मौद्रिक नीति : बेहतर होगी अर्थव्यवस्था

Last Updated 14 Feb 2017 02:26:29 AM IST

जब कोई डॉक्टर किसी मरीज को दवा नहीं देता है तो इसके दो कारण हो सकते हैं. एक तो यह कि मरीज की तबीयत ठीक है और दूसरी यह कि अभी और जांच की जरूरत है.


मौद्रिक नीति : बेहतर होगी अर्थव्यवस्था

यह निर्णय डॉक्टर ही लेता है. अच्छे डॉक्टर पर इस बात का कोई प्रभाव नहीं होता कि मरीज के रिश्तेदार, जान-पहचान वाले एवं अन्य लोग क्या कह रहे हैं?

डॉ. उर्जित पटेल ने मौद्रिक नीति की घोषणा करते हुए समस्त रेट यथावत ही नहीं रखे; यह भी संकेत दिए कि भविष्य में भी नीतिगत रेट में रु ख उदार नहीं बल्कि तटस्थ रह सकता है. इसका मतलब यह कि भविष्य में दरों के कम होने की गुंजाइश कम ही रहेगी. इस आत्मविश्वास के कौन-कौन से कारण हो सकते हैं. इस पर जब हम गौर करते हैं तो पाते हैं कि विकास दर 2017-18 के लिए 7.4 फीसद निर्धारित है, जो चालू वर्ष में मात्र 6.9 फीसद ही है. यह दर अव्यावहारिक नहीं है. एक बार फिर से आर्थिक गतिविधियां सामान्य होने की पूर्ण आशा है. नोटबंदी के चलते आर्थिक गतिविधियों में आई गिरावट विशेषकर असंगठित क्षेत्रों एवं खुदरा व्यापार में हुई है. ये क्षेत्र न केवल नैसर्गिक मांग की वजह से ही तेजी से वापस लौटेंगे, बल्कि डिजिटल लेन-देन के मद्देनजर अर्थव्यवस्था के अनुमानों में सीधा योगदान भी करेंगे. ये वे क्षेत्र हैं, जो समानांतर काले धन की व्यवस्था की वजह से आंकड़ों में शामिल नहीं हो पाते थे.

रिजर्व बैंक का अनुमान उचित ही है कि अगले वित्त वर्ष में नोटबंदी से उत्पन्न समस्याओं का अंत हो जाएगा एवं तेजी से विकास होगा. रिजर्व बैंक को विकास एवं मुद्रास्फीति में संतुलन करना होता है. मौद्रिक नीति अर्थव्यवस्था के संतुलन को बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण औजार है. यह गतिविधि तलवार की धार पर चलने के समान होती है. रिजर्व बैंक के गवर्नर को निर्णय में सहायता के लिए जो  मौद्रिक नीति समिति है, उसका यह विचार रहा है कि अधिक-से-अधिक मुद्रास्फीति 5 फीसद तक जा सकती है, जो कि निर्धारित 4 फीसद से तो अधिक है. किंतु ‘2 फीसद कम ज्यादा’ के दायरे में ही है. मुद्रास्फीति की इस दर की संभावना के मद्देनजर दरों में बदलाव नहीं किया गया  ग्लोबल इकनोमी में कमोडिटी, खास तौर पर ऑयल के दामों में तेजी का रु ख है, जिस कारण मुद्रास्फीति पर दवाब रह सकता है. अमेरिकी ब्याज दरों में वृद्धि भी विकास की वृद्धि दर पर दवाब बना सकती है. यह खतरा भी है.

रिजर्व बैंक के थिंक टैंक ने अवश्य ही इसीलिए अपने रु ख को उदार  से तटस्थ किया है  ताकि नीतिगत दरों को उस स्थिति में उपयोग में लाया जा सके. इससे यह स्पष्ट हो गया है कि निकट भविष्य में सस्ते कर्ज का रास्ता सिर्फ  बैंकों के पास उपलब्ध तरलता से ही हो सकेगा. रिजर्व बैंक गवर्नर ने स्पष्ट किया कि उसने विगत में लगातार लगभग 175 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की है. इसके बावजूद बैंकों ने औसत 80 से 85 बेसिस पॉइंट की ही कटौती की है. हालांकि, कुछ बैंकों जैसे स्टेट बैंक का दावा है कि उन्होंने 200 बेसिस पॉइंट तक की कटौती सीमांत लागत पर ऋणों की ब्याज दर  (एमएलसीआर)  में की है. रिजर्व बैंक ने उम्मीद जाहिर कि है कि बैंकों की ब्याज दरों में कटौती की अभी और संभावना बनी हुई है. एक बात और जो इस पॉलिसी स्टेटमेंट से उभर कर आई है, वह है विकास से अधिक मुद्रास्फीति की चिंता. इस समय अगर दरों में कमी की जाती तो वह ऐसे होती जैसे ‘न्यूट्रल गियर’ में खड़ी गाड़ी में ‘एक्सीलेटर’ पर दवाब डालना और ‘स्पीड’ की इच्छा करना.

