मौद्रिक समीक्षा : नोटबंदी का साया
देखा जाए तो कच्चे तेल की कीमत में बढ़ोतरी होने का अंदेशा, सातवें वेतन आयोग की सिफारिश से मुद्रास्फीति पर दबाव बढ़ने का खतरा, अमेरिका की संरक्षणवादी नीति से वैश्विक व्यापार में सुस्ती आने के कयास, विमुद्रीकरण के प्रभाव को पूरी तरह से खत्म होने में अभी और समय लगने की संभावना, बैंकों का बढ़ता एनपीए और उनके पुनर्पूजीकरण की चुनौती आदि ने रिजर्व बैंक को नीतिगत दर को अपरिवर्तित रखने पर मजबूर किया.
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भले ही केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों को यथावत रखा, लेकिन वित्त वर्ष 2016-17 के लिये आर्थिक वृद्धि दर को घटा कर 6.9 प्रतिशत का अनुमान, वित्त वर्ष 2017-18 में 7.4 प्रतिशत की दर से वृद्धि का आकलन, अर्थव्यवस्था में जल्द ही गुलाबीपन आने की संभावना, वित्त वर्ष की पहली छमाही में 4.00 से 4.50 प्रतिशत और दूसरी छमाही में 4.50 से 5.00 प्रतिशत के स्तर पर मुद्रास्फीति के रहने जैसे महत्वपूर्ण आकलन किए, जिससे आने वाले दिनों में भारतीय अर्थव्यवस्था की कैसी तस्वीर रहेगी का अनुमान लगाया जा सकता है.
सच कहा जाए तो नीतिगत दर को 6.25 प्रतिशत के स्तर पर बरकरार रखने का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण विमुद्रीकरण है. हालांकि, विमुद्रीकरण का नकारात्मक प्रभाव काफी हद तक कम हुआ है, लेकिन इसके सामान्य होने में कुछ और समय लगेगा. इसमें दो राय नहीं है कि आज भी विविध उत्पादों की मांगों में नरमी बनी हुई है, क्योंकि औद्योगिक क्षेत्र में सुस्ती का माहौल है.
बचत एवं चालू खाते से नकदी की निकासी सीमा में जरूर इजाफा हुआ है, लेकिन रुपये की हुई परियोजनाओं या कल-कारखानों में कामकाज को फिर से शुरू करने एवं बेरोजगार हुए लोगों का प्रणाली में भरोसा बनने में समय लगेगा, क्योंकि अभी भी बाजार में नकदी की कमी है और सभी कार्यों को डिजिटल माध्यम से किया जाना मुमकिन नहीं है. अमेरिका में ट्रंप के सत्तासीन होने के बाद वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है, क्योंकि उनके द्वारा लिये जा रहे निर्णयों में तार्किकता की कमी झलकती है. कच्चे तेल की कीमत में एक लंबे समय से नरमी की स्थिति बनी हुई है, लेकिन इसमें कभी भी इजाफा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. सरकार को इसका अंदाजा भी है, क्योंकि कच्चे तेल के भंडारण की दिशा में बजट में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं.
वित्त मंत्री ने अप्रत्यक्ष कर का बजट अनुमान 8.8 प्रतिशत रखा है, क्योंकि अप्रत्यक्ष कर के संग्रह में वित्त वर्ष 2015 से कमी आ रही है. कस्टम ड्यूटी में वित्त वर्ष 2017-18 में 12.9 प्रतिशत की दर से इजाफा होने की बात कही गई है, जोकि राशि में 2.45 लाख करोड़ रुपये है. गौरतलब है कि यह वित्त वर्ष 2017 के संशोधित अनुमान 3.2 प्रतिशत से अधिक है. सेवा कर की प्राप्ति की वृद्धि 11.1 प्रतिशत की दर से होने का अनुमान लगाया गया है, जो राशि में 2.75 लाख करोड़ रुपये है. बैंकिंग तंत्र को मजबूत करने के लिए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ‘इंद्रधनुष’ योजना के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को वित्त वर्ष 2017-18 में 10,000 करोड़ रुपये की शेयर पूंजी दी है और जरूरत पड़ने पर उन्हें और भी राशि दी जा सकती है. दूसरी ओर, चालू वित्त वर्ष की दिसम्बर तिमाही में कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने एनपीए के मोर्चे पर बेहतर काम किया है.
दूसरी तरफ दिसम्बर में खुदरा मुद्रास्फीति 3.41 प्रतिशत के स्तर पर रही थी, जो केंद्रीय बैंक के मार्च 2017 के लक्ष्य 5.00 प्रतिशत से कम है, लेकिन कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा होने, विमुद्रीकरण का प्रभाव खत्म होने के बाद सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों से मुद्रास्फीति पर दबाव बढ़ने का खतरा आदि से महंगाई में इजाफा होनी की संभावना बनी हुई है.
कहा जा सकता है कि विमुद्रीकरण के कारण सूक्ष्म, लघु, मझौले एवं बड़े स्तर पर औद्योगिक क्षेत्र में नरमी की स्थिति बनी रहना, बैंकों के पिछले कर्ज दर कटौती से अग्रिम में अपेक्षित वृद्धि नहीं होने, अमेरिका की संरक्षणवादी नीति से वैश्विक बाजार में मंदी आने की संभावना, कच्चे तेल की कीमत में इजाफा होने की उम्मीद, विदेशों में ब्याज दरों के और भी ऊंचा होने की संभावना आदि के कारण रिजर्व बैंक ने फिलवक्त नीतिगत दर में कटौती करना उचित नहीं समझा. दरअसल, केंद्रीय बैंक चाहता है कि विमुद्रीकरण के असर के पूरी तरह से खत्म होने के बाद ही इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जाएं, ताकि मुद्रा कर्ज की बढ़ी हुई 2.40 लाख करोड़ रुपये एवं मनरेगा के तहत आवंटित 48000 करोड़ रुपये का इस्तेमाल सही समय में किया जा सके.
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