सरकार भी फांस में

Last Updated 27 Mar 2017 05:43:39 AM IST

कृषि ऋण माफी योजना पर मोदी सरकार के ढुलमुल रवैये से करोड़ों किसान चकित हैं.


कर्ज माफी पर सरकार भी फांस में

कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने संसद में यह कहकर कि उत्तर प्रदेश के किसानों की कर्ज माफी का भार केंद्र सरकार उठाएगी, विवाद को जन्म दे दिया था. इस घोषणा के बाद अन्य राज्यों का तर्क था कि कर्ज माफी के मामले में केंद्र सरकार भेदभाव नहीं कर सकती. उसे एक नहीं सभी राज्यों के किसानों का कर्ज माफ करना चाहिए.

कृषि मंत्री के बयान से भाजपा शासित महाराष्ट्र, राजस्थान और हरियाणा में सुगबुगाहट शुरू हो गई थी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस तो एक प्रतिनिधिमंडल के साथ अपना मांग पत्र लेकर दिल्ली पहुंच गए. लगातार सूखा से वहां 2008 के बाद पांच साल के भीतर 16,000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. विवाद बढ़ने पर हफ्ते भर के भीतर वित्त मंत्री अरु ण जेटली को राज्य सभा में सफाई देनी पड़ी कि कर्ज माफी का भार संबंधित सूबे को ही उठाना पड़ेगा, केंद्र किसी राज्य की कोई मदद नहीं करेगा. हाल ही में संपन्न विधान सभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुद उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसानों से कर्ज माफी का वायदा किया था.

दोनों सूबों में मिली भारी सफलता के बाद भाजपा के नेता पशोपेश में हैं कि अपना वचन कैसे निभाएं? आज उत्तर प्रदेश में 92 फीसद किसानों के पास 2.5 एकड़ से कम जमीन है. इन छोटे और सीमांत किसानों पर 27,429 करोड़ का कर्ज है, जिसे माफ करने का वायदा किया गया है. उधर, कर्ज वसूली की समस्या से जूझ रहे बैंक इस प्रस्ताव से सहमे हुए हैं. उनका ‘बैड लोन’ (खराब कर्ज) 16.6 प्रतिशत की खतरनाक सीमा पर पहुंच चुका है.

नया ऋण देने में उन्हें कठिनाई हो रही है, इसीलिए भारतीय स्टेट बैंक की चेयरमैन अरुंधती भट्टाचार्य ने साफ कह दिया कि ऐसे किसी भी कदम से कर्ज अनुशासन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. मतलब यह कि यदि किसानों के ऋण माफ हुए तो बैंकों की हालत और खस्ता हो सकती है. कृषि मंत्रालय के अनुसार आज देश में 4.68 करोड़ कृषक परिवार कर्ज में डूबे हैं. सर्वाधिक 79.08 करोड़ रु पये का कर्ज उत्तर प्रदेश के किसानों पर है. इसके बाद महाराष्ट्र (40.67 करोड़ रु.), राजस्थान (40.05 करोड़ रु.), आंध्र प्रदेश (33.42 करोड़ रु.), पश्चिम बंगाल (32.78 करोड़ रु.), कर्नाटक (32.77 करोड़ रु.) और बिहार (30.15 करोड़ रु.) का स्थान है.



सरकार द्वारा संसद को दी जानकारी के अनुसार फिलहाल देश भर के किसानों पर 12.6 लाख करोड़ रुपये का कर्ज चढ़ा हुआ है, जिसमें से 9.57 लाख करोड़ वाणिज्यिक बैंकों का, 1.57 लाख करोड़ सहकारी बैंकों का और 1.45 लाख करोड़ क्षेत्रीय बैंकों का है. दिलचस्प तथ्य यह है कि कुल कर्ज में छोटे और सीमांत किसानों का हिस्सा करीब पचास प्रतिशत ही है, शेष ऋण बड़े किसानों और कृषि से जुड़े उद्योगों के खाते में है. यह बात तो सब जानते हैं कि अधिकांश छोटे किसान बैंक नहीं, साहूकारों से कर्ज लेते हैं, इसलिए सरकारी कर्ज माफी योजना का उन्हें ज्यादा लाभ नहीं मिल पाता. बैंकों से कर्ज लेने वाली दूसरी श्रेणी में बड़े उद्योग और कॉर्पोरेट हैं, जो कर्ज नहीं लौटा रहे.

लोक सभा में दी जानकारी के अनुसार दिसम्बर 2016 तक देश में जानबूझ कर कर्ज न लौटाने वाले लोगों की संख्या 9,130 थी और उन पर 91,155 करोड़ रु पये का कर्ज बकाया था. इस साल के आर्थिक सर्वे में सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने ‘बैड बैंक’ का आइडिया उछाला है. सरकार को सलाह दी गई है कि बैंकों को ‘बैड लोन’ से मुक्ति दिलाने के लिए के एक ‘बैड बैंक’ खोला जाना चाहिए, जिसे फंसी पड़ी सारी रकम से निपटने की जिम्मेदारी सौंपी जाए. मतलब यह कि बैंकों की बैलेंस शीट साफ-सुथरी बनाने और बड़े कर्जदारों को राहत देने के लिए एक नया मार्ग खोजा जा रहा है.

दुनिया के किसी देश में आर्थिक संकट या नीतिगत विफलता की वजह से जब कोई वर्ग आर्थिक संकट में घिर जाता है, तब राहत के लिए सरकार कर्ज माफी योजना लाती है. देश में 1990 में वीपी सिंह और 2008 में मनमोहन सिंह की सरकार ने किसानों के कर्ज माफ किए थे. बड़े उद्योगपतियों द्वारा जानबूझकर कर्ज न लौटाने पर मौन रहने वाली जमात ने किसानों की कर्ज माफी का हर बार विरोध किया है और इस दफा भी उनका रवैया वैसा ही है. देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इसका सामना कैसे करती है?

धर्मेन्द्रपाल सिंह


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