रिजर्व बैंक ने अवश्य ही इस बार होने वाली रबी की बम्पर फसल की उम्मीद को भी संज्ञान में लिया होगा. काले धन पर अंकुश ने बिचौलियों के काले धंधे पर करारी चोट की है. आम आदमी के पास इस बचत एवं बजट से मिली आयकर में राहत से क्रय शक्ति में होने वाली वृद्धि को भी मौद्रिक नीति में ध्यान में रखा गया है. बजट प्रावधानों से काफी पैसा आर्थिक गतिविधियों में लगेगा, इस वजह से विकास में तेजी बिना ब्याज कट के भी रह सकती है. ऐसा अवश्य ही रिजर्व बैंक ने सोचा है. दरें कम न होने की अन्य वजहों में से एक सरकार द्वारा अपनी उधारी सीमा में बहुत अधिक वृद्धि न किया जाना भी है, जिसका लक्ष्य 4.2 लाख करोड़ रुपये एवं ‘बॉय बैंक’ के पश्चात सिर्फ  3.48 लाख करोड़ रुपये रखा गया है.

सकारात्मक अनुमानों पर आधारित इन लक्ष्यों में कोई नकारात्मक स्थिति उत्पन्न होने पर भी इनको पाना असम्भव नहीं होगा. इस वजह से तरलता की स्थिति में कोई कमी दृष्टिगोचर नहीं हो रही है. एक अन्य वजह नोटबंदी के उपरांत धन के बैंकिंग सिस्टम में आना तो है ही, मगर पूंजी  की कमी से जूझ रहे बैंक उसका बहुत अधिक लाभ ऋण की उपलब्धता बढ़ा कर नहीं कर पाएंगे. ‘बासेल’ निर्देशों के पालन के लिए पूंजी की आवश्यकता है और उस पूंजी के लिए बैंकों को सरकार से अधिक सहायता की आवश्यकता थी, जो उन्हें इस बजट से नहीं मिली है. ऐसे में रिजर्व बैंक अगर दरें कम करता तो मानो ऐसा होता जैसे तीर तो दे दिए गए हों मगर कमान नहीं दी गई हो. पूंजी की पर्याप्त की कमी ऋणों में बहाव लाने में अवरोध है. एक अलग से ‘बैड बैंक’ की अवधारणा को मूर्त रूप  देने के उद्देश्य से ही शायद इस बजट में बैंकों को पूंजी की उपलब्धतता कम की गई  है. वह पैसा संभवत ‘बैड बैंक’ की मूल पूंजी में लगाया जाएगा.

‘बैड बैंक’ से तात्पर्य उस संस्था से है, जो बैंकों के ‘एनपीए’ को डिस्काउंट पर खरीद कर उनकी बैलेंस शीट को मार्केट से पूंजी उगाही के लिए आकषर्क बनाएगी. यह अवश्य है कि सरकार को नोटबंदी से होने वाले ‘विंड फॉल लाभ’ के रूप में अपेक्षित लक्ष्य हासिल नहीं हुए. मगर उन 18 लाख खातों की जांच, जिनमें लगभग 5 लाख करोड़ रु. चिह्नित हुआ है, चल रही है. इस प्रक्रिया में अवश्य ही कर की उगाही के रूप में अपेक्षित धन मिलेगा, जो भविष्य में विकास को ईंधन उपलब्ध कराता रहेगा. यह भी एक कारण हो सकता है कि रिजर्व बैंक ने दरों में कोई बदलाव नहीं किया, उनके पास संतोष एवं यथास्थिति बनाए रखने के कारण अवश्य ही हैं. अब इस बात में भी कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि इस वर्ष में ही ब्याज दरों में हल्की वृद्धि आरम्भ हो और वह एक शुभ संकेत होगा कि मरीज को दवा नहीं, टॉनिक दिया जा रहा है.

अनिल उपाध्याय
लेखक


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