अमेरिका : रूस को कैसे देखे

Last Updated 11 Feb 2017 02:04:49 AM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में जब डोनाल्ड ट्रंप चुने गए तब एक वरिष्ठ अमेरिकी लेखक ने टिप्पणी की थी, ‘आज 9 नवम्बर यानि फ्रेंच रिवोल्यूशनरी कैलेंडर के अनुसार 18वां ब्रूमेयर है.’


अमेरिका : रूस को कैसे देखे

यह वही दिन है जब 1799 में नेपोलियन बोनापार्ट ने अपने कुछ लोगों के साथ रिवोल्यूशनरी सरकार के खिलाफ तख्तापलट का नेतृत्व किया था, और स्वयं को प्रथम कांसुल के रूप में स्थापित कर विश्व इतिहास को पुनर्निदेशित करने वाली व्यवस्था पेश की थी. हालांकि लेखक ने यह भी स्पष्ट करने का प्रयास किया कि ट्रंप नेपोलियन नहीं हैं, लेकिन हममें से जो लोग उन्हें सर्वसत्तावादी कॉमिक-ओपेरा रूप में देख रहे हैं, वे यह भी मान रहे होंगे कि विश्व इतिहास की इस पैरोडी में 18वीं ब्रूमेयर पर पुनर्विचार का समय आ गया है.

अब जब ट्रंप पदासीन हो चुके हैं, और और अपने कुछ निर्णयों के जरिए अमेरिकी मूल्यों और संवैधानिक व्यवस्था के विपरीत जाते दिख रहे हैं, तब क्या इस बात पर विचार किया जा सकता है कि उनमें नेपोलियन के कार्यों की प्रतिध्वनियों को महसूस करना या उनका अनुमान लगाना उचित है? सवाल यह भी उठता है कि क्या ट्रंप का पुतिन के प्रति झुकाव निजी हितों या लगावों का परिणाम है या अमेरिका अब अपनी विदेश नीति के ट्रैक को बदलने जा रहा है? ट्रंप का चीन के प्रति 9 फरवरी, 2017 दिसम्बर को यू-टर्न लेना किस तरफ संकेत करता है? क्या यह मान लिया जाए कि ट्रंप की विदेश नीति अभी मुकम्मल अवसंरचना सुनिश्चित नहीं कर पाई है, इसलिए उसे अनिश्चितता के खांचे में लाकर देखना उचित होगा? सवाल यह भी है कि इन सब स्थितियों और अमेरिकी विदेश नीति में निर्मित हो रहे नये आयामों में भारत की जगह क्या होगी? या भारत उनमें स्वयं को कहां पर पाता है? क्या ट्रंप भारत के लिए लाभदायक होंगे या भारत को उनसे सचेत रहने की जरूरत होगी?

उनकी नीतियों को कुछ बिंदुओं के साथ देखा जाए तो कुछ बातें स्पष्ट होती दिखाई देती हैं. प्रथम यह है कि ट्रंप आज से लगभग 45 वर्ष पहले यानि 14 फरवरी, 1972 को राष्ट्रपति र्रिचड निक्सन को उनके ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर द्वारा दी गई उस सलाह पर आगे बढ़ने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं जिसमें कहा गया था कि रूसियों से चीनी कहीं अधिक खतरनाक हैं. द्वितीय यह कि ट्रंप दूसरे ध्रुव के रूप में मास्को को नहीं बल्कि बीजिंग को देख रहे हैं. तृतीय-ट्रंप बराक ओबामा की एशिया पीवोट नीति से मास्को पीवोट की ओर शिफ्ट को प्रश्रय देते हुए दिखाई दे रहे हैं. चतुर्थ ट्रंप चीन को घेरने के लिए किन देशों को और साथ लें मसलन क्या नाटो देशों का साथ उनके लिए पर्याप्त होगा या फिर वे दक्षिण एशिया में भी कोई नया संतुलन साधने की कोशिश करेंगे. यदि दक्षिण एशिया में नया संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं तो क्या भारत को पाकिस्तान पर तरजीह दे सकेंगे?

