गंगा शुद्धि : मोदी का सपना रह जाएगा अधूरा

Last Updated 11 Feb 2017 01:54:00 AM IST

नरेन्द्र मोदी सरकार गंगा की शुद्धि के बारे में लाख दावा करती रहे लेकिन असलियत है कि यह सपना सपना ही रह जाएगा. हालात और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) की टिप्पणी इसका जीता-जागता सबूत है.


गंगा शुद्धि : मोदी का सपना रह जाएगा अधूरा

एनजीटी की मानें तो नमामि गंगे मिशन की कामयाबी तो तब संभव है जबकि गंगा की शुद्धि के लिए किए जाने वाले प्रयास सफल हों. यह नमामि गंगे मिशन से जुड़ी सभी सरकारी एजेंसियों की नाकामियों को उजागर करता है. सच यह है कि इस बाबत आवंटित राशि का अब तक कोई कारगर इस्तेमाल ही नहीं हुआ है.

सही मायने में कहा जाए तो उस राशि का दुरुपयोग ही हुआ है. यह जनता के पैसे की बर्बादी है. यह इससे जाहिर होता है कि 2014 से अब तक गंगा की एक बूंद तक साफ नहीं हो पाई है. इससे साफ हो जाता है कि मोदी सरकार की महत्त्वाकांक्षी परियोजना नमामि गंगे 2018 तक किसी भी हालत में पूरी नहीं होने वाली. वह बात दीगर है कि गंगा की सफाई को लेकर केंद्र सरकार के महत्त्वूर्ण सात मंत्रालय-वह चाहे जल संसाधन हो, शहरी विकास हो, ग्रामीण विकास, पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय हो, पर्यटन हो, मानव संसाधन विकास हो या आयुष मंत्रालय या फिर नौवहन जी-जान से क्यों न जुटे हों, लेकिन उनकी लाख कोशिशों के बावजूद परिणाम शून्य हैं.

गंगा मैली है और उसमें आज भी गंदे नालों, सहायक नदियों से प्रदूषणयुक्त कचरा, औद्यौगिक इकाइयों द्वारा विषैला गंदा पानी और रसायनयुक्त प्रदूषित अपोष गिर रहा है. सरकार दावे कुछ भी करे, इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता कि आज भी रोजाना 1,2051 मिलियन लीटर सीवेज बिना शोधन के गंगा में सीधे गिराया जा रहा है. यह वह अहम वजह है, जिसके चलते आए-दिन गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है. जबकि गंगा की शुद्धि के लिए 20 हजार करोड़ की राशि आवंटित की गई है. इसके बावजूद गंगा के भविष्य को लेकर शंका बरकरार है कि मोदी सरकार के लक्ष्य के अनुरूप गंगा प्रदूषण मुक्त हो भी पाएग. यही वजह है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने नमामि गंगे मिशन से जुड़ी सभी सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई कहें या कार्यक्षमता पर सवालिया निशान लगाते हुए असंतोष जताया है और कहा है कि वे बताएं कि वह नमामि गंगे मिशन को कैसे संचालित कर रहे हैं. हमें बहानेबाजी नहीं चाहिए.

हमें नाटक नहीं, कार्रवाई चाहिए. परिणाम चाहिए. इस बारे में केंद्र राज्य पर और राज्य केंद्र पर दोषारोपण बंद करें. प्राधिकरण ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सहित अन्य एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि वह उनके काम करने के तरीके से संतुष्ट नहीं है. प्राधिकरण की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस मिशन से जुड़ी सभी एजेंसियों का दायित्व है कि वे प्रधानमंत्री की इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना के लक्ष्य को पूरा करने में जुट जाएं. विडम्बना है कि गंगा की सफाई के मामले में नमामि गंगे मिशन से जुड़ी सभी एजेंसियां गंगा सफाई के दावे करते नहीं थकती, जबकि असलियत में अभी तक कामयाबी न के बराबर है. बीते दिनों एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार को चेतावनी दी कि अभी तक आदेश के बावजूद बिजनौर और अमरोहा के औद्योगिक प्रतिष्ठान जो प्रदूषित रसायनयुक्त कचरा बहाने के दोषी हैं, क्यों नहीं बंद किए गए?

यदि आदेश के अनुपालन में ढिलाई बरती जाती है तो परिणाम भुगतने को तैयार रहना होगा. प्रदेश सरकार को एक सप्ताह में इसका जबाव देना होगा कि उसने ऐसा क्यों किया. अब बहानेबाजी से काम नहीं चलने वाला. बीते साल के आखिरी महाने में भी एनजीटी ने कहा था कि विडंबना है कि गंगा की सफाई के लिए मिशन की कामयाबी के लिए राशि उन्हें दी गई, जिन्हें इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं है. असलियत में औद्योगिक रसायनयुक्त अपोष, शहरी सीवेज, ठोस विषैला कचरा, रेत व पत्थर की चुनाई और बांधों से गंगा तिल-तिलकर धीमी मौत मर रही है. विडम्बना यह है कि एनजीटी की कड़ाई के बावजूद हालात में कोई बदलाव नहीं आया है. निष्कर्ष आज भी वही सब हो रहा है जो पिछले 30 सालों से हो रहा है. जबावदेही तय करने के किसी व्यवस्थित तंत्र का पूर्णत: अभाव है. यही नहीं गंगा की सफाई की चुनौती के सामने जनजागरण और प्रदूषण रोकथाम के सारे उपाय नाकाम साबित हो रहे हैं. ऐसे हालात में गंगा की शीघ्र शुद्धि की आस बेमानी है.

ज्ञानेन्द्र रावत
लेखक


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