सर्वेक्षण : चुनौतियां हैं बेतहाशा

Last Updated 17 Aug 2017 01:11:09 AM IST

इन कारणों की रोशनी में स्टाक बाजार की तेजी अप्रत्याशित ही नहीं आधारहीन भी दिखाई देती है.


चुनौतियां हैं बेतहाशा

मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रह्मण्यम के आकलन के हिसाब से शेयर बाजार कृत्रिम ऊंचाईयों पर हैं. इस आकलन का मतलब यह नहीं है कि शेयर बाजार में सेंसेक्स को तीन-चार हजार बिंदु नीचे गिर जाना चाहिए या निफ्टी को एक हजार बिंदु नीचे आ जाना चाहिए. पर निवेशकों को बहुत साफ तौर पर समझ लेना चाहिए कि बाजार हर महीने दो हजार बिंदुओं की ऊपरी छलांग नहीं ले सकता. हाल के दिनों में शेयर बाजार लगातार तेजी से ऊपर की ओर जा रहा है. इससे कई निवेशकों की आकांक्षाएं अवास्तविक हो गई हैं. बाजार आशाओं और आशंकाओं के अतिरेक पर चलता है.
आर्थिक सर्वेक्षण ने बाजार की तेजी समझने और समझाने की कोशिश की है, यह बताता है कि घरेलू बाजार और ग्लोबल बाजार में बहुत पैसा बहकर पूंजी बाजार की तरफ आ रहा है. 2016-17 की आखिरी तिमाही यानी जनवरी-मार्च, 2017 में ही विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 68,627 करोड़ डालर भारत में डाले, जबकि 2016 के पूरे कैलेंडर साल में 23,079 करोड़ रु पये भारत से बाहर निकल कर गए थे. भारत में घरेलू मुचअल फंड भी पूंजी बाजार में बढ़-चढ़कर निवेश कर रहे हैं. 2016-17 में मुचअल फंडों के प्रबंधित फंड में पिछले साल के मुकाबले 42 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई. यह रकम भी घूम-फिर कर पूंजी बाजार में ही आनी है, यानी शेयर बाजार की नई ऊंचाईयों के आधार तो दिखाई दे रहे हैं, पर इतनी ऊंचाईयों को न्यायोचित ठहरा पाना मुश्किल दिखाई दे रहा है. आशाओं के संतुलन का वक्त है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में उतनी तेजी की स्थिति दिखाई नहीं पड़ रही है, जितनी तेजी से स्टाक बाजार छलांग लगा गया है. इस साल की शुरुआत से लेकर अब मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक करीब बीस प्रतिशत की छलांग लगा गया है.


बीस प्रतिशत की छलांगवाले शेयर बाजार की अर्थव्यवस्था में छलांगती हुई दिखनी चाहिए थी. पर उस अर्थव्यवस्था का आर्थिक सर्वेक्षण  और मुख्य आर्थिक सलाहकार मुश्किल से सात प्रतिशत विकास का अंदाज देते दिखते हैं. घरेलू अर्थव्यवस्था उतनी तेजी से बढ़ती नहीं दिख रही है, जितनी तेजी से शेयर बाजार कूदते दिखाई पड़ रहे हैं. यह अलग बात है कि पूरी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का जो हाल है, उनमें भारत की अर्थव्यवस्था की सात प्रतिशत विकास दर भी काफी असरदार दिखेगा.