ऐसा लगता है कि ट्रंप अपनी विदेश नीति में मास्को पीवोट को केंद्र में रखना चाहते हैं. आखिर, ऐसा क्यों हैं? उल्लेखनीय है कि लगभग 45 वर्ष पूर्व 14 फरवरी, 1972 को राष्ट्रपति र्रिचड निक्सन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर ने मुलाकात कर निक्सन की होने वाली चीन यात्रा पर चर्चा की थी. चूंकि किसिंजर, निक्सन की बीजिंग की ऐतिहासिक ओपनिंग से पहले ही चीन की गुप्त यात्रा कर चुके थे, इसलिए उन्होंने अपना मत रखते हुए कहा था कि चीनी, रूसियों से कहीं ज्यादा खतरनाक हैं, बल्कि वास्तविकता तो यह है कि वे पूरे ऐतिहासिक काल में अधिक खतरनाक रहे हैं. तब किसिंजर ने कहा था कि यदि अगले 20 वर्ष में आपके उत्तराधिकारी आपकी तरह ही बुद्धिमान रहे, तो वे चीन के बजाय रूस की तरह अधिक झुकाव प्रदर्शित करेंगे. किसिंजर का सुझाव था कि संयुक्त राज्य अमेरिका के रूप में आपको मॉस्को और बीजिंग के बीच में शत्रुता का लाभ उठाने की जरूरत है. आपकी आवयकता यह है कि आप बीजिंग और मास्को के बीच में बैलेंस ऑफ पॉवर गेम में पूरी तरह से संवेदनहीन होकर खेलें. इसलिए अब विदेश नीति के कुछ विलेषक इस निष्कर्ष पर पहुंचते दिख रहे हैं कि चीन के साथ निक्सन की सफलता के लगभग 45 वर्ष पश्चात अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति किसिंजर की सलाह से आगे चलने के मनोविज्ञान का अनुसरण कर सकते हैं.

राष्ट्रपति ट्रंप के ट्वीट, फोन कॉल, साक्षात्कार और बयानों की  श्रृंखला की कोख से उपजे संकेतों से पता चलता है कि उनकी चीन के प्रति नीति सख्त होगी. यही कारण है कि दशकों की परंपरा को तोड़कर एक अमेरिकी राष्ट्रपति ने ताइवान के राष्ट्रपति से बात की जिन्होंने 2 दिसम्बर को जीत की बधाई देने के लिए सीधे बात की थी. इसके दो दिन बाद ही ‘फॉक्स न्यूज संडे’ में ट्रंप ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ पर प्रश्न उठा दिया था, जिसके तहत वाशिंगटन, बीजिंग और ताइपे, निक्सन की यात्रा के बाद से एशिया में शांति बनाए रखे हुए हैं. यही नहीं ट्रंप ने चीन को मुद्रा से छेड़ने, व्यापार में संयुक्त राज्य अमेरिका को धोखा देने और उत्तर कोरिया के न्यूक्लियर प्रोग्राम में अमेरिकी डील को असफल बनाने के लिए दोषी ठहराया.

इस बीच कार्ली फियोरिना, जो कि ट्रंप के राष्ट्रीय इंटेलिजेंस के निदेशक हैं, की राष्ट्रपति से मुलाकात और उनसे हुए संवाद के बाद यह घोषणा कि चीन हमारा सबसे महत्त्वपूर्ण विरोधी और उभरता हुआ विरोधी है, के विपरीत ट्रंप ने जब रेक्स टिलर्सन को विदेश मंत्री के रूप में नियुक्ति की घोषणा की तो कहा कि उनके पुतिन के साथ लंबे रिश्ते रहे हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में ट्रंप ने अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल माइकल टी फ्लिन की नियुक्ति की जिन्हें रूस के साथ बेहतर संबंधों के लिए जाना जाता है. कुल मिलाकर वाशिंगटन-मास्को धुरी की शुरुआत होती दिख रही है. वाशिंगटन और मास्को करीब आते हैं, तो भारत को सबसे अधिक लाभ मिलेगा क्योंकि भारत दोनों तरफ से ही इस आरोप से बच जाएगा कि वह मास्को को अधिक तरजीह देता है या वाशिंगटन को. लेकिन जिस तरह से ट्रंप ने बीजिंग के प्रति यू-टर्न लिया है उससे अब यह आवश्यक हो चुका है कि भारत को एशिया में बनते नये समीकरणों में अपनी भूमिका स्वयं सुनिश्चित करनी होगी.

डॉ. रहीस सिंह
लेखक


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