असमानता : बदहाल होते गरीब

Last Updated 19 Jan 2017 04:34:09 AM IST

गरीबों के उत्थान के लिए समर्पित संस्था ऑक्सफैम ने ‘99 प्रतिशत लोगों के लिए एक अर्थव्यवस्था’ शीषर्क से रिपोर्ट जारी किया है.


असमानता : बदहाल होते गरीब

जिसके अनुसार भारत के 57 अरबपतियों के पास लगभग 216 अरब डॉलर की संपत्ति है, जो देश के 70 प्रतिशत आबादी के कुल संपत्ति के बराबर है. भारत की कुल 58 प्रतिशत संपत्ति पर देश के एक प्रतिशत अमीरों का कब्जा है, जो वैश्विक आंकड़ा 50 प्रतिशत से अधिक है. विश्व के 8 अरबपतियों के पास दुनिया के 50 प्रतिशत आबादी के बराबर संपत्ति है, जबकि भारत के 84 अरबपतियों के पास 248 अरब डॉलर की संपत्ति है.

मौजूदा समय में देश की कुल संपत्ति लगभग 3100 अरब डॉलर है, जिसमें 19.3 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ मुकेश अंबानी शीर्ष पर हैं, जबकि दिलीप सांघवी के पास 16.7 अरब डॉलर और अजीम प्रेमजी के पास 15 अरब डॉलर की संपत्ति है. 75 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ बिल गेट्स शीर्ष पर हैं, जबकि 67 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ एमैनिसयो ऑर्टेगा दूसरे और 60.8 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ वारेन बफेट तीसरे स्थान पर हैं. ऑक्सफैम की रपट में कहा गया है कि 2015 से विश्व के एक प्रतिशत अमीरों के पास दुनिया के बाकी लागों से अधिक संपत्ति है. रपट के मुताबिक दुनिया की आधी गरीब आबादी की संपत्ति पहले से कम हुई है. चीन, इंडोनेशिया, लाओस, भारत, बांग्लादेश और श्रीलंका में 10 प्रतिशत अमीरों की आय में 15 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि गरीबों की 10 प्रतिशत आबादी की आय में 15 प्रतिशत से अधिक की गिरावट देखी  गई है.

हालांकि, कुछ महीनों पहले संपत्ति शोध कंपनी ‘न्यू वर्ल्ड वेल्थ’ ने वैश्विक स्तर पर बढ़ती असमानता पर एक रिपोर्ट जारी किया था, जिसमें दुनिया में रूस के बाद भारत को संपत्ति वितरण के मामले में दूसरा सबसे ज्यादा असमानता वाला देश बताया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में 54 प्रतिशत संपत्ति गिने-चुने धनवानों के हाथों में है. इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो भारत में धनकुबेरों की संख्या में अल्प समय में 4 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की मानें तो देश के कुछ राज्य मसलन बिहार, झारखंड, ओडिसा, मध्य प्रदेश,और उत्तर प्रदेश कुपोषण की समस्या से त्रस्त हैं. गरीबी की वजह से इन राज्यों में कुपोषण के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में छह करोड़ से भी अधिक बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं. ग्रामीण भारत में लगभग 83.3 करोड़ लोग निवास करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के रूप में कृषि को छोड़कर कोई दूसरा विकल्प उपलब्ध नहीं है. कुटीर उद्योग के अभाव में लोगों की निर्भरता सिर्फ  कृषि पर है, जिसके कारण कृषि क्षेत्र में छदम रोजगार की स्थिति बनी हुई है. लगभग एक सौ तीस करोड़ आबादी वाले इस देश में अधिकांश लोगों के घर का सपना पूरा नहीं हो पा रहा है. जीवन-काल में ऐसे लोगों का आशियाना सड़क, फुटपाथ, पार्क, गांव निर्जन इलाके, पेड़ आदि होते हैं.

हालांकि, मामले में सरकार संवेदनशील है इसलिए आधारभूत संरचना को मजबूत करने के लिए रोजगार में बढ़ोतरी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मजबूती, खेती-किसानी की बेहतरी के लिए ही सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ का आगाज किया है. इस दिशा में स्वयं सहायता समहू (एसएचजी), वित्तीय संस्थान की मदद से ‘मेक इन इंडिया’ के कार्यों को गति दी जा रही है. वर्तमान में दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में एसएचजी छोटे स्तर पर निर्माण कार्य कर रहे हैं. वे जूते व चप्पल, बर्तन, कपड़े, घरेलू जरूरत की वस्तुएं, पापड़, आचार व कुर्सी-टेबल बना रहे हैं, जो स्वदेशी तकनीक से बने हुए होते हैं.

अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं करना भी भ्रष्टाचार का ही हिस्सा है. इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो सभी लोग किसी न किसी स्तर पर  भ्रष्टाचार कर रहे हैं, जबकि लोग सरकारी सेवकों और नेताओं को ही भ्रष्टाचार का कारक मानते हैं. वर्तमान में अधिक लाभ के लिए किसान सब्जियों व फसल में जहर मिला रहे हैं और व्यापारी मिलावट कर रहा है. मजदूर व कामगार भी अपने हिस्से की रोटी से अधिक पाने की कोशिश में गलत रास्ता अपना रहे हैं. जाहिर है, जब तक मौजूदा स्थिति में सुधार नहीं होता है, तब तक कुछ धनवानों के हाथों में संकेंद्रित संपत्ति का वितरण आम लोगों के बीच संभव नहीं है.

सोनल छाया
लेखक


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