बे पटरी से उतरे हैं, लेकिन बाद में स्वीकारा गया कि 14 डिब्बे उतरे हैं. रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा भारी-भरकम टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंचे तो राहत को और गति मिली. पहले इसे आतंकी कोण से देखने की कोशिश की गई, मगर बाद में दो रेलकर्मिंयों के बीच वायरल हुए संवाद ने सारे मामले का खुलासा कर दिया तो रेल मंत्री को सख्त कदम उठाना पड़ा. जहां घटना घटी उस जगह रेल पथ की मरम्मत का काम चल रहा था, परंतु इसकी सूचना खतौली स्टेशन मास्टर और गाड़ी के ड्राइवर को नहीं दी गई. नियमानुसार ऐसी स्थिति में कॉशन लेकर काम होता है और ट्रेनों की आवाजाही कुछ देर के लिए रोकी जाती है.
लेकिन इस मामले में लाल झंडी लगाना भी मुनासिब नहीं समझा गया. जब गाड़ी आई तो पटरी वेल्ड भी नहीं की जा सकी थी और गैंगमैन औजार और सामान फेंककर भाग खड़े हुए. बाद में इस मसले को छिपाने की भी पूरी कोशिश हुई. ऐसी घटनाएं भारतीय रेल प्रणाली को सवालों के घेरे में ला खड़ा करती हैं.
देश की जीवनरेखा भारतीय रेल अपने 8,000 से अधिक रेलवे स्टेशनों से रोज 2.30 करोड़ से अधिक मुसाफिरों को गंतव्य तक पहुंचाती है और रोज तीस लाख टन माल भी ढोती है. दशकों से यह अल्पनिवेश का शिकार रही है, जिस नाते बहुत सी दिक्कतें आई. इसी नाते 2015-16 में पांच सालों के लिए 8.56 लाख करोड़ की भारी भरकम निवेश की योजना बनाई गई है. साथ ही 2017-18 के रेल बजट में एक लाख करोड़ रुपये का संरक्षा कोष बनाने का भी फैसला लिया गया है. रेलवे 2019 तक बड़ी लाइन पर सभी लेबल क्रासिंगों को हटाने की दिशा में भी काम कर रहा है. फिलहाल रेलवे के लिए सबसे बड़ी चुनौती बार-बार रेलगाड़ियों का पटरी से उतरना है. इस मसले को लेकर रेल मंत्री सुरेश प्रभु कई बैठकें ले चुके हैं और क्षेत्रीय रेलों के महाप्रबंधकों को चेतावनी भी दे चुके हैं. उन्होंने यह प्रयास भी किया कि अफसर जमीनी स्तर पर संरक्षा से जुड़े पहलुओं की जांच-पड़ताल करें. रेल मंत्रालय ने पीड़ितों का मुआवजा भी बढ़ा कर दोगुना किया गया. हाल में सरकार ने चार प्रमुख क्षेत्रों पर फोकस किया है, जिसमें यात्री सुरक्षा पहले नंबर पर है. फिर भी आज कब कौन गाड़ी दुर्घटना का शिकार बन जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. बेशक 13,313 यात्री गाड़ियां चला रही भारतीय रेल भारी दबाव और चुनौतियों से जूझ रही है.
1950-51 से अब तक यात्री यातायात में 1344 फीसद और माल यातायात में 1642 फीसद की वृद्धि हुई है. लेकिन रेलमार्ग महज 23 फीसद बढ़ा है. आज भारतीय रेल के 66,787 किमी रेलमार्ग के 1219 खंडों में से 492 खंड पर क्षमता से अधिक यातायात चल रहा है. इसमें भी सबसे व्यस्त 161 खंड इतने संतृप्त हो गए हैं कि पटरियों की मरम्मत के लिए समय निकालना कठिन है. रेलवे में बीते तीन सालों में कुल 361 दुघटनाएं हुई, जिनमें 185 दुर्घटनाओं में रेल कर्मचारियों की गलती उजागर हुई है. फिर भी भारतीय रेल की रीढ़ ग्रुप सी और डी में कर्मचारियों के 2.25 लाख पद खाली पड़े हैं, जिसमें से 1.22 लाख से अधिक पद संरक्षा कोटि के हैं, जिनको तत्काल भरना चाहिए.
रेल दुर्घटनाओं के क्रम में यह ध्यान रखने की बात है कि हाल के महीनों में पटरी से उतरने के सबसे अधिक गंभीर मामले उत्तर प्रदेश में सामने आए हैं. इसमें कानपुर देहात के पुखरायां के पास 20 नवम्बर 2016 को हुई इंदौर-पटना एक्सप्रेस की दुर्घटना सबसे भयावह रही. इसमें 14 डिब्बे पटरी से उतरे थे और 153 लोग मारे गए थे. बाद में इसी इलाके में 29 दिसम्बर 2016 को सियालदह-अजमेर एक्सप्रेस के 15 डिब्बे पटरी से उतर गए थे. 15 अप्रैल 2017 राज्यरानी एक्सप्रेस के आठ डिब्बे रामपुर के पास पटरी से उतरे. बेपटरी के मामले बढ़े हैं और रेल पथ के रख-रखाव में कमजोरियां आई हैं. रफ्तार, धुरा भार और यातायात की मात्रा के लिहाज से पटरियों के बेहतर अनुरक्षण की जरूरत होती है.
कायदे से हर साल करीब पांच हजार किमी रेल पथ नवीकरण होना चाहिए, लेकिन यह तीन हजार किमी के औसत से अधिक नहीं जा रहा है. हाल में रेल संबंधी स्थायी समिति ने रेलवे बोर्ड में सदस्य संरक्षा का पद सृजित करने और पुरानी पटरियों को तेजी से बदलने की सिफारिश की है. फिर भी रेलवे का दावा है कि देश में रेल दुर्घटनाएं 2001-02 में 0.55 फीसद थी, जो घट कर 2015-16 में 0.10 हो गई है. यह यूरोपीय मापदंडों के समकक्ष है. भारतीय रेलमागरे का वर्गीकरण छह समूहों में है. समूह ए में गति सीमा 160 किमी प्रति घंटा है, जबकि बी पर 130 किमी प्रतिघंटा, सी समूह में मुंबई, चेन्नै, दिल्ली और कोलकाता के उपनगरीय खंड आते हैं, जबकि डी पर स्पेशल और 110 किमी प्रतिघंटा तक गति रखी गई है. वहीं ई समूह पर गति सीमा 100 किमी प्रतिघंटा है. इसी लिहाज से अनुरक्षण में प्राथमिकता तय होती है. लेकिन हादसों पर हादसे बता रहे हैं कि तस्वीर धुंधली है. हालांकि दुर्घटनाओं को लेकर रेलवे अब तक बहुत सी उच्च अधिकार प्राप्त समितियां बना चुका है. इनके आधार पर कई काम हुए हैं. फिर भी तस्वीर बेहतर नहीं है. सो ताजा चुनौतियों के आलोक में ठोस रणनीति की दरकार है ताकि रेलों को आम आदमी की अपेक्षाओं के अनुरूप सुरक्षित संचालित किया जा सके.
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