चिंतन : धैर्य है प्रकृति से आत्मीयता

Last Updated 15 Jan 2017 01:11:36 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने धर्म, जाति, भाषा के आधार पर वोट मांगने को गलत बताया. कोर्ट ने रिलीजन, कास्ट शब्द प्रयोग किए हैं. रिलीजन धर्म का पर्याय नहीं है.


हृदयनारायण दीक्षित

भारत का धर्म प्रत्यक्ष वैज्ञानिक व्यवस्था है. संपूर्ण प्रकृति से आत्मीय व्यवहार का नाम धर्म है. दुनिया के किसी पंथ या मजहब के अनुयायियों ने अपनी आस्था या पंथिक मजहबी मान्यताओं से जिरह नहीं की. विज्ञान और दर्शन अंतरिक्ष का भी अनुसंधान कर रहे हैं. लेकिन पंथिक मजहबी विश्वासों में दैवी घोषणाएं ही सत्य मानी जाती हैं. भारत में धर्म और आस्था विवास से निरंतर वाद्-विवाद और संवाद की परंपरा है. वैदिक साहित्य ऐसे विवाद-संवाद से भरापूरा है.

वैदिक काल का धर्म आनंद मगन करने वाला है. उत्तर वैदिक काल में यज्ञ से जुड़े कर्मकाण्ड है लेकिन तत्वज्ञान की ऊंचाईयां कर्मकाण्डों को भी चुनौती देती हैं. रामायण काल के धर्म में मर्यादा है. श्रीराम इसी मर्यादा के महानायक हैं. लेकिन महाभारत काल का धर्म अवनति में है. गीताकार ने बहुत खूबसूरत शब्द प्रयोग किया है धर्म की ग्लानि. श्रीकृष्ण ने अजरुन से कहा जब-जब धर्म की ग्लानि होती है, तब तब धर्म संस्थापन के लिए अवतार होते हैं. श्रीराम और श्रीकृष्ण में भारी फर्क है. श्रीराम रामायण काल में प्रचलित धर्म को मजबूती देते हैं लेकिन श्रीकृष्ण महाभारत काल के प्रचलित धर्म को चुनौती देते हैं. ऋग्वेद में धर्म की चर्चा कम है.

मनुष्य प्रकृति के निकट है. सूर्य अस्त होते हैं, मनुष्य सो जाते हैं. ऊषा आती है. सबको जगाती है. वैदिक समाज के जागरण और निद्रा प्राकृतिक हैं. ऋग्वेद के समय सभा और समितियां हैं. सभा सभेय है. महाभारत में सभा के भीतर भी जुआ है. महाभारतकाल के युधिष्ठिर धर्मराज हैं लेकिन जुए में पत्नी द्रोपदी को भी दांव पर लगाते हैं. द्रोपदी इस धर्म को चुनौती देती है. वह तत्कालीन राजाओं को धर्मभ्रष्ट बताती है. द्रोपदी के मन में धर्म की दूसरी कल्पना है, युधिष्ठिर और भीष्म आदि के मन में बिल्कुल दूसरी. जुआ अधर्म है, जुए के खेल में बेईमानी और भी बड़ा अधर्म है लेकिन भीष्म कहते हैं धर्मराज युधिष्ठिर धन सम्पदा से भरी पृथ्वी त्याग सकते हैं किन्तु धर्म नहीं छोड़ सकते. इन्होंने स्वयं ही हार मान ली है. भीष्म का उत्तर घुामवदार है.

धर्म परिवर्तनशील आचार संहिता है. वैदिक काल से उत्तरवैदिक काल के बीच समय का लम्बा अंतराल है. वैदिक काल में व्यक्तिगत संपदा का विकास हो रहा था. लेकिन परंपराएं भी साथ-साथ पुष्ट हैं. उत्तर वैदिक काल में अन्तर्विरोध उभरे हैं. यज्ञ और पूजा से लाभ हानि की बाते भी हैं. इसी समय दर्शन का विकास भी हुआ है. उपनिषद् दर्शन का आकाश छूना इस समय की विशेषता है. रामायण काल का धर्म मर्यादा पालन है. वैदिक समाज ने प्रकृति की शक्तियों को मां पिता देवता की तरह देखा था. महाभारत के श्रीकृष्ण उसी तत्वर्दान के व्याख्याता है. वैदिक ज्ञान सनातन प्रवाह है. गीता के चौथे अध्याय की शुरूवात में श्रीकृष्ण इसी ज्ञान की समाप्ति की चर्चा करते हैं- दीर्घकाल में यही तत्व ज्ञान नष्ट हो गया. धर्म का पराभव ही महाभारत की कलह है. धर्म भारतीय राष्ट्रीयता का संविधान है. धर्म नाम के इस संविधान का सतत् विकास हुआ है. विविधिता यहां का सौन्दर्य है और आत्मीयता प्राण तत्व. धर्म अंधविश्वास नहीं है. भारत का धर्म इसी संसार को सुंदर बनाने की आचार संहिता है.



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