भारतीय शेयर बाजारों में विदेशी पैसा सिर्फ  इसलिए नहीं आ रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की गति बहुत तेज है. पैसा इसलिए आ रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के मुकाबले बाकी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं बहुत ही सुस्त हैं. आर्थिक सर्वेक्षण खंड दो अगर शेयर बाजार गहराई से समझ पाए तो बाजार से तेजी की वजहें कम होती दिखनी चाहिए. सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक विकास दर के सात प्रतिशत से कम ही रहने के आसार हैं. आर्थिक सर्वेक्षण खंड दो साफ करता है कि पावर और टेलीकॉम क्षेत्र की कंपनियों के कारोबार में बहुत समस्याएं देखने को मिल रही हैं.
पावर सेक्टर की कई कंपनियों पर कर्ज की मात्रा बहुत ज्यादा हो गई है. साथ में टेलीकॉम कंपनियों की हालत भी खराब है. रिलायंस जियो का नाम लिये बना आर्थिक सर्वेक्षण का खंड दो इशारा करता है कि इस नये सस्ते विकल्प के चलते तमाम टेलीकॉम कंपनियों की हालत खराब हो गई है. देश की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी एयरटेल के बयान के मुताबिक एयरटेल को हर तिमाही में रिलायंस जियो की वजह से 550 करोड़ रु पये का घाटा होता है. मुकेश अंबानी के छोटे भाई अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन भारी कर्ज में डूब गई है. जब इस तरह से कंपनी कर्ज में डूबती है, तो उसके साथ वो बैंक भी डूबने की तरफ जाते हैं, जिन्होंने ऐसी कंपनियों को कर्ज दिया होता है. कंपनी की बैलेंस शीट खराब होती है, तो साथ-साथ में उन्हें कर्ज देनेवाले बैंकों की बैलेंस शीट भी खराब होती है. इस स्थिति को दोहरी बैलेंस शीट चुनौती की संज्ञा एक आर्थिक सर्वेक्षण ने दी थी. एक आर्थिक सर्वेक्षण ने साफ किया था कि इस स्थिति का निपटारा चार आर से किया जा सकता है-एक आर-रिक्गनिशन यानी पहचान, दूसरा आर-रिजोल्यूशन यानी निपटारा, तीसरा आर- रिकैपिटलाइजेशन यानी पुन:-पूंजीकरण उन बैंकों का, जिनकी पूंजी डूबत खाते में जा रही है और चौथा आर-रिफार्म यानी सुधार. 
पावर और टेलीकॉम सेक्टर में यह दोहरी बैलेंस शीट चुनौतियां बहुत गहरी हैं, यह सर्वेक्षण भी इस बात को रेखांकित करता है. सर्वेक्षण के मुताबिक नोटबंदी के बाद करदाताओं की तादाद में इजाफा हुआ है. सर्वेक्षण की एक तालिका के अनुसार 2015-16 में नये करदाताओं की संख्या में 25.1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी. 2016-17 में यह बढ़ोत्तरी 45.3 प्रतिशत रही. नोटबंदी के चलते ही करीब 10,587 करोड़ रु पये की अतिरिक्त आय की घोषणा हुई. 2015-16 में औसत कर योग्य आय 2 लाख पचास हजार रु पये थी. 2016-17 में यह बढ़कर दो लाख सत्तर हजार रुपये हो गई. नोटबंदी के नकारात्मक परिणामों के अलावा ये सारे परिणाम सकारात्मक परिणाम के तौर पर ही चिह्नित किए जा सकते हैं. आर्थिक सर्वेक्षण खंड दो स्पष्ट करता है कि महंगाई कम करने का लक्ष्य कमोबेश हासिल कर लिया गया है.
जून, 2017 में उपभोक्ता महंगाई सूचकांक के हिसाब से महंगाई दर सिर्फ  1.5 प्रतिशत रही है, लक्ष्य चार प्रतिशत का था. यानी जो लक्ष्य तय कि गया था, महंगाई उससे काफी कम है. आर्थिक सर्वेक्षण का दूसरा खंड काफी बातें खरी-खरी करता है और यह बात साफ कर देता है कि अर्थव्यवस्था के सामने बहुत चुनौतियां हैं, जिनका मुकाबला करना बाकी है. रोजगार का क्षेत्र ऐसा ही क्षेत्र है. प्रबंधन की शिक्षा में एक कहावत चलती है-जिसे आप माप नहीं सकते, उसका आप प्रबंधन नहीं कर सकते. यानी समस्या का हल तो तब निकले, जब पता चले कि वह है क्या? रोजगार के दुरुस्त आंकड़े जुटाना रोजगार के क्षेत्र की समस्याओं के निपटारे के लिए पहला कदम है, इसके बाद बहुत कदम लिये जाने हैं.

आलोक पुराणिक
लेखक


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