नया भारत : सबसे जरूरी अभिव्यक्ति की आजादी

Last Updated 01 Apr 2017 05:38:25 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था-‘2022 में जब हमारी आजादी के 75 वर्ष पूरे होंगे, मैं देश को ‘न्यू इंडिया’ के रूप में देखना चाहता हूं.


नया भारत : सबसे जरूरी अभिव्यक्ति की आजादी

हाल ही में पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद दिल्ली में भाजपा मुख्यालय पर अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था-‘2022 में जब हमारी आजादी के 75 वर्ष पूरे होंगे, मैं देश को ‘न्यू इंडिया’ के रूप में देखना चाहता हूं और इन पांच राज्यों के नतीजों में मुझे न्यू इंडिया की नींव के दशर्न हो रहे हैं. अपने ‘न्यू इंडिया’ की विस्तृत अवधारणा पेश करने के क्रम में ही मोदी ने कहा था- कोई भी पेड़ कितना ही ऊंचा हो, लेकिन जैसे ही उस पर फल लगने लगते हैं, वह झुकने लग जाता है. अब जबकि भारतीय जनता पार्टी रूपी वटवृक्ष पर विजय रूपी फल लगे हैं तो हमारा जिम्मा बनता है कि हम सबसे ज्यादा झुकें, और अधिक विनम्र बनें.’

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इन उद्गारों के जरिए यह आभास कराने की कोशिश की थी कि वे चुनाव प्रचार की तल्खी और आक्रामकता से उबर कर भाजपा नेता के तौर पर नहीं बल्कि प्रधानमंत्री यानी सवा सौ करोड़ देशवासियों के नेता के तौर पर राष्ट्र से मुखातिब हैं. लोगों को भी लगा था कि प्रधानमंत्री ने अपने इस भाषण के जरिए अपनी पार्टी के वाचाल नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी संयम और अनुशासन बरतने की नसीहत दी है. लेकिन इसके बाद उत्तर प्रदेश समेत देश के विभिन्न हिस्सों में जो घटनाएं घटी हैं, वे न सिर्फ  मोदी के भाषण के निहितार्थ के विपरीत हैं बल्कि बेहद डराने और निराश करने वाली हैं.

लेखक और इतिहासकार रामचंद्र गुहा को धमकी भरे ईमेल मिले हैं, जिनमें कहा गया है कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और भाजपा की आलोचना करने से बाज आएं. अलग-अलग आईडी से आए कई मेल में कहा गया है कि मोदी और शाह को दुनिया बदलने के लिए दिव्य महाकाल ने चुना है, इसलिए उनकी आलोचना करने पर दिव्य महाकाल की ओर से मिलने वाली सजा के लिए तैयार रहें. गुहा को यह धमकियां उनके लिखे उस ब्लॉग के लिए मिल रही हैं, जिसमें उन्होंने मोदी और शाह की कार्यशैली की तुलना इंदिरा गांधी और संजय गांधी से की थी.

कोई व्यक्ति क्या खाता है और क्या पहनता है यह उसका निजी मामला है और इसकी आजादी भी अभिव्यक्ति की आजादी में निहित है जो हमारे संविधान ने हम लोगों को दी है. लेकिन लोगों को बाकायदा निर्देशित किया जा रहा है कि उन्हें क्या खाना है और क्या नहीं, क्या पहनना है और क्या नहीं. उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद सरकारी तत्वावधान में ‘एंटी रोमियो अभियान’ के नाम  पर युवा जोड़ों की पकड़-धकड़ और पिटाई जैसी फूहड़ कार्रवाइयों से भी सवाल उठता है कि आखिर हम किस तरह का उदार और लोकतांत्रिक समाज या न्यू इंडिया बनाने जा रहे हैं? हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने कई मौकों पर कहा है कि उनकी सरकार अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार को बनाए रखने के लिए कटिबद्ध हैं.

उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के चंद दिनों बाद ही जून 2014 में एक कार्यक्रम में कहा था-‘यदि हम भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी नहीं दे सकेंगे तो हमारा लोकतंत्र नहीं बचेगा.’ आज अभिव्यक्ति की आजादी पर गंभीर संकट के जो बादल मंडरा रहे हैं, उन्हें देखते हुए भाजपा के मार्गदशर्क नेता लालकृष्ण आडवाणी की वह चेतावनी याद आती है जो उन्होंने दो वर्ष पूर्व आपातकाल की 40 वीं वषर्गांठ के मौके पर एक अंग्रेजी अखबार को दिए साक्षात्कार में दी थी. अपनी इस टिप्पणी में आडवाणी ने कहा था-‘लोकतंत्र को कुचलने में सक्षम ताकतें आज पहले से अधिक ताकतवर हैं और पूरे विश्वास के साथ यह नहीं कहा जा सकता कि आपातकाल जैसी घटना फिर दोहराई नहीं जा सकतीं.

भारत का राजनीतिक तंत्र अभी भी आपातकाल की घटना के मायने पूरी तरह से समझ नहीं सका है और मैं इस बात की संभावना से इनकार नहीं करता कि भविष्य में भी इसी तरह से आपातकालीन परिस्थितियां पैदा कर नागरिक अधिकारों का हनन किया जा सकता है. आज मीडिया पहले से अधिक सतर्क है, लेकिन क्या वह लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्ध भी है? लोकतंत्र के सुचारू संचालन में जिन संस्थाओं की भूमिका होती है, आज भारत में उनमें से केवल न्यायपालिका को ही अन्य संस्थाओं से अधिक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.’ आडवाणी की यह टिप्पणी मौजूदा हालात को सटीक रूप से बयान करती है. देखना होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करते हुए 2022 तक मोदी का ‘न्यू इंडिया’ स्वप्न-संकल्प कैसा आकार ग्रहण करता है.

अनिल जैन
लेखक